आइए जानते हैं All about Grishneshwar Jyotirlinga history, how to reach, Darshan time of Ghrishneshwar Jyotirlinga, important questions regarding Grishneshwar Jyotirlinga Temple.
Grishneshwar Jyotirlinga
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर(Grishneshwar Jyotirlinga Temple) महाराष्ट्र के औरंगाबाद से कुछ दुरी पर दौलताबाद से लगभग 11 KM की दुरी पर स्थित हैं। इस ज्योतिर्लिंग को कुछ लोग घुश्मेश्वर नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर से कुछ ही दुरी पर बौद्ध भिक्षुकों द्वारा निर्मित एलोरा की गुफाएं मौजूद हैं।
इस मंदिर का निर्माण इंदौर की महारानी शिव भक्तिनी माँ अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा करवाया गया था। शहरी क्षेत्र से दूर स्थित यह मंदिर सादगी का एक पर्याय हैं। कई लोग इस मंदिर के नाम को अलग – अलग तरह से बोलते है जैसे घृष्णेश्वर, घुसृणेश्वर और घुश्मेश्वर। यह वेरुलगांव में स्थित है। अगर आपको घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) की और अधिक जानकारी चाहिये तो आप हमारे इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा – Grishneshwar Temple Story
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा (Grishneshwar Jyotirlinga katha )पुराणों में इस बताई गयी है की – दक्षिण स्थित देवगिरि पर्वत के निकट एक बहुत ही तपोनिष्ट और तेजस्वी ब्राम्हण सुधर्मा रहते थे। उस ब्राम्हण की पत्नी का सुदेहा था और उन दोनों में बहुत प्रेम था।
ईश्वर की भक्ति और कृपा से उन्हें कोई दुःख या रोग नहीं था सिवाय इसके की उनकी कोई संतान नहीं थी संतानहीन होने के कारण कुछ समय बाद सुदेहा बहुत ही दुःखी रहने लगी और अपने पति से दुसरा विवाह करने की ज़िद करने लगी। सुधर्मा के कई बार समझाने के बाद भी सुदेहा मानने के लिए तैयार नहीं हुई और उसने अपनी छोटी बहन घुश्मा से विवाह करवा दिया।
सभी बहुत आनंद से साथ रहने लगे। घुश्मा एक बहुत ही चरित्रवान और भक्तिमयी स्त्री थी। वह प्रतिदिन 100 पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर उनकी बहुत ही भक्ति और निष्ठां से पूजा करती। भगवान देवाधिदेव महादेव की कृपा से घुश्मा गर्भवती हुई और उसने एक बालक को जन्म दिया। उस बालक को देख कर सुदेहा और घुश्मा दोनों ही प्रसन्न होकर रहने लगी साथ ही सुधर्मा भी आनंद से पार नहीं पा रहा था।
समय बितता गया और अब सुदेहा को घुश्मा से जलन होने लगी। सुदेहा के मन में घुश्मा के प्रति कुभावनाएँ रहने लगी और सोचने लगी की इस घर में अब मेरा कुछ है नहीं, पुत्र भी उसी का है और उसने अपने प्रेम से मेरे पति को भी मुझसे छीन लिया। बालक की उम्र के साथ साथ सुदेहा के मन में रहने वाली जलन की भावना ने विशाल वृक्ष का रूप ले लिया। घर में खुश रहने की कोशिश करने लगी।
बालक की बढ़ती उम्र बालक का विवाह कर दिया। बेटे – बहु के साथ सभी आनंद से रहने लगे। मगर एक दिन सुदेहा ने समय देख कर बहु को बेटे के साथ ना पाकर रात में सोते हुए बेटे को नींद में ही मार दिया और उसकी देह को एक तालाब में फेंक दिया, यह वही तालाब है जहाँ घुश्मा अपने 100 पार्थिव शिव का पूजन के बाद विसर्जन करती थी।
सुबह होते ही अपने बेटे को ना पाकर सुधर्मा और बहु ने ढूँढने की कोशिश की लेकिन ना मिलने पर दोनों जोर जोर से रोने लगे। लेकिन घुश्मा रोज की तरह ही बिलकुल शांत मन से शिवलिंगों का पूजन कर रही थी, उसके ऐसे व्यवहार को देख सुदेहा सहीत सभी परिवारजन परेशान हुए कित्नु किसी ने कुछ नहीं कहा। घुश्मा को अपने प्रभु पर पूरी तरह विश्वास था इसलिए वह शांत मन से पूजा कर शिवलिंगों को तालाब में विसर्जित करने चली गयी।
जब वह सारी विधि करके घर लौट रही थी तभी उसे अपने बेटे का स्मरण हुआ और वह देखती है की उसका पुत्र तालाब से निकल रहा है वह अपनी जननी के पास आकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेता है। उसे देखकर घुश्मा बहुत प्रसन्न हुई और भगवान शिव को धन्यवाद करने लगी।
भगवान शिव घुश्मा की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हो गए। महादेव ने घुश्मा को सारी बात बताई और क्रोध से बोले की मेरी भक्त को परेशान करने वाले को मैं इसी समय मृत्युदंड दे दूंगा। लेकिन भोले की भोली और सदाचारिणी भक्तिन घुश्मा ने हाथ जोड़ कर विनती करी की “हे प्रभों! कृपया आप मेरी उस अभागी बहन पर क्रोधित न हो उसके जीवन में पुत्र सुख न होने के कारण उससे यह जघन्य अपराध हो, यह निश्चित ही बहुत ही जघन्य अपराध है लेकिन आपने कृपा करके उस पुत्र को फिर से जीवित कर दिया तथा आप तो कृपा निधान है कृपया मेरी बहन पर भी कृपा कर उसे जीवनदान दे।
