Saptrishi : सप्तऋषि एक ऐसा शब्द हैं जिसके बारे में आजतक लोग ज्यादा जानकारी नहीं जुटा सके। ये एक ऐसा शब्द है जिसे हिन्दू धर्म को जानने वाला व्यक्ति हमेशा जानना चाहता हैं। एक ऐसा शब्द जो कई बार ग्रंथो में सुना गया, TV में देखा गया लेकिन इसे जानने की जिज्ञासा कभी ख़त्म नहीं हुयी। क्यों, वो इसलिए की हमेशा अलग – अलग सप्तऋषियों ने नाम दुविधा और अचरज में पड़ने पर मजबूर कर देते।
आज हम आपको सप्तऋषि से जुडी लगभग हर जानकारी देंगे जैसे सप्तऋषि कौन थे? कैसे थे? क्या करते थे? (Saptrishi : Who, what, How….?)
संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना शब्द ‘सप्तऋषि’ है, जिसमें ‘सप्त’ का अर्थ होता है ‘सात’ और ‘ऋषि’ का अर्थ है ‘ज्ञानी’ और ‘मुनि’। इन दोनों की संधि से ‘सप्तऋषि’ बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘सात ऋषि’।
सप्तऋषि सात ऋषियों का समूह हैं, जिन्हें वैदिक धर्म और ज्ञान के संरक्षक भी कह सकते है। शायद आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्हीं ऋषियों के नाम से हमें हमारे गोत्र का पता चलता है। संसार के सृजन से लेकर अंत तक, ब्रह्मांड का संतुलन और मानव जाति तक वैदिक धर्म का ज्ञान पहुंचाने का कार्य इन्हीं के द्वारा किया जाता है।
सप्तऋषि का सनातन और वैदिक ज्ञान में अहम स्थान और महत्व है। इस संसार में वेदों का ज्ञान सबसे पहले ब्रह्माजी से सप्तऋषियों को मिला। आदियोगी भगवान शिव ने सबसे पहले इन्हीं सप्तऋषियों को अपना शिष्य बनाया और संसार तथा ब्रह्मांड के सृजन में ज्ञान और योग के महत्व का विस्तार करने का उद्देश्य दिया।
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, सप्तऋषि का महत्व कई ग्रंथों और कथाओं में देवताओं से भी अधिक बताया गया है। इसी कारण, उनका महत्व ब्रह्मांडीय, ज्योतिषीय, धार्मिक और आध्यात्मिक आधार से बढ़ जाता है।
ऋषियों की संख्या सात ही क्यों हैं ?
ऋषि मुख्यतः सात प्रकार के माने गए हैं। रत्नकोष में भी कहा गया है-
सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:।
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।
ऊपर दिए गए श्लोक के अनुसार हमारे धर्म ग्रंथों में : ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षि, काण्डर्षि, श्रुतर्षि और राजर्षि – ये ७ प्रकार के ऋषि होते हैं।
कैसे हुआ सप्तऋषि का जन्म ? / How was Saptrishi born?
हमारे धर्म के आधार वेद हैं, और इन्हीं वेदों का प्रचार-प्रसार करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। जिस तरह शिव आदि हैं, उसी तरह वेद भी आदि काल से अपने अस्तित्व में हैं।
जब ब्रह्मदेव ने सृष्टि का निर्माण किया, उसी समय धर्म, कर्म, तंत्र आदि ज्ञान के विस्तार के लिए उनके मस्तिष्क और मन में कुछ विचार उत्पन्न हुए। उसी समय ब्रह्मदेव से इन 7 ऋषियों का जन्म हुआ, जिन्होंने ब्रह्मदेव से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद ब्रह्माजी ने उन्हें शिवजी के पास ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजा, जहाँ से इस संसार में गुरु-शिष्य की परंपरा स्थापित हुई।
सप्तऋषि कौन थे ? / Who were the Saptrishis?
