Bhakt Madhavdas : दोस्तों, भारत एक ऐसा देश है जिसकी मिट्टी में जन्म लेने के लिए भगवान भी कई बार ललचा जाते हैं। अब जैसे भगवान, वैसे उनके भक्त — या यूँ कहें कि भक्त तो भगवान से भी आगे हैं। जहाँ भक्त भगवान की पूजा-सेवा करते हैं, वहीं भगवान भी उनमें रच-बस जाते हैं और भक्तों की सेवा करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब भक्तों के लिए भगवान स्वयं सेवक बनकर आते हैं, मित्र-सखा बनकर आते हैं, प्रेमी बनकर आते हैं।
आज हम आपको एक ऐसे महान भक्त की कथा बता रहे हैं, जिनके लिए भगवान, जगतपति जगन्नाथ, मंदिर का भोग छोड़कर आते हैं, कभी उसकी बीमारी में सेवा करने आते हैं, तो कभी अपने भक्त से चोरी करवाने आते हैं।
…आज हम जिन भक्त की बात कर रहे हैं, उनका नाम है माधवदास।
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श्री जगन्नाथ और भक्त माधवदास की कटहल चोरी की कथा। (When Lord Jagannath Stole Jackfruit with Bhakt Madhavdas.)
माधवदास हमेशा की तरह समुद्र किनारे टहलने आते थे। कभी-कभी भगवान जगन्नाथ का भी उनसे मिलने का मन करता, तो भगवान माधवदास से मिलने आते, और कभी माधवदास उन्हें याद कर बुला लेते।
एक बार हर बार की तरह माधवदास समुद्र किनारे टहल रहे थे, उससे पहले ही वहाँ जगन्नाथ लीला रचने की दृष्टि से बैठ गए।
माधवदास जी तट पर टहल ही रहे थे कि देखा — प्रभु श्रीजगन्नाथ उदास से दिखाई दिए। चेहरा शांत, पर आँखों में कोई बेचैनी। माधवदास ने सोचा कि जगत के अधिपति, जगत के नाथ होकर भी प्रभु के मुख पर उदासी!
जिनके विचार मात्र से नए ब्रह्मांड की रचना होती है, उनके श्रीमुख पर उदासी कैसे छा सकती है?
माधवदासजी दौड़े – दौड़े प्रभु के पास आये और धीरे से कहा – “प्रभु! क्या बात है? इतने मायूस क्यों लग रहे हो?”
माधवदास जी दौड़े-दौड़े प्रभु के पास आए और धीरे से कहा —
“प्रभु! क्या बात है? इतने मायूस क्यों लग रहे हो?”
जगन्नाथ बोले, “क्यों? एक उदासी से भरे मित्र को ‘प्रभु’ कहकर ताना मार रहे हो मित्र?”
माधवदास जी ने हल्की सी मुस्कान लिए कहा — “अब ऐसी भी क्या उदासी, जो एक मित्र अपने ही मित्र से छिपा रहा हो?”
कुछ देर शांत रहकर भगवान बोले —
“माधव, आज मुझे अपने ब्रज की आनंदित और बचपन में बिताई गई लीलाओं की स्मृति आ रही है।
सैकड़ों वर्ष बीत गए… बहुत दिनों से अपने किसी मित्र के साथ चोरी नहीं की।
और पुरी में आने के बाद तो जैसे सब कुछ छूट ही गया है।
मेरे ब्रज में तो माखन चुराना रोज़ की बात थी… यहाँ तो कोई ऐसा साथी भी नहीं है!”
माधवदास अपने भगवान की चाल समझ गए,
और मन ही मन सोचने लगे —
“मेरे प्रभु आज किसी लीला करने की बात कर रहे हैं… वो भी साथी के साथ!”
“जबकि मैं यहाँ बैठा हूँ — और इनकी चतुराई तो देखो!
मुझे ‘मित्र’ कहते हैं और फिर भी बोलते हैं — ‘यहाँ तो कोई ऐसा साथी भी नहीं है!'”
“लगता है, आज प्रभु कुछ करने वाले हैं…”
माधवदास ने हँसते हुए कहा —
“बचपन है मित्र! अब हम बड़े हो गए हैं… और आप तो राजा, महाराजा, पुरुषोत्तम और भगवान बन चुके हैं।
अब सब भूल जाइए।”
प्रभु बोले —
“आदत छूटती कहाँ है, माधव!
आज तो चोरी किए बिना ऐसा लग रहा है जैसे जीवन, बिना वर्षा की बंजर भूमि बन गया हो…”
भक्त माधव ने ठिठोली में कहा, “तो फिर कर ही लो चोरी।”
भगवान मुस्कराए, “साथी कहां है? वृंदावन में गोप-ग्वाले थे, यहां तो अकेला हूँ… सिर्फ तुम हो।”
माधवदास थोड़ा झेंपते हुए बोले —
“हम तो भजन करने वाले लोग हैं… हमें चोरी-वोरी करना नहीं आता।
और मेरे प्रभु मुझे इसकी इजाज़त नहीं देंगे… मैं नहीं करूँगा।”
भगवान ठहाका लगाते हुए बोले —
“कौन से ‘तुम्हारे प्रभु’, माधव? भूल गए… तुम्हारे सामने कौन बैठा है?”