और यदि आप मेरी सेवा भाव से प्रसन्न है तो कृपया लोक कल्याण के लिए आप इस स्थान पर विराजित होइए, जिससे आम जन भी आपकी कृपा के पात्र बन सके”
घुश्मा के इस प्रेम और भक्तिभाव से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसकी दोनों बात मान ली और तथास्तु कह कर वही ज्योतिर्लिंग रूप में विराजित हो गए तथा घुश्मा के ईश्वर अर्थात घुश्मेश्वर घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) नाम से प्रख्यात हुए।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास – Grishneshwar Temple History
किसी भी पुराण या कथा में मंदिर के स्थापना की वास्तविक तिथि ज्ञात नहीं है, लेकिन कहते है की मंदिर को सबसे पहली बार मंदिर का पक्का निर्माण 13वीं सदी में हुआ था। मुग़ल साम्राज्य के दौरान इस क्षेत्र के नाम बेलूर था, लेकिन आज इसे वेलूर या एल्लोरा केव्स के रूप में जाना जाता है। मंदिर के आसपास 13वीं से 14वीं सदी में बहुत विनाश आक्रामणकारी द्वारा किया गया जिससे मंदिर को बहुत नुकसान हुआ।
कई लेखों के अनुसार 16वीं सदी में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा श्री मालोजी भोंसले ने बेलूर के प्रमुख का पद ग्रहण किया और इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। हांलाकि कुछ ही वर्षों बाद फिर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने फिर से मंदिर को क्षति पहुंचाई। लेकिन इसके बाद 18वीं सदी में माँ अहिल्याबाई होल्कर ने फिर मंदिर निर्माण करवाया जो आज भी वैसा ही है, इसलिए कह सकते है की वर्तमान मंदिर निर्माण माँ अहिल्याबाई के द्वारा ही करवाया गया।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास (Grishneshwar Jyotirlinga History Hindi ) में दी गयी हैं , उम्मीद करते हैं आपको घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी जानकारी आपको पढ़ने में आंनद आ रहा होगा।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का वास्तुकला – Grishneshwar Temple Architecture
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) भगवान देवों के देव महादेव के पवित्र 12 ज्योतिर्लिंग में से एक हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) का वर्णन शिव पुराण, स्कन्द पुराण तथा रामायण के साथ ही महाभारत में भी मिलता है।
मंदिर का वास्तुकला मराठा और दक्षिण भारतीय शैली का मिश्रण है। काले बेसाल्ट और लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह मंदिर 5 स्तरीय शिखर वाला है। मंदिर का एक बड़ा प्रांगण हैं जहा भगवान शिव के वाहन नंदीजी की एक मूर्ति विध्यमान है। मंदिर के मुख्य द्वार पर खम्बों और मेहराबों वाला फूल की आकृति से सुसज्जित एक बरामदा है।
मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है भक्त शिवलिंग को छूकर भी दर्शन कर सकते है (आम तौर पर बड़े मंदिर में मूर्तियों तथा शिवलिंग को छूना वर्जित होता है), शिवलिंग का आकर लगभग 60 सेंटीमीटर ऊंचा और 45 सेंटीमीटर चौड़ा है जिसके आसपास चांदी से निर्मित के साँप लिपटा हुआ है। गर्भगृह में शिवलिंग के पीछे भगवान विष्णु की भी एक मूर्ति विराजित है और मंदिर के अंदर वाले कक्षों में भगवान विष्णु के 10 अवतारों के भित्ती चित्र ( भित्ती चित्र : दीवार या छत की सतह पर लगाई जाने वाली और अभिन्न रूप से बनाई गई पेंटिंग) है।
मंदिर के एक हिस्से में 12 खम्बों वाला एक कक्ष भी है ये 12 खंबे महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करते है। हॉल में चांदी की परत चढ़ा हुआ एक द्वार है जिस पर भगवान श्री गणेश और माँ लक्ष्मी के चित्र उकेरे गए है, तथा मंदिर में स्थित परिक्रमा मार्ग में ब्रह्मा, सरस्वती, कार्तिकेय, पार्वती, गणेश, नंदी और हनुमान जैसे विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन का समय : Darshan time of Ghrishneshwar Jyotirlinga
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Grishneshwar Jyotirlinga Darshan ka Samay) हर दिन सुबह 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है। इस तय समय में भक्त अपने भगवान के दर्शन कर सकते है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रमुख त्यौहार : Major festival of Ghrishneshwar Jyotirlinga
Grishneshwar Jyotirlinga Festivals Celebrations महाशिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि, श्रावण माह, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि पर होने वाली यात्रा इस मंदिर के प्रमुख त्यौहार है तथा इन तिथियों के दौरान लाखों भक्त दर्शन ने लिए आते है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग तक कैसे पहुंचें? : How to reach Ghrishneshwar Jyotirlinga?
