Putrada ekadashi : श्रद्धा से किया गया एक ऐसा व्रत जो केवल मनुष्य की मनोकामनाएं ही पूर्ण नहीं करता बल्कि वह आत्मा को भी शुद्ध करता हैं। पुत्रदा एकादशी का व्रत ऐसे ही विश्वास का एक जीवंत और चमत्कारी उपाय हैं – इस व्रत को आस्था और विश्वास से करने के बाद अर्जित पुण्य से ही संतान सुख प्राप्ति का योग बन जाता हैं ।
सालभर में 24 एकादशी होती हैं, और हर एकादशी का अपना एक अलग ही धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व हैं। सनातन धर्म अनुसार एकादशी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित हैं तथा उसकी कृपा का पात्र बनने का बहुत ही सरल उपाय हैं।
इन्हीं एकादशी में से एक हैं – पुत्रदा एकादशी (Putrada ekadashi) बहुत ही विशिष्ट रूप से उन दम्पतियों के लिए फलदायी होती हैं जिन्हे संतान की इच्छा रखते हैं या अपनी संतान के स्वास्थ्य, दीर्घायु और उज्जवल भविष्य की कामना रखते हैं।
यह व्रत साल में दो बार आता हैं – एक पौष मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरी एकादशी श्रावण मास की शुक्ल पक्ष में। दोनों अवसरों पर यह व्रत करने से न केवल संतान सुख का योग बनता हैं बल्कि भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा से अनेको जन्मो के पाप भी नष्ट होते हैं।
पुत्रदा एकादशी का महत्व : Significance of Putrada Ekadashi
Putrada ekadashi – जैसा हम देख रहे हैं इस एकादशी का नाम ही खुद उसकी उदेश्य की घोषणा करता हैं : “वह एकादशी जो पुत्र रूपी संतान का वरदान प्रदान करे।”
इस दिन भगवान विष्णु और माँ भगवती लक्ष्मी की बहुत ही श्रद्धा और विश्वास से विधि के साथ की गयी पूजा और उपासना से संतान प्राप्ति का योग बनता हैं। यह व्रत सिर्फ संतान प्राप्ति का फल ही नहीं बल्कि जीवन के कई समस्या का भी उपाय हैं।
माता – पिता द्वारा किया गया यह व्रत संतान के लिए उत्तम चरित्र, स्वास्थ्य, उत्तम संस्कार और उज्जवल भविष्य की मंगलमय कामना का माध्यम बनता हैं। साथ ही, धार्मिक ग्रंथो के अनुसार यह व्रत पूर्व जन्म के पाप से मुक्ति, आत्मा की शुद्धि और वैकुंठ लोक का मार्ग प्रशस्त होता हैं।
वास्तव में, पुत्रदा एकादशी (Putrada ekadashi) केवल एक व्रत नहीं — यह उस आस्था और आशा का नाम है जो मनुष्य को संस्कारयुक्त जीवन और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करती है।
पुत्रदा एकादशी की पौराणिक कथा : The Mythological Story of Putrada Ekadashi
पुराणों के अनुसार कहा जाता हैं कि द्वापर युग में महिष्मति नाम का एक समृद्ध और धर्मप्रधान नगरी थी, जहाँ महीजित नाम के राजा का शासन हुआ करता था। वे बहुत ही आदर्श शासक थे जो धर्मनिष्ट, न्यायमूर्ति, दानी और प्रजापालक। प्रजा का भी उन पर प्रेम और विश्वास था, परन्तु राजा हमेशा एक ही दुःख से दुःखी थे और वो थी संतान हीनता।
संतान के अभाव में उनका राजसी वैभव भी उन्हें सूना लगने लगा। राजा महीजित ने कई वर्षों तक यज्ञ, दान, व्रत, तीर्थ यात्रा आदि सभी धार्मिक उपाय किए, परंतु संतान सुख उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। धीरे-धीरे वे चिंताओं से घिरते चले गए। राज्य संचालन तो हो रहा था, परंतु राजा का मन भीतर ही भीतर व्यथित रहता।
एक दिन जब राजा वनविहार के लिए अपने मंत्रियों व पुरोहितों के साथ निकले, तो उन्होंने वहाँ एक महान तेजस्वी ऋषि को तप में लीन देखा — वे थे महात्मा लोमश ऋषि। उनका शरीर तप की आभा से दीप्त था, और उनकी आंखों में गहराई थी जैसे सृष्टि का सारा सत्य समाहित हो। राजा ने श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई।
