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Maa Baglamukhi : हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं का एक विशिष्ट स्थान है, जहाँ प्रत्येक देवी अपने अलग रूप, शक्तियाँ और उद्देश्य लेकर प्रकट होती हैं। उनमें से एक अत्यंत रहस्यमय और शक्तिशाली देवी हैं—माँ बगलामुखी। माँ बगलामुखी को न्याय की अधिष्ठात्री, शक्ति की प्रतिमूर्ति और शत्रुओं को स्तंभित करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उनकी पूजा से व्यक्ति को वाणी की शक्ति मिलती है, दुश्मनों पर विजय प्राप्त होती है और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।

माँ बगलामुखी का ध्यान तांत्रिक साधना में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह देवी स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, जो बुराई और नकारात्मकता को रोकती हैं। इस लेख में हम माँ बगलामुखी के स्वरूप, उनकी उत्पत्ति, पूजा विधि, मंत्र और आधुनिक युग में उनकी प्रासंगिकता के रहस्यों को सरल भाषा में समझेंगे।

Table of Contents

माँ बगलामुखी कौन हैं? (Who is Maa Baglamukhi?)

माँ बगलामुखी न्याय, शक्ति और शत्रुओं के स्तंभन की देवी माना जाता है। माँ बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवें स्थान पर विराजमान हैं और विशेष रूप से तांत्रिक साधना में पूजनीय हैं। माँ की उपासना से शत्रु का नाश होता हैं, नकारात्मक शक्तियाँ समाप्त होती हैं और वाणी तथा मन को शक्ति मिलती है। माँ बगलामुखी का ही अन्य प्रचलित और पावन नाम ‘पीताम्बरा देवी’ भी है क्योंकि माँ का स्वरूप पीले रंग में होता है, जो शक्ति, समृद्धि और आकर्षण का प्रतीक है।

माँ बगलामुखी को साधक उनकी सबसे बड़ी विशेषता है उनकी “स्तंभन शक्ति” के कारण ही पूजता हैं। “स्तंभन शक्ति”— अर्थात् किसी भी नकारात्मक शक्ति, शत्रु या बुराई को रोक देना, उसे निष्क्रिय कर देना। माँ केवल शारीरिक और बाहरी शत्रु ही नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तौर पर आने वाली बाधाओं को भी शांत कर सकती हैं। उनकी पूजा विशेष रूप से तब की जाती है जब किसी को कानूनी विवाद, शत्रु पीड़ा, बुरी नजर या तांत्रिक प्रहार से मुक्ति चाहिए होती है।

दस महाविद्याओं में माँ बगलामुखी का स्थान (Maa Baglamukhi’s Position Among the Ten Mahavidyas)

दस महाविद्याएँ हिन्दू तंत्र परंपरा की शक्तिशाली देवियाँ हैं, जो ब्रह्मांडीय शक्ति की अलग – अलग धाराओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। माँ बगलामुखी आठवें स्थान पर आती हैं। ये दस महाविद्याएँ साधकों को ज्ञान, सिद्धि और मोक्ष प्रदान करती हैं। माँ बगलामुखी की शक्ति अन्य महाविद्याओं से भिन्न है क्योंकि ये न केवल रक्षण करती हैं बल्कि शत्रुओं को पूरी तरह से बल, बुद्धि, विवेकहीन करके निःशक्त कर विनाश कर देती हैं।

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माँ बगलामुखी नाम का अर्थ और उसका रहस्य (The Meaning and Mystery of the Name Maa Baglamukhi)

Maa Baglamukhi का अत्यंत तेजस्वी, दिव्य और प्रभावशाली स्वरूप है। माँ को पीली वस्तुएं सदा ही प्रिय रही हैं इसलिए माँ पीले वस्त्रों में सुशोभित रहती हैं, पीले पुष्पों, चंदन और हल्दी से उनकी पूजा की जाती है, और वे पीले रंग के सिंहासन पर विराजमान होती हैं — इसलिए उन्हें ‘पीताम्बरा देवी’ भी कहा जाता है। माँ का यह पीला स्वरूप उनके आकर्षण, ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। उनके चार भुजाएँ होती हैं, जिनमें वे गदा, पाश (रस्सी) और एक हाथ से शत्रु की जीभ या वाणी को पकड़ती हैं — यह उनके स्तंभन शक्ति का प्रत्यक्ष संकेत है। माँ का मुख सामान्यतः बगल की ओर होता है, जो उनके नाम ‘बगलामुखी’ का रहस्य भी प्रकट करता है।