सप्तऋषि हर मन्वन्तर में अलग होते हैं, लेकिन ऊपर हमने जिन सप्तऋषियों की जानकारी दी है, हम आपको उन्हीं के नाम बता रहे हैं। इस संसार को सबसे पहले जो सप्तऋषि (First Saptrishis) मिले, उनके नाम पुराणों में इस प्रकार हैं: मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, क्रतु, पुलत्स्य और वशिष्ठ।
क्या समय के साथ सप्तऋषि सदस्य बदल जाते हैं? / Two Saptrishi members change over time?
जी हाँ! कई लोगों को आजकल लगता है कि सप्तऋषि केवल एक ही बार हुए हैं, और कुछ लोग सप्तऋषि को एक ही मानते हैं, पर हैरान होंगे कि सप्तऋषि हर मन्वन्तर में बदल जाते हैं। आप यह भी कह सकते हैं कि “सप्तऋषि” (Saptrishi is Designation) एक पद है जिसमे मन्वन्तर के साथ इनके सदस्यों में बदलाव हो जाता है।
अब मन्वन्तर क्या है? / what is Manvantara?
अगर आपको मन्वन्तर जानना है, तो सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि कल्प क्या है, और महायुग क्या है?
तो आइए जानते हैं कि कल्प क्या है:
परमपिता ब्रह्मा के एक दिन की अवधि को कल्प कहते हैं, लेकिन इसमें रात का समय नहीं नापा जाता है, क्योंकि ब्रह्मा के रात के समय में प्रलय काल होता है और हर सुबह संसार का पुनर्निर्माण होता है।
अब जानते हैं कि कल्प की गणना कैसे होती है:
1000 महायुगों का एक कल्प होता है। इन 1000 महायुगों में अर्थात एक कल्प में 14 मन्वन्तर होते हैं।
महायुग क्या है?
महायुग चार युगों का योग होता है, और ये चार युग हैं: सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, और कलियुग। महायुग को चतुर्युग भी कहा जाता है।
चार युगों की आयु कितनी होती है ?
चारों युगों का योग होता है:
सतयुग: 1,72,80,000 वर्ष
त्रेतायुग: 1,29,60,000 वर्ष
द्वापर युग: 8,64,000 वर्ष
कलियुग: 4,32,000 वर्ष
इस प्रकार, एक महायुग की कुल अवधि होती है:
1,72,80,000 + 1,29,60,000 + 8,64,000 + 4,32,000 = 4,320,0000 वर्ष
अर्थात्, एक महायुग की कुल अवधि 4,320,000 वर्ष होती है।
अब आपको बताते है की : मन्वन्तर क्या होता हैं
सृष्टि की कुल आयु हमारे ग्रंथों के अनुसार 4,32,00,00,000 वर्ष (43.2 करोड़ वर्ष) है। इस अवधि को 14 मन्वन्तरों में विभाजित किया गया है।
अब 1 मन्वन्तर में लगभग 71 महायुग होते हैं (4,320,000 (1 चतुर्युग )) X 71 = 30,67,20,000 वर्ष )
इसका अर्थ ये हुआ की 1 मन्वन्तर (लगभग 30,67,20,000 वर्ष) के बाद नए मनु के साथ – साथ नए सप्तऋषि (Another Saptrishi) के सदस्य बनाये जाते हैं।
अब जानते हैं कितने मन्वन्तर बीत चुके हैं ?
पुराणों और ग्रंथो के अनुसार अभी तक 6 ऐसे मन्वन्तर बीत चुके हैं। इसका अर्थ हुआ की 30,67,20,000 वर्ष X 6 = 1840320000 वर्ष बीत चुके है।
अभी कौनसा मन्वन्तर चल रहा हैं और इस मन्वन्तर के कितने चतुर्युग बीत चुके हैं?
पुराणों के अनुसार अभी सातवां मन्वन्तर चल रहा हैं और इसके भी 27 चतुर्युग ख़त्म हो चुके हैं तथा हम 28 वें चतुर्युग के कलियुग काल में है और कलियुग का अभी 5115 वां वर्ष चल रहा है।
7वें मन्वन्तर के मनु और सप्तऋषि के नाम क्या हैं ?