लोमश ऋषि ने राजा की बात ध्यानपूर्वक सुनी और फिर अपनी दिव्य दृष्टि से उनके पूर्व जन्म को देखा। उन्होंने कहा:
“हे राजन्! तुम्हारा यह जन्म संतानहीन इसलिए है क्योंकि पूर्व जन्म में तुम एक वनवासी थे। एक दिन जब तुम जंगल में लकड़ी काट रहे थे, तब तुम्हारे पास एक प्यासी गाय आई, जो एकादशी का दिन था। तुमने उसे पानी देने के स्थान पर उसे भगा दिया, जिससे वह तड़पती रही। उसी पाप के कारण इस जन्म में तुम्हें संतान नहीं हो पा रही है।”
यह सुनकर राजा अत्यंत पश्चाताप से भर उठे। उन्होंने ऋषि से प्रायश्चित का मार्ग पूछा। लोमश ऋषि ने उन्हें बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का विधिपूर्वक व्रत व पूजन करने से संतान प्राप्ति का पुण्य प्राप्त होता है।
राजा महीजित ने न केवल स्वयं इस व्रत को किया, बल्कि समस्त राज्यवासियों के साथ मिलकर अत्यंत श्रद्धा व निष्ठा से इसका पालन किया। व्रत का पुण्य राजा ने समर्पित किया, और कुछ ही समय बाद रानी ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर एक महान शासक बना।
इस चमत्कारी घटना के बाद से इस एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ के रूप में ख्याति प्राप्त हुई, और यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए एक अत्यंत प्रभावशाली साधन माना गया।
व्रत विधि और नियम : Putrada Ekadashi Vrat Vidhi aur Niyam
दशमी तिथि से प्रारंभ करें:
- सात्विक भोजन करें।
- संयमित आचरण रखें।
- एकादशी व्रत का संकल्प लें।
एकादशी तिथि पर:
- प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें।
- पूजा स्थल को शुद्ध करें।
- भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, तुलसीदल, धूप-दीप अर्पित करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
- विष्णु सहस्रनाम या श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें।
- फलाहार या निर्जल व्रत रखें।
- रात्रि में भजन, कीर्तन व जागरण करें।
द्वादशी तिथि को पारण करें:
- प्रातः स्नान कर व्रत का पारण करें।
- ब्राह्मण या जरूरतमंद को भोजन व दान दें।
विशेष उपाय और श्रद्धा रूपी साधना
1. संतान गोपाल मंत्र:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः॥”
इस मंत्र का जप प्रतिदिन या व्रत के दिन 108 बार करें।
2. पीपल की पूजा:
पीपल के वृक्ष की जड़ में जल अर्पण करें और दीपक जलाकर विष्णु मंत्रों का जाप करें।
3. तुलसी अर्पण:
भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। ध्यान रहे, एकादशी के दिन तुलसी न तोड़ें, एक दिन पूर्व तोड़कर रख लें।
पुत्रदा एकादशी से जुड़ी मान्यताएँ और लाभ : Beliefs and Benefits Associated with Putrada Ekadashi
- संतान की प्राप्ति या संतान में सुधार
- पारिवारिक सुख-शांति
- पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति
- पति-पत्नी में प्रेम और सौहार्द
- मोक्ष और वैकुंठ गमन का द्वार खुलना
- कुष्ठ, मानसिक रोग, संतान दोष आदि से छुटकारा
पुत्रदा एकादशी और ज्योतिष शास्त्र में इसका महत्व : Putrada Ekadashi and Its Significance in Vedic Astrology
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, एकादशी का संबंध चंद्रमा की स्थिति से होता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मन और चित्त की स्थिरता अधिक होती है, जिससे व्रत, ध्यान और मंत्र जाप का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
पुत्रदा एकादशी विशेष रूप से जन्म कुंडली में संतान भाव (पंचम भाव) की दुर्बलता या बाधा को शांत करने में सहायक मानी जाती है। इस दिन किया गया व्रत और दान ग्रह दोषों को भी कम करता है।
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