माँ भगवती का यह स्वरूप दर्शाता है कि माँ बगलामुखी केवल बाहरी शत्रुओं का ही नहीं, बल्कि आंतरिक नकारात्मक विचारों, भ्रम, और मानसिक कमजोरी का भी दमन और नियंत्रण करती हैं। उनका मंदिर, वस्त्र, आसन और पूजा-पद्धति — सबमें पीला रंग प्रमुख होता है, जो उन्हें तांत्रिक साधना और विजय की देवी के रूप में स्थापित करता है।

माँ बगलामुखी की उत्पत्ति की पौराणिक कथा (Origin Story of Baglamukhi Mata)

प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में माँ बगलामुखी की उत्पत्ति का वर्णन अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी है। यह कथा शक्ति, न्याय, और धर्म की स्थापना की अमर गाथा है। कहते हैं कि एक समय ब्रह्मांड में अंधकार और अधर्म फैल गया था। एक दुष्ट असुर जिसका नाम मुकाल था, उसने ब्रह्मा, विष्णु, और शिव सहित देवताओं को भी परास्त कर दिया था। उसकी शक्ति इतनी अपार थी कि वह अपने शब्द और कर्म से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकता था।

मुकाल ने सत्य और धर्म की परवाह छोड़कर अत्याचार और अन्याय फैलाना शुरू कर दिया। देवताओं ने बार-बार उसे रोकने की कोशिश की, परन्तु उसकी वाणी और योजना इतनी तीव्र थी कि उसे कोई भी प्रतिरोध नहीं कर सका। इस प्रकार वह सृष्टि में अशांति, भय और अराजकता का कारण बन गया।

जब देवता और ऋषि-मेधासी उसकी इस दुष्टता से परेशान हो उठे, तब उन्होंने सर्वशक्तिमान ब्रह्मा से मदद मांगी। ब्रह्मा ने विष्णु और शिव के साथ मिलकर समस्त शक्ति को एकत्र किया और एक दिव्य स्त्री के रूप में प्रकट किया। यही थी माँ बगलामुखी, जिनका स्वरूप सुनहरे पीले वस्त्रों में लिपटा हुआ था, उनके चार हाथ थे और चेहरे पर गम्भीरता एवं करुणा का अद्भुत मेल था।

Maa Baglamukhi ने स्वयं कहा — “मैं वह शक्ति हूँ जो अधर्म को स्तम्भित कर सकती हूँ। जो भी मेरी शरण में आएगा, वह निश्चित ही विजय और न्याय की प्राप्ति करेगा।” उनके हाथों में एक हाथी का मूसल था जिससे वे दुष्टों को परास्त करती थीं, और दूसरे हाथ से वे अपने शत्रुओं की जीभ पकड़ती थीं ताकि वे कुछ भी बुरा बोल न सकें।

एक भयंकर युद्ध के दौरान, जब मुकाल ने अपनी वाणी और माया से देवताओं को नष्ट करने का प्रयास किया, तब माँ बगलामुखी ने अपनी स्तम्भन शक्ति का प्रयोग किया। उन्होंने मुकाल की जीभ पकड़कर उसे बोलने से रोक दिया, उसकी सभी शक्तियों को निष्प्रभावी कर दिया। इस स्तम्भन शक्ति के कारण मुकाल और उसके दुष्ट साथी अपने किसी भी दुष्कर्म को अंजाम नहीं दे सके।

Maa Baglamukhi की यह स्तम्भन शक्ति न केवल बाहरी दुश्मनों पर काम करती है, बल्कि आंतरिक नकारात्मकता, बुरी आदतों, गलत विचारों और मानसिक विकारों को भी शांत करती है। इसलिए तांत्रिक साधना में माँ बगलामुखी की पूजा विशेष महत्व रखती है।

