Rudrashtakam : भगवान देवाधिदेव महादेव के भक्तों द्वारा रचित अनेक स्तोत्रों में से रुद्राष्टकम एक बहुत ही प्रभावशाली और लोकप्रिय स्तुति है, जो महादेव के स्वरुप और उनकी महिमा का भावपूर्ण वर्णन करती है। भक्तिकाल के महान भक्त और कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। उनके द्वारा लिखा गया यह स्तोत्र संस्कृत में है और रामचरितमानस के उत्तरकांड में मिलता है। रुद्राष्टकम आठ श्लोकों का एक ऐसा स्तोत्र है, जिसे पढ़ते या सुनते समय मनुष्य का हृदय शिवमय हो जाता है।
रुद्राष्टकम क्या है? (What is Rudrashtakam?)
Rudrashtakam भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसकी रचना महान कवि और संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने की थी। यह स्तोत्र संस्कृत भाषा में है और इसमें आठ श्लोक होते हैं, इसलिए इसे “अष्टकम” कहा जाता है। “रुद्र” शब्द भगवान शिव के रौद्र रूप को दर्शाता है। यह स्तोत्र रामचरितमानस के उत्तरकांड में वर्णित है और इसे पढ़ने या सुनने से भगवान शिव की कृपा सहजता से प्राप्त होती है।
गोस्वामी तुलसीदास और रुद्राष्टकम की रचना (Composition of Rudrashtakam)
इस बारे में ऐसी कथा प्रचालित हैं की एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी प्रभु श्री राम का ध्यान कर रहे हैं उसी समय ध्यान में प्रभु श्री श्रीराम ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए। भगवान राम में तुलसी जी ने महादेव के भाव का दर्शन किया प्रभु राम समझ गए और ध्यान में ही बैठे तुलसीदास जी को कैलाश पर्वत महादेव के दर्शन करवाने ले गए। अपने आराध्य के भी आराध्य के दर्शन पाकर तुलसीदास जी ने भगवान शिव की स्तुति करते हुए यह स्तोत्र प्रस्तुत किया। (Rudrashtakam) रुद्राष्टकम में शिव के निर्गुण और सगुण, दोनों रूपों का वर्णन मिलता है। इस स्तोत्र में तुलसीदास जी ने शिव को परम ब्रह्म, निर्विकार, कालातीत और मोक्षदाता बताया है।
रुद्राष्टकम के प्रमुख श्लोक और उनका भावार्थ (Rudrashtakam Shloka)
यहाँ एक प्रमुख श्लोक और उसका भावार्थ देखिए:
“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥”
भावार्थ:
मैं उस ईश्वर को नमस्कार करता हूँ जो ईशान (भगवान शिव) हैं, जो निर्वाण स्वरूप, सर्वव्यापक, ब्रह्म और वेदों के साक्षात स्वरूप हैं। वे निराकार, निर्गुण, निर्विकल्प और इच्छारहित हैं। वे चैतन्य आकाश की भाँति व्याप्त हैं, और आकाश को ही अपना वस्त्र बनाए हुए हैं।
रुद्राष्टकम पढ़ने या सुनने के लाभ (Benefits of Rudrashtakam)
मानसिक शांति और ध्यान शक्ति
रुद्राष्टकम का पाठ मन को शांत करता है और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति को बढ़ाता है। इसकी ध्वनि तरंगें हमारे चित्त को स्थिर करती हैं।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश
भगवान शिव को संहारकर्ता कहा गया है। रुद्राष्टकम के नियमित जप से बुरी शक्तियाँ और ऊर्जा समाप्त हो जाती हैं।
मोक्ष और आत्मिक उन्नति
इस स्तोत्र में शिव को मोक्ष का दाता कहा गया है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक ज्ञान और मुक्ति की दिशा में प्रेरणा मिलती है।
शिव की कृपा प्राप्ति
शिव ‘आशुतोष’ हैं — अर्थात थोड़े से भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं। रुद्राष्टकम उनके प्रति समर्पण का सर्वोत्तम माध्यम है।
रोग और भय से मुक्ति
मान्यता है कि इस स्तोत्र के जप से जीवन में चल रही बीमारियाँ, चिंता और भय दूर हो जाते हैं।
रुद्राष्टकम का पाठ कैसे करें? (How to Recite Rudrashtakam)
- सुबह स्नान करके शांत मन से भगवान शिव के सामने बैठें।
- जल या बिल्व पत्र चढ़ाते हुए पाठ करें।
- सोमवार, प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि के दिन विशेष फल मिलता है।
- यदि पाठ न कर सकें तो श्रद्धा से इसका श्रवण भी करें।
- पाठ के बाद ‘ॐ नमः शिवाय’ का 108 बार जप करें।

रुद्राष्टकम सरल हिन्दी अर्थ | Rudrashtakam with Hindi Meaning
श्लोक 1:
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
भावार्थ:
मैं उस ईश्वर को नमस्कार करता हूँ जो ईशान (भगवान शिव) हैं, जो निर्वाण स्वरूप, सर्वव्यापक, ब्रह्म और वेदों के साक्षात स्वरूप हैं। वे निराकार, निर्गुण, निर्विकल्प और इच्छारहित हैं। वे चैतन्य आकाश की भाँति व्याप्त हैं, और आकाश को ही अपना वस्त्र बनाए हुए हैं।
