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Ganga Dussehra : भारत, जहाँ एक तरह अनेक तरह की विविधताओं से भरा हुआ हैं, वैसे ही इस देश के दिन में, किसी न किसी त्यौहार मनाने की गूंज सुनाई ही देती हैं। इस बार हम बात कर रहे हैं माँ गंगा के अवतरण दिवस, गंगा दशहरा की। यह पर्व विशेष रूप से भारत के उत्तरी राज्यों में, बड़ी श्रद्धा, भक्ति, और माँ गंगा के प्रति स्नेही भाव से मनाया जाता हैं। माँ गंगा हमारे देश के लिए केवल एक नदी नहीं हैं, ये भारतीय संस्कृति के ह्रदय में दौड़ती हुई रक्त की भाँति हैं — वह माँ हैं, पाप हरिणी हैं, मोक्ष दायिनी हैं, और भारत के उत्तरी राज्यों को सींचने वाली शक्ति हैं।

आज के आर्टिकल में हम Ganga Dussehra के इतिहास महत्व, पौराणिक कथा, व्रत विधि, महत्वपूर्ण स्थान आदि के बारे में जानेगे।

गंगा दशहरा : एक तपस्या, एक तूफान और एक तेजस्वी अवतरण (Ganga Dussehra : The Descent Day )

आदिकाल में – एक श्राप और एक वंश का पतन

यह कथा प्रारम्भ होती हैं सतयुग से — राजा सगर, जो एक सूर्यवंशी और प्रतापी राजा था। पुराणों के अनुसार, उनके 60,000 पुत्र थे। राजा सगर ने राज्य को सुख और शांति की कामना से अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया, तथा यज्ञ के अश्व या घोड़े को पृथ्वी पर विचरण के लिए छोड़ा। साथ ही, उसके पीछे कई सैनिक भी लगाए ताकि घोड़ा कहीं चुरा न ले या कोई रोक न ले। किंतु फिर भी, एक दिन घोड़ा कहीं और ही निकल गया।

घोड़े की खोज में, सैनिकों के साथ ही राजा के 60,000 पुत्र घोड़े को ढूंढ़ने निकले, लेकिन वह कहीं नहीं मिला।

घोड़े को ढूंढ़ते हुए सभी पाताल लोक पहुंचे, जहाँ उन्हें घोड़ा मिल गया — जो महर्षि भगवान कपिलमुनि के आश्रम के पास था। सभी ने बिना परिचय जाने, महर्षि कपिलजी पर चोरी का आरोप लगा दिया, साथ ही उन्हें बहुत अपमानित भी किया।

कपिलमुनि उन्हें अबोध जानकर पहले तो चुप रहे, किंतु अति होने के बाद, उन्होंने क्रोध में सभी को भस्म होने का श्राप दे दिया। भगवान कपिलमुनि के तेज से, ना तो उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल रहे थे जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो, और ना ही पूर्ण मृत्यु हो रही थी — जिससे वे सभी अशांत, अतृप्त आत्मा बनकर भटकने लगे।

एक राजा का प्रण – जल लाना स्वर्ग से

अनेक पीढ़ियाँ बीत जाने पर भी, जब उनकी मुक्ति का कोई उपाय नहीं निकला, तब राजा भगीरथ अपने पूर्वजों की ऐसी गति देखकर बहुत व्यथित हुए। यहीं से उनके एक महान तपस्वी और युगदृष्टा बनने की शुरुआत हुई, और एक आदर्श राजा की छवि गढ़ी गई।

उन्होंने महान प्रण लिया कि जब तक वे अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए माँ पावनि गंगा जी को स्वर्ग से धरा पर नहीं ले आते, तब तक वे तपस्यारत रहेंगे। उन्होंने यह संकल्प भी लिया कि माँ गंगा को धरती पर लाकर, अपने पूर्वजों का पिंडदान करेंगे और उनके मोक्ष को सुनिश्चित करेंगे।

हिमालय की कंदराओं में, निर्जल और निर्वस्त्र होकर उन्होंने वर्षों तक तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वर दिया।

किंतु सबसे बड़ी समस्या थी गंगा के वेग को सहन करना, जिसके लिए राजा भगीरथ ने माँ धरा से विनम्र निवेदन किया। लेकिन माँ धरा ने कहा कि मुझमें यह सहन करने की क्षमता नहीं है, इसलिए आप केवल महादेव से ही विनती कर सकते हैं।