कहा जाता है कि माँ बगलामुखी के अवतरण से ब्रह्मांड में पुनः शांति, न्याय और संतुलन स्थापित हुआ। उनके प्रभाव से देवताओं को पुनः अपनी शक्तियां वापस मिलीं और मुकाल जैसे दुष्ट असुरों का अंत हुआ।

स्तंभन शक्ति की उत्पत्ति

Mata Baglamukhi की सबसे महत्वपूर्ण और विशेष शक्ति है — स्तंभन शक्ति। यह शक्ति केवल बाह्य शत्रुओं को रोकने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शक्ति विचार, वाणी और नकारात्मकता को भी स्थिर कर देती है। तांत्रिक साधना में यह शक्ति सर्वोच्च मानी जाती है, क्योंकि जब कोई साधक अपने भीतर की अशांति, भ्रम और भय को रोकना चाहता है, तो वही शक्ति उसका सहारा बनती है।

स्तंभन का अर्थ है — “रोक देना” या “स्थिर करना”। Maa Baglamukhi की यह शक्ति इतनी प्रभावशाली मानी जाती है कि अगर कोई शत्रु आपके खिलाफ कुछ बोलने जा रहा हो, तो वह वाक्य बोलने से पहले ही रुक जाए। अगर कोई बुरी योजना बना रहा हो, तो वह योजना असफल हो जाए।

कहा जाता है कि जब Maa Baglamukhi ने उस असुर की जीभ पकड़ी, उसी क्षण से स्तंभन शक्ति का उदय हुआ। तब से यह शक्ति सभी तांत्रिक साधनाओं में एक केंद्रबिंदु बन गई। जो साधक Maa Baglamukhi की कृपा से इस शक्ति को सिद्ध कर लेता है, वह अपने जीवन में संकटों को रोकने, शत्रुओं को निष्क्रिय करने और मानसिक स्थिरता प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है।

इस शक्ति को प्राप्त करने के लिए विशेष साधना, अनुशासन, और गुरु-दीक्षा की आवश्यकता होती है। लेकिन Maa Baglamukhi की भक्ति सच्चे मन से की जाए, तो यह शक्ति आम भक्तों के जीवन में भी शांति, नियंत्रण और सुरक्षा लाती है।

माँ बगलामुखी की उपासना का महत्व (The Significance of Worshiping Mata Baglamukhi)

Maa Baglamukhi का तंत्र और साधना में विशेष स्थान है। माँ बगलामुखी की उपासना विशेष रूप से वाक्-सिद्धि, शत्रुनाश, न्यायिक विजय और मानसिक शक्ति प्राप्ति के लिए की जाती है। तांत्रिक ग्रंथों और साधको के अनुसार, माँ की साधना करने से शत्रु निःशक्त हो जाते हैं, मनुष्य को विवादों में सफलता मिलती है, और माँ की असीम कृपा से मनुष्य की वाणी में ऐसा प्रभाव उत्पन्न होता है कि वह जो कहे वही हो जाए।

माँ की उपासना विशेष रूप से वे लोगों करते है, जो न्यायिक संघर्ष, कोर्ट केस, राजनीतिक विरोध या किसी शत्रुता का सामना कर रहे हों। माँ की कृपा से शत्रु चाहे कैसा भी हो उसकी की सोच, वाणी और कार्य रुक जाते हैं। इसे ही उनकी स्तंभन शक्ति का प्रभाव कहते है।

Maa Baglamukhi की उपासना में पीले वस्त्र, हल्दी, चने, और पीले पुष्प का विशेष महत्व है। शुक्रवार और अमावस्या को माँ की आराधना अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। यदि भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक माँ का जाप और पूजन करता है, तो Maa Baglamukhi की कृपा से उसके जीवन में स्थिरता, विजय और सुरक्षा प्राप्त होती है।

वाक्-सिद्धि, विजय और शत्रुनाश की देवी

जैसा की आप सभी जानते हैं माँ बगलामुखी को वाणी को नियंत्रित करने वाली देवी भी कहा जाता हैं। माँ की भक्ति के प्रभाव से भक्त की वाणी में ऐसी शक्ति का संचार होने लगता हैं कि उसकी बातों में प्रभाव, आकर्षण और सिद्धि आ जाती है — जिसे ‘वाक्-सिद्धि’ कहा जाता है। यह विशेषता उन्हें अन्य महाविद्याओं से अलग करती है।