श्लोक 2:
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम्॥
भावार्थ:
मैं उस निराकार, ओंकार के मूल, चतुर्थ अवस्था वाले, वाणी और ज्ञान से परे, कैलाशपति शिव को नमस्कार करता हूँ। जो प्रलयंकर, महाकाल के भी काल, और दयालु हैं। जो गुणों के भंडार हैं और संसार-सागर से पार ले जाने वाले हैं।
श्लोक 3:
तुषाराद्रिसङ्काश गौरं गम्भीरं मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारुगङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गम्॥
भावार्थ:
जो बर्फ जैसे उज्ज्वल, गंभीर स्वरूप वाले हैं। जिनका शरीर करोड़ों कामदेवों की छवि को मात देता है। जिनके मस्तक पर गंगा बहती है, ललाट पर चंद्रमा सुशोभित है, और गले में सर्प लिपटा है — मैं उन शिव की वंदना करता हूँ।
श्लोक 4:
चलत्कुण्डलं भ्रूलताफेरजानं यशस्वी लसत् पुण्यफालानजानम्।
धनञ्जानिलीलानकं नीलकण्ठं प्रणम्याहं शम्भुं अनेकार्थपंथम्॥
भावार्थ:
जिनके कानों में कुण्डल हिलते हैं, भवें घूमती हैं, जिनका ललाट पुण्य और यश से चमकता है, जो नीले कंठ वाले हैं और जिनके इशारे मात्र से काल का विनाश हो जाता है — मैं उन शिव को नमस्कार करता हूँ।
श्लोक 5:
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयःशूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥
भावार्थ:
जो अत्यंत प्रचंड, प्रभावशाली, निर्भय, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा और करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं। त्रिशूल से अज्ञान का नाश करने वाले, त्रिशूलधारी, भवानी के पति और भक्तों के भाव से प्राप्त होने योग्य हैं — ऐसे शिव को मैं भजता हूँ।
श्लोक 6:
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसन्दोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
भावार्थ:
जो समय के पार, कल्याणकारी, कल्पांत में संहार करने वाले, सदा सज्जनों को आनंद देने वाले, चित्त और आनंद के स्वरूप और मोह का नाश करने वाले हैं — हे कामदेव के शत्रु प्रभु! मुझ पर कृपा करें।
श्लोक 7:
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥
भावार्थ:
हे उमा के नाथ! जब तक मनुष्य इस लोक या परलोक में आपके चरण कमलों की भक्ति नहीं करता, तब तक उसे न सुख मिलता है, न शांति और न ही संतापों से मुक्ति। हे समस्त प्राणियों में व्याप्त प्रभु! कृपा कीजिए।
श्लोक 8:
न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥
भावार्थ:
हे शंभो! मुझे न योग आता है, न जप और न ही पूजन की विधि। मैं तो सदा आपके चरणों में झुका रहता हूँ। हे प्रभु! जन्म-मरण और दुखों से पीड़ित मुझ दुखी की रक्षा करें। मैं आपको नमस्कार करता हूँ।
समापन वंदना (Conclusion):
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
भावार्थ:
यह रुद्राष्टक ब्राह्मण तुलसीदास द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा गया है। जो व्यक्ति भक्ति से इसका पाठ करता है, उन पर स्वयं शंभु प्रसन्न होते हैं।
रुद्राष्टकम का आध्यात्मिक दृष्टिकोण (The Spiritual Perspective of Rudrashtakam)
Rudrashtakam केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि शिवभक्ति की गहराई में ले जाने वाला एक साधन है। इसमें भगवान शिव को केवल देवता नहीं, बल्कि परम ब्रह्म माना गया है। रुद्राष्टकम व्यक्ति को भौतिक संसार से हटाकर दिव्यता की ओर ले जाता है।
इस स्तोत्र में वर्णित शिव दिगंबर हैं, नित्य ध्यानस्थ हैं, सभी प्राणियों के अंत:करण में स्थित हैं और त्रिकालों से परे हैं। यह भाव साधना को गहराई देता है और भक्त को आत्मिक रूप से प्रबुद्ध करता है।
12 Jyotirlinga Stuti : ज्योतिर्लिंग स्तुति महत्व और उनके उपलिंग के नाम।
निष्कर्ष: रुद्राष्टकम क्यों है विशेष? (Why is Rudrashtakam Special?)
Rudrashtakam रुद्राष्टकम एक ऐसा स्तोत्र है जो भाव, भक्ति और ब्रह्मज्ञान — तीनों का संगम है। इसे पढ़ने या सुनने मात्र से ही भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। शिवभक्तों के लिए यह स्तोत्र एक आत्मिक धरोहर है जो जीवन को शांति, ऊर्जा और आध्यात्मिकता प्रदान करता है।
One Comment