“वही जिसने अर्जुन को विराट स्वरूप दिखा कर बताया था — कि मैं ही भगवान हूँ! मैं ही मनुष्य, माता-पिता, मित्र-सखा — सब कुछ हूँ!”
और चोरी करना कोई आसान कार्य नहीं है… इसमें ‘फुर्ती’ चाहिए बस।
तरीका मैं सिखा दूँगा।
मित्र हो तो अब चलो, साथ चोरी करने!
माधव दास बोले —
ठीक है… आपसे वाद-विवाद में भला कोई जीत सकता है, जो मैं कुछ बोलूँ!
वैसे भी, प्रभु मित्र बनकर प्रार्थना कर रहे हैं — यही तो मेरे भाग्य का उदय है!
“अब एक चोरी से क्या डरूँ… और जब संगति वैसी बन गई है, तो संगत का थोड़ा असर भी पड़ने देता हूँ खुद पर!”
कहा जाना हैं आज हमें चोरी करने ?
प्रभु बोले, “राजा के बगीचे में चलो, कटहल पक कर झूल रहे हैं, पर राजा भेजता नहीं।”
माधवदास बोले —
प्रभु! बस इतनी-सी बात आप मुझे पहले कहते, तो मैं राजा को आज्ञा दे देता।
वो आपके लिए सारे फल भिजवा देता।
वो राजा, आपके इस तुच्छ सेवक का शिष्य है — हमें मना थोड़ी करेगा!
भगवान बोले —
नहीं माधव! तुम तुच्छ नहीं हो — मेरे मित्र हो।
हर तरह से ज्ञानी, गुणवान और आदरणीय। परंतु अब मेरी मित्रता में पड़ गए हो… और मित्रता तो निभानी ही पड़ेगी! और वैसे भी… मज़ा तो तब है, जब चुराया जाए!
माधवदास जी ने हँसकर कहा — हाँ भाई! अब ओखली में सर डाल ही दिया है, तो कुटाने से डरना क्या…
अब क्या था… दोनों निकल पड़े रात के अंधेरे में — एक भगवान, दूसरा भक्त — चोरी की लीला करने!
आज तो देवता भी स्वर्ग से देख कर माधवदास के भाग्य की सराहना कर रहे होंगे… और शायद थोड़ी ईर्ष्या भी कर रहे होंगे — कि जगत के नाथ, आज स्वयं चोरी करने अपने मित्र के साथ जा रहे हैं। और मित्र भी कैसा… जो अपने स्वामी को ताने मारते हुए भी, उनके साथ खुशी-खुशी चल पड़ा है!
अब आगे माधव पीछे उनके सखा
माधवदास एकदम से रुके और बोले — नहीं मित्र! आप आगे रहिए… आप ही हमारे सरदार हैं।
और कहीं आप पीछे से भाग गए तो?
(थोड़ा ठहराव, फिर भगवान की मुस्कान…)
प्रभु भी चतुराईपूर्वक मुस्कराते हुए बोले — नहीं माधव! अगर तुम भी पीछे से भाग गए तो?
इसलिए बेहतर यही है कि हम साथ चलें!
जैसे ही बगीचे के बाहर पहुँचे,
भगवान ने माधव को ज़ोर से खींचा और बोले —
“क्या कर रहे हो, मित्र माधव! तुम भूल गए कि हम चोरी करने आए हैं?”
माधव बोले —
“अरे! मैंने सोचा जगत के अधीश्वर मेरे साथ हैं, तो मैं क्यों छुपता जाऊँ?”
“और मुझे चोरी करनी आती ही नहीं, तो कैसे पता होगा कि चोरी करने जाते कैसे हैं!”
भगवान ने सिर पकड़कर कहा — “माधव, मुझे तो लग रहा है कि आज माली हमें पकड़े बिना छोड़ेगा नहीं…
साथी भी ऐसा मिला है आज!”
बगीचे के बाहर पहुँचे। प्रभु धीरे से बोले, “शांत रहना, कोई आवाज़ न निकले।”
लेकिन भजन में रमे माधव दास को ये काम कहाँ आता वे तो ठहरे चतुर भगवान ने भोले भंडारी भक्त। जैसे ही पेड़ के पास पहुँचे, पूछ बैठे, ठाकुरजी! किस पेड़ पर चढ़ूं? इस पर या उस पर?
इतनी जोर की आवाज़… कि माली तक जाग गया! डंडा लेकर भागा।
प्रभु ने निराशा के भाव से माथा पकड़ा और माधव दास को झाड़ियों में छुपाया, खुद तो माली के डर अंतर्ध्यान हो गए।
थोड़ी देर बाद फिर प्रयास हुआ।
इस बार प्रभु बोले — माधव! अगर इस बार भी आवाज़ की, तो मैं तुम्हें यहीं फंसा कर भाग जाऊँगा! एक नाम मेरा ‘रणछोड़’ भी है… पता है न?