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) महाराष्ट्र के शहर औरंगाबाद शहर से लगभग 30 किमी की दुरी और एलोरा गुफाओं से लगभग 2 किमी दूरी पर विध्यमान है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Grishneshwar Jyotirlinga Temple) अन्य शहरों से सड़क मार्ग द्वारा बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। सबसे करीबी रेलवे स्टेशन औरंगाबाद है और सबसे करीबी हवाई अड्डा औरंगाबाद में ही है जहा से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga) आराम से पहुंचा जा सकता है।
FAQ for Grishneshwar Jyotirlinga : घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़े सवाल
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (Grishneshwar Jyotirlinga FAQ ) से जुड़े सवालों के जवाब
प्रश्न 1. Grishneshwar Jyotirlinga मंदिर के खुलने का समय क्या है ?
उत्तर : आम तौर पर सुबह 5:00 से 5:30 बजे खुलता है और रात 9:00 से 9:30 बजे बंद हो जाता है।
प्रश्न 2. श्रावण मास के दौरान क्या दर्शन के समय में कोई बदलाव होता है?
उत्तर : जी हाँ, प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रावण मास के दौरान मंदिर खुलने का समय सुबह 3:00 बजे से रात 11:00 बजे तक है।
प्रश्न 3. क्या दर्शन करने में देरी हो सकती है ?
उत्तर : जी हाँ, हमारे अनुमान से यदि आम दिनों में दर्शन करने जाते है तो भी भीड़ के आधार पर लगभग 2 घंटे तो लग सकते है यह समय श्रावण मास में 6-8 घंटे तक हो सकता है।
प्रश्न 4. क्या मंदिर में प्रवेश या मंदिर प्रांगण में प्रवेश का कोई शुल्क है ?
उत्तर : नहीं, यह बात गलत तरीके से फैलाई गयी है मंदिर में दर्शन और मंदिर में प्रवेश का कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता हैं।
प्रश्न 5. क्या कोई भी आम साधारण भक्त मंदिर विशेष पूजा या अनुष्ठान करवाता है?
उत्तर : हाँ, इसके लिए आप मंदिर के कार्यालय या मंदिर से जुड़े किसी अधिकृत पंडित से पूछ कर पूजा या अनुष्ठान करवा सकते है।
प्रश्न 6. क्या मोबाइल या कैमरे से मंदिर के अंदर फोटोग्राफी की अनुमति है?
उत्तर : नहीं, मंदिर के गर्भगृह के अंदर की फोटो लेने की अनुमति नहीं है लेकिन आप मंदिर के बाहर प्रांगण में फोटो ले सकते है।
प्रश्न 7. क्या मंदिर के पास कोई पार्किंग उपलब्ध है?
उत्तर : हाँ, मंदिर के पास वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था है।
प्रश्न 8. क्या मंदिर में या मंदिर के आसपास पार्किंग है ?
उत्तर : हाँ, मंदिर के आसपास कार और बाईक की पार्किंग उपलब्ध है।
प्रश्न 9. क्या मंदिर में दर्शन के लिए दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए व्यवस्था है ?
उत्तर : हाँ, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए पालकी सेवा उपलब्ध है।
प्रश्न 10. क्या मंदिर या मंदिर के आसपास लॉकर या क्लोक रूम हैं ?
उत्तर : नहीं, अगर हो तब भी हम आपको सलाह देते है की अपने कीमती सामन की सुरक्षा का ख्याल खुद रखे।
Grishneshwar Jyotirlinga Temple | घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग Aurangabad | Grishneshwar Mandir
दोस्तों, इस उम्मीद है आपको इस आर्टिकल से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Grishneshwar Jyotirlinga History in Hindi) की सम्पूर्ण जानकारी जरुर मिली होगी। अगले आर्टिकल में हमने खाटू श्याम चालीसा (Khatu Shyam Chalisa) का वर्णन किया है। कृपया आप उसे भी जरूर रीड करे।
यदि आपको घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर (Grishneshwar Jyotirlinga Temple ) से जुडी और कोई जानकारी चाहिए हमें कमेंट में जरूर बताया।
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