सातवें मन्वन्तर के मनु का नाम वैवस्वत मनु (श्राद्धदेव मनु) है। मनु भगवान की ओर से निर्धारित संसार को चलाने के लिए एक कार्यवाहक राजा होता है, जिसकी देखरेख में संसार में धर्म और अन्य कार्य आगे बढ़ते हैं। सप्तऋषि (Under Guidance of Saptrishi) उस राजा के कुलगुरु का कार्य करते हैं, जैसे मार्गदर्शन, धार्मिक अनुष्ठान आदि।
7वें मन्वन्तर के सप्तऋषि (Current Saptrishis) : कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं भारद्वाज !
14 मन्वन्तर के मनु और सप्तऋषि के नाम / Names of Manu and Saptrishi of 14 Manvantara
मन्वन्तर क्र. | मन्वन्तर के मनु (Manu of Manvantara) | सप्तऋषि के नाम (Names of Saptrishi) |
1 | स्वयंभू मनु | मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलह, क्रतु, पुलत्स्य और वशिष्ठ। |
2 | स्वरोचिष मनु | ऊर्ज्ज, स्तम्भ, वात. प्राण, पृषभ, निरय एवं परीवान (कुछ नाम में बदलाव भी दिखाई देते हैं) उर्जा, स्तम्भ, प्राण, दत्तोली, ऋषभ, निश्चर एवं अर्वरिवत |
3 | औत्तमी मनु या उत्तम मनु | महर्षि वशिष्ठ के सातों पुत्र (कुकुण्डिहि, कुरूण्डी, दलय, शंख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित) (कुछ नाम में बदलाव भी दिखाई देते हैं) कौकुनिधि, कुरुनधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित |
4 | तामस मनु | ज्योतिर्धाम, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक एवं पीवर |
5 | रैवत मनु | हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य एवं महामुनि (महानुनि) |
6 | चाक्षुष मनु | सुमेधस, हविश्मत, उत्तम, मधु, अभिनमन एवं सहिष्णु |
7 | वैवस्वत मनु (श्राद्धदेव मनु) | कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज |
8 | सावर्णि मनु | गालव, दीप्तिमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृप, ऋष्यश्रृंग एवं व्यास |
9 | दक्ष सावर्णि मनु | मेधातिथि, वसु, सत्य, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, सवन एवं भव्य |
10 | ब्रह्म सावर्णि मनु | तपोमूर्ति, हविष्मान, सुकृत, सत्य, नाभाग, अप्रतिमौजा एवं सत्यकेतु |
11 | धर्म सावर्णि मनु | वपुष्मान्, घृणि, आरुणि, नि:स्वर, हविष्मान्, अनघ एवं अग्नितेजा |
12 | रुद्र सावर्णि मनु | तपोद्युति, तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोनिधि, तपोरति एवं तपोधृति |
13 | देव-सावर्णि मनु (रौच्य मनु) | धृतिमान्, अव्यय, तत्त्वदर्शी, निरूत्सुक, निर्मोह, सुतपा एवं निष्प्रकम्प |
14 | इंद्र-सावर्णि मनु (भौत मनु) | अग्नीध्र, अग्नि, बाहु, शुचि, युक्त, मागध एवं अजित |
कुछ और ग्रंथों में भी अलग – अलग सप्तऋषि वर्णन मिलता हैं (Different Saptrishi descriptions are found in some other texts also)
धर्म ग्रंथ | सप्तऋषि के नाम (Another Saptrishi) |
गोपथ ब्राह्मण के अनुसार | वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, गौतम, भारद्वाज, अगस्त्य एवं भृगु |
जैमिनीय ब्राह्मण के अनुसार | अगस्त्य, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ एवं विश्वामित्र |
बृहदरण्यक उपनिषद के अनुसार | गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वशिष्ठ, कश्यप एवं भृगु |
शतपथ ब्राह्मण के अनुसार | अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, कश्यप, वशिष्ठ एवं विश्वामित्र |
कृष्ण यजुर्वेद के अनुसार | अंगिरस, अत्रि, भृगु, गौतम, कश्यप, कुत्स एवं वशिष्ठ |
महाभारत के अनुसार | मरीचि, अत्रि, पुलह, पुलत्स्य, क्रतु, वशिष्ठ एवं कश्यप |
वृहत संहिता के अनुसार | मरीचि, वशिष्ठ, अंगिरस, अत्रि, पुलत्स्य, पुलह एवं क्रतु |
जैन धर्म के अनुसार इन्हें सप्त दिगंबर कहते हैं | सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय, सर्वसुन्दर, जयवाण, विनायलाला एवं जयमित्र |
क्या सभी सप्तऋषि ब्रम्हदेव से प्रकट हुए? (Did all the Saptrishis appear from Brahmadev?)