माधवदास पेड़ पर चढ़े… और फिर वही आदत! कान्हा ओ प्रभु! कौन सा गिराऊँ — ये वाला, या वो वाला?
माली की धमक सुन प्रभु गायब हो गए। माधव दास अकेले पकड़े गए। दो डंडे पड़े, और बंधक बना दिए गए सो तो अलग।
माली ने डपटते हुए पूछा — क्यों आए थे? और किससे बात कर रहे थे?
कौन है तुम्हारे साथ?
उत्तर में माधवदास बोले — चोरी करने आए थे… और मेरे साथ प्रभु भी थे।
माली ने फिर पूछा —
“कौन प्रभु?”
माधवदास बोले — समस्त संसार के प्रभु… मेरे मित्र — श्रीजगन्नाथ!
माली चिढ़कर बोला — पागल हो गए हो क्या?
जगन्नाथजी को चोरी की क्या ज़रूरत पड़ गई — जो तुझे साथ लेकर आएँगे और मुझसे डरकर भाग जाएँगे?
माली ने एक न सुनी और माधवदास को बाँध दिया। रात भर उसे डाँटता रहा।
और उधर, जगन्नाथ जी पेड़ के पीछे से झाँकते हुए… माधवदास की ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे।
सुबह होते ही माली, माधवदास को दरबार ले गया।
माधवदास को इस तरह बँधा हुआ देखकर, राजा तुरंत खड़े हो गए और भागकर उनके हाथों की रस्सियाँ खोल दीं।
ग़ुस्से में आकर, उन्होंने माली को दंड देने की घोषणा कर दी।
मगर माधवदास ने हाथ जोड़कर राजा से कहा — राजन, माली ने तो अपने कर्तव्य का पालन किया है।
और मेरी आज्ञा है — आप माली को क्षमा करें, और उसे बगीचे से न निकालें।
राजा हाथ जोड़कर बोले — गुरुदेव! आपकी आज्ञा का पालन होगा। किन्तु मुझे यह समझ नहीं आया कि आप हमारे बगीचे तक पहुँचे कैसे… और फिर बंदी भी बनाए गए?
माधवदास मुस्कराते हुए बोले — क्या कहें राजन… मेरी तो संगति ही बिगड़ गई है!
और साथ ही, अगर लोक-परलोक सुधारने हों — तो ऐसा भी करना पड़ता है!
राजा ने पूछा, “किसकी संगत और लोक – परलोक सुधारना ऐसे कार्यो से?”
माधवदास बोले — राजन, मैं आपको सब कुछ विस्तार से बताऊँगा…
“पहले थोड़ा आराम कर लूँ। रात भर से आपके माली ने कई तरह की ‘शिक्षा’ देकर जगा रखा है!
राजा उन्हें आदर सहित घर ले गया। वहाँ माधव दास ने सारी लीला सुना दी — प्रभु कैसे साथ ले गए, कैसे गायब हो गए। राजा सुनता गया और श्रद्धा से उसकी आंखें भीग गईं।
फौरन राजा ने अपना पूरा बगीचा श्रीजगन्नाथ के नाम कर दिया।
कहते हैं, आज भी वह बगीचा श्रीजगन्नाथ जी के नाम पर है।
शाम को, माधव दास फिर समुद्र किनारे पहुँचे — इस बार उनके हाथ में एक दस्तावेज़ हाथ में था।
प्रभु प्रकट हुए। मुस्कराकर बोले, और परममित्र संत जी! रात कैसी रही? हमने तो पहले ही कहा था – फुर्ती चाहिए! पर तुम ऐसे पेड़ से उतरे जैसे कोई साधारण योगी तपस्या से उतरा हो!
Bhakt Madhavdas बोले, “हम तो बंध गए, डंडे खाए, आप तो गायब हो गये। कटहल तो मिला नहीं… लेकिन देखो, पूरा बगीचा ले आया आपके लिए!”
प्रभु मुस्कराए… और दोनों मित्र फिर वहीँ समुंदर की लहरों के बीच एक और हँसी बाँटते रहे।
दोस्तों, ऐसे हैं हमारे ठाकुर श्री जगन्नाथजी जो भक्तो के साथ मित्र का सम्बन्ध रख लोक परलोक सुधार देते हैं।
आपको ऊपर बताई गयी कहानी कैसी लगी कृपया हमें जरूर बताये साथ ही अगर आपको किसी कहानी और कथा की जानकारी देनी हो या लेना हैं तो कृपया हमें कमेंट जरूर करे। हम कोशिश करेंगे की आपकी उम्मीदों पर खरा उतरे और आपको सही जानकारी और कथा बताये। जय जगन्नाथ।
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