राजा भगीरथ ने फिर से कई सैकड़ों वर्ष तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया, और उनसे माँ गंगा को अपनी जटाओं में समाहित कर, उनके वेग को कम करके धरती पर बहाने की विनती की।
शिवजी तुरंत प्रसन्न हो गए और गंगा जी के वेग को अपनी जटाओं में समाहित कर, धरती पर उतार दिया। इसके पश्चात, राजा भगीरथ ने गंगा जी में अपने पूर्वजों और पितरों का तर्पण कर, उनका मोक्ष सुनिश्चित किया।

यह दिन था – ज्येष्ठ शुक्ल दशमी — जब गंगा पहली बार पृथ्वी पर अवतरित हुईं।

Ganga Dussehra 2025 पूजन, गंगा स्नान और दान का मुहूर्त

ज्योतिषाचार्यों का मत है की गंगा दशहरा के स्नान का प्रारम्भ 5 जून गुरूवार को सुबह 3 बजकर 35 मिनट पर हस्त नक्षत्र, सिद्धि योग तथा सर्वार्थसिद्धि योग में होना हैं। दशहरा की तिथि 4 जून की रात्रि लगभग 11.54 से जून की देर रात्रि 2.16 तक रहेगी। अतः श्रद्धालु 5 जून को पुरे दिन स्नान और दान पुण्य कर माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस बाऱ 5 जून गुरुवार को भोर 3.35 से सुबह 5.24 तक तथा पुनः सुबह 9.13 तक गंगा स्नान विशेष शुभफल दायी रहेगा।

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पूजा विधि और उपवास (Ganga Dussehra Worship Method and Fasting Ritual)

प्रातः स्नान और संकल्प

  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जल या किसी पवित्र नदी में स्नान करें।
  • जल में तिल, कुशा और दूध मिलाकर स्नान करना विशेष फलदायी माना गया है।
  • यदि गंगा तट पर नहीं हैं तो अपने नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाएं।

Ganga Dussehra 2025 :पूजन सामग्री

  • तुलसी पत्ता
  • अक्षत (चावल)
  • फूल
  • मिट्टी का दीपक
  • धूपबत्ती
  • गंगा जल
  • मिट्टी का कलश
  • दस दीपक और दस तरह के फूल।

Ganga Dussehra पूजन विधि

  • गंगा माता का ध्यान करें और उनके अवतरण की कथा का पाठ करें।
  • “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ गंगायै नमः” या “ॐ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमो नमः मंत्र का जप करते रहना चाहिए।” मंत्र का जप करें।
  • दस दीपक जलाकर गंगा को अर्पित करें।
  • “गंगा अष्टकम्” या “गंगा लहरी” का पाठ करें।
  • अंत में गंगा आरती करें और गंगा जल को अपने ऊपर छिड़कें।

गंगा दशहरा और दान का महत्व (Significance of Ganga Dussehra and Charity)

कौन-कौन से दान करें?

  • जल से भरे कलश का दान
  • छाता, जूते, वस्त्र
  • पंखा (हाथ का या बिजली वाला)
  • सत्तू, फल, शरबत
  • स्वर्ण या रजत (यदि सामर्थ्य हो)

दान के पीछे भाव

ऐसा धार्मिक मान्यताएं हैं की गर्मियों में राहत देने वाले पदार्थों एंड सामग्रियों का दान करने से मनुष्य और दानदाता को जीवन में धैर्य, समृद्धि और संतुलन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह पर्व Ganga Dussehra त्याग और करुणा की शिक्षा देता है।

गंगा दशहरा से जुड़े प्रसिद्ध तीर्थ स्थल (Famous Pilgrimage Sites Associated with Ganga Dussehra)

उत्तर भारत के प्रमुख स्थल

हरिद्वार – यहां गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) का विशेष आयोजन होता है।

वाराणसी – गंगा आरती और दान का विशेष माहात्म्य।

प्रयागराज – त्रिवेणी संगम पर गंगा स्नान और पूजा।

ऋषिकेश – शांति और भक्ति का संगम।

इन तीर्थ स्थलों पर गंगा दशहरा Ganga Dussehra के दिन लाखों श्रद्धालु स्नान, दान और पूजन करते हैं। गंगा तटों पर रंगोली, भजन-कीर्तन और गंगा आरती का आयोजन होता है।

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