नहीं, सारे सप्तऋषि ब्रम्हाजी से प्रकट नहीं हुए हैं और न भविष्य में आने वाले किसी सप्तऋषि का ऐसा पुराणों में वर्णन हैं। केवल स्वयंभू मनु के शासन काल के दौरान जो 7 महर्षि हुए उन्हें ही ब्रम्हाजी ने प्रकट किया हैं। कित्नु बाद के सप्तऋषि को उनके कर्मो के अनुसार यह पद सौपा गया। बाद के सप्तऋषि के पद के लिए ब्रम्हाजी से प्रकट होने की कोई अनिवार्यता नहीं रखी गयी।
स्वयंभू मनु के बाद जो भी सप्तऋषि हुए, वे अपने कर्मों, लोक कल्याण, और प्रकृति कल्याण के आधार पर सप्तऋषि बने। हालांकि, सभी सप्तऋषियों में एक समानता है कि वे किसी न किसी तरीके से पहले सप्तऋषियों से जुड़े रहे हैं। उदाहरण के लिए, वे या तो पहले सप्तऋषियों के शिष्य बनकर ज्ञान प्राप्त करके इस पद को प्राप्त हुए, या वे सप्तऋषियों के पुत्र होने बाद भी अपने कर्मो के आधार पर ही इस पद को प्राप्त कर पाए। इसलिए मनुष्यों को भी अगर किसी तरह से कोई उच्च पद की लालसा हो तो उसे कर्म और धर्म प्रधान तथा मनुष्य के साथ – साथ देवी प्रकृति और पशु – पक्षियों के लिए भी कल्याणकारी कर्म करना चाहिए।
सप्तऋषियों के नाम से मानव जाति में गौत्र की महत्ता (Saptrishi Gotr) आई, क्योंकि उनके शिष्य और ऋषियों ने गौत्र अपनाया। आज के दौर में भी गौत्र के कई उप-गौत्र बन गए हैं, लेकिन ये भी सप्तऋषियों से किसी न किसी प्रकार से जुड़े हुए हैं।
आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि सबसे पहले (Saptrishis Son of Bramha) सप्तऋषि ब्रह्माजी के पुत्र थे। इसलिए उन्हें त्रिदेवों से मिलने और दर्शन करने की स्वतंत्रता थी, क्योंकि वे ब्रह्मा के पुत्र होने के साथ ही परमेश्वर, आदियोगी शिव के शिष्य भी थे। अन्य सप्तऋषियों को त्रिदेवों के दर्शन और भेंट के लिए तपस्या करनी पड़ी या करनी पड़ेगी। इस प्रकार, पहले सप्तऋषियों की महत्ता आज भी गौत्र और ग्रंथों में अधिक मानी जाती है।
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क्या सप्तऋषि में भी किसी तरह का ऊँचा पद होता हैं? (Is there any kind of high position among Saptrishi also?)
नहीं, सभी सप्तऋषि सामान रूप से आदरणीय और सम्मानीय रहे हैं। सप्तऋषि में किसी तरह की ऊँचे पद या निचे पद नहीं होता। फर्क मात्र सृष्टि में मनुष्य के बिच रहकर कर रहे कार्यो के आधार पर हम कुछ ऋषि को ज्यादा और अधिक जानते हैं किसी कुछ सप्तऋषि अपने मंडल में रहकर ही सृष्टि के सृजन का कार्य करते हैं। इसलिए सप्तऋषि सामान रूप से पूजे जाते हैं।
सप्तऋषि कहाँ रहते है क्या वे अमर हैं? (Where do the Saptrishis live? Are they immortal?)
“सप्तर्षि मण्ड” (Place of Saptrishis) को सप्तऋषियों का स्थान माना गया हैं तथा सभी सप्तऋषि वही रहकर संसार वैदिक धर्म और ज्ञान का प्रचार – प्रसार करते रहते है तथा उसका संरक्षण भी करते हैं। चूँकि उनके कार्यक्षेत्र में प्रचार – प्रसार और संरक्षण हैं इसलिए वे संसार में कही भी आने जाने लिए स्वतंत्र हैं। हम यह भी मान सकते है की आज भी किसी न किसी रूप में या सूक्ष्म शरीर से हमारे बीच रहकर वैदक धर्म की रक्षा कर रहे हो।
सप्तऋषि अमर हो सकते हैं इसकी कोई जानकारी नहीं मिली हमें किसी भी सोर्स से लेकिन उनकी उम्र की जानकारी हमें उपलब्ध हुई हैं जिसमे विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ का कहना है की (Saptrishis Age) सप्तऋषि की उम्र 71 महायुगों अर्थात 1 मन्वन्तर की होती हैं और कुछ विद्वान् इससे अलग राय रखते है और बताते हैं की उनकी आयु एक कल्प की होती हैं। इसलिए इसके बारे में हम सटीक जानकारी नहीं दे सकते।
क्या सप्तऋषि का पूजन होता हैं? (Is Saptrishi worshipped?)
हाँ, सप्तऋषि का पूजन होता हैं उन्हें समर्पित आपको अनेकों मंदिर मिल जाएंगे। जहाँ श्रद्वालु आशीर्वाद की कामना लेकर जाते हैं। आपको हरिद्वार में (Saptrishi Aashram) सप्तऋषि आश्रम मिल जायेगा तथा देश भी और भी कई सप्तऋषि को समर्पित मंदिर हैं। लोग और विद्वानों द्वारा कहा जाता है की जिस तरह रोज सुबह हम उठाते ही भगवान् का नाम लेते है उसी तरह सप्तऋषि के भी नाम लेना चाहिए।
उसके लिए आपको हम यहाँ पर एक श्लोक बता रहे है। जिसमे आपको सप्तऋषि के नाम मिल जायेंगे।
सप्तऋषि पूजन का मंत्र (Saptrishi puja mantra)
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
इस श्लोक में आपको सप्तऋषि के नाम मिल जाएंगे जिस तरह भगवान का नाम लेते हैं उसी तरह आपको इन महर्षियों के आशीर्वाद के लिए श्लोक पढ़ना चाहिए जिसमे पहले ऋषि हैं कश्यप। दूसरे ऋषि हैं अत्रि। तीसरे ऋषि हैं भारद्वाज। चौथे ऋषि हैं विश्वामित्र। पांचवें ऋषि हैं गौतम। छठे ऋषि हैं जमदग्नि। सातवें ऋषि हैं वशिष्ठ हैं।
सप्तऋषि ऋषि का त्यौहार (Saptarishi Rishi Festival)
Festival dedicated to Saptrishi सप्तऋषि को समर्पित त्यौहार हमारे देश में मानते है जिसको हम सभी ऋषि पंचमी नाम से जानते हैं। जी हाँ ऋषि पंचमी सप्तऋषियों को ही समर्पित है। इनकी कृपा से ही संसार में आज तक ज्ञान और धर्म का प्रचार – प्रसार हो रहा हैं। इसलिए हम ऋषि पंचमी के दिन (Saptrishi Pooja) सप्तऋषि की पूजा करते हैं उपवास करते हैं। इस दिन उपवास करने से मनुष्य के सारे पाप सप्तऋषि की कृपा से नष्ट हो जाते हैं।
सप्तऋषि पूजा नियम (saptarishi puja rules)
सप्तऋषियों के मंत्र को हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण और लाभकारी माना जाता है। सबसे पहले घर में साफ-सफाई कर ले और स्नान करके घर के किसी स्वच्छ स्थान या पूजा स्थान पर हल्दी, रोली, कुमकुम, चंदन आदि से एक चौकोर मंडल बनाए और वहां सभी सप्तऋषियों का नाम ले ले कर उनकी स्थापना करें और अगरबत्ती, धूप, पुष्प आदि अर्पित कर जल से अर्घ्य दें इसके बाद ऊपर दिए मंत्र का उच्चारण करें।
इस दिन के व्रत के लिए आपको भूमि में बिना बोया हुआ उपजाया शाकाहार करना चाहिए। इस दिन ब्रम्हचर्य व्रत का पालन जरूर करना चाहिए तथा सात वर्षो तक उपवास और पूजन के बाद आठवें वर्ष सप्तऋषि की पीतवर्ण यानी पिली 7 मूर्तियाँ युग्मक ब्राह्मण को भोजन करवाकर मूर्तियों का विसर्जन करे।
निचे दिए गए वीडियो में आपको सप्तऋषि से जुडी और अधिक जानकारी मिल जायेगी :
FAQ Of Saptrishi : सप्तऋषि से जुड़ें सवाल
1. क्या सप्तऋषि वेदों के रचियता थे?
उत्तर : नहीं, सप्तऋषियों को वेदों का ज्ञान ब्रम्हाजी से मिला था।
2. क्या सप्तऋषियों के गुरु कौन थे?
उत्तर : सप्तऋषियों के गुरु आदियोगी परमात्मा शिव थे।
3. क्या सप्तऋषि देवता थे?
उत्तर : सप्तऋषि देवता नहीं थे लेकिन अपने ज्ञान, धर्म और कर्म के आधार पर ग्रंथों में उन्हें देवतुल्य माना जाता हैं।
4. सप्तऋषि का के पिता कौन थे?
उत्तर : सप्तऋषि के पिता परमपिता ब्रह्माजी थे।
5. क्या सभी सप्तऋषि ब्रह्माजी के पुत्र थे ?
उत्तर : नहीं, सिर्फ स्वयंभू मनु के शासन काल के सप्तऋषि (First Saptrishi) ही ब्रह्माजी के पुत्र थे।
6. क्या सप्तऋषि बदल जाते हैं?
उत्तर : हाँ, सप्तऋषि मन्वन्तर के अनुसार बदल जाते हैं।
7. अभी कौनसा मन्वन्तर हैं?
उत्तर : अभी सातवां मन्वन्तर चल रहा हैं, जिसके मनु वैवस्त मनु हैं।
8. दिव्य वर्ष क्या होते है?
उत्तर : 1 दिव्य वर्ष 360 मानव वर्षों के बराबर होता है।
1 मानव वर्ष = एक दिव्य दिवस
30 दिव्य दिवस = 1 दिव्य मास
12 दिव्य मास = 1 दिव्य वर्ष
दिव्य जीवन काल = 100 दिव्य वर्ष= 36000 मानव वर्ष
9. 30 कल्पों के नाम बताओं?
उत्तर : कल्प 30 हैं : श्वेत, नीललोहित, वामदेव, रथनतारा, रौरव, देवा, वृत, कंद्रप, साध्य, ईशान, तमाह, सारस्वत, उडान, गरूढ़, कुर्म, नरसिंह, समान, आग्नेय, सोम, मानव, तत्पुमन, वैकुंठ, लक्ष्मी, अघोर, वराह, वैराज, गौरी, महेश्वर, पितृ।
10. जैन ग्रंथों के 12 कल्पों के नाम?
उत्तर : जैन धर्म में 12 कल्प बताए गए हैं:- सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतव, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत।
11. इतिहासकारों के अनुसार कल्प के नाम?
उत्तर : पांच कल्पों में समेटने का प्रयास पुराणकारों ने किया है। ये पांच कल्प है- 1.महत कल्प, 2. हिरण्य गर्भ, 3. ब्रह्मकल्प, 4. पद्मकल्प, 5. वराहकल्प।
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