वाक् -सिद्धि के कारण ही माँ के भक्तों में वकालत, राजनेता और सार्वजनिक जीवन जीने वाले भक्त अधिक हैं। जो व्यक्ति आत्म-बल, आत्मविश्वास और मानसिक शक्ति बढ़ाना चाहता है, उसके लिए Maa Baglamukhi की साधना सर्वोत्तम मानी जाती है।

तांत्रिक साधना में माँ बगलामुखी की भूमिका (The Role of Maa Baglamukhi in Tantric Sadhana)

तंत्र विद्या में Maa Baglamukhi को ‘स्तंभन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी’ माना गया है। उनके माध्यम से साधक अपनी इंद्रियों, शत्रुओं और वातावरण पर नियंत्रण प्राप्त करता है। तांत्रिक साधनाओं में माँ की कृपा से कई विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, जिनमें शत्रु वश, वाक् सिद्धि, विजय प्राप्ति और रक्षा शामिल हैं।

माँ की तांत्रिक साधना अधिकतर गुप्त स्थानों, जैसे पीठों, श्मशानों, या एकांत कक्षों में की जाती है। साधक को गुरु द्वारा दीक्षा प्राप्त करनी होती है, और फिर निश्चित संख्या में मन्त्रों का जाप कर साधना पूर्ण करनी होती है।

इन साधनाओं में पीली हल्दी, पीले वस्त्र, और पीतांबरी देवी की मूर्ति का विशेष स्थान होता है। तंत्र में Maa Baglamukhi की साधना को अत्यंत प्रभावशाली माना गया है, क्योंकि यह साधना शत्रुओं की गतिविधियों को रोकने, निर्णय को अपने पक्ष में मोड़ने और आत्मरक्षा में मदद करती है।

हालांकि यह साधना शक्ति का मार्ग है, इसलिए इसके लिए संयम, शुद्ध आचार और गुरु मार्गदर्शन अति आवश्यक होता है।

सामान्य भक्तों के लिए सरल पूजा विधियाँ (Easy Worship Practices for Common Devotees)

जरुरी नहीं की माँ की साधना सिर्फ तांत्रिक विधि से ही की जाए। मनुष्य बिना तंत्र के भी माँ की भक्ति और पूजा कर सकता हैं। जो बहुत ही सरल विधि से माँ की उपासना घर पर ही कर सकता हैं।

पूजा के लिए पीले वस्त्र, पीले पुष्प, चने की दाल, हल्दी और गाय के घी का दीपक आवश्यक होता है। रोज़ प्रातः या संध्या समय में माँ की तस्वीर या मूर्ति के सामने बैठकर निम्न मन्त्र का 108 बार जाप करें:

“ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा”

हर मंगलवार, गुरुवार या अमावस्या को पूजा करना विशेष फलदायी होता है। साथ ही, माँ की आरती, पीले वस्त्रों का दान, और पीतांबरा चालीसा का पाठ करने से भी माँ की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

Maa Banglamukhi Mantra

माँ बगलामुखी के प्रमुख मंत्र और उनका अर्थ (Main Mantras of Maa Baglamukhi and Their Meanings)

Maa Baglamukhi के मंत्रों से उपासना करना बहुत लाभकारी होता हैं लेकिन उतना खतरनाक भी हो सकता हैं। जैसे की हम सभी जानते हैं की माँ के मन्त्रों में अद्भुत स्तंभन शक्ति होती हैं, जो शत्रु की वाणी , बुद्धि को स्तंभित कर उनका अंत कर देती हैं। हालांकि माँ के बीज मन्त्र से तांत्रिक ही नहीं लौकिक लाभ भी होते हैं।

माँ बगलामुखी के मंत्रो का पूर्ण विधि पूर्वक जाप करने पर ये अपना प्रभाव तत्काल ही दिखाने लगता हैं और मनुष्य की नकारात्मक ऊर्जा, बुरी दृष्टि और मानसिक भ्रम को तुरंत दूर कर देते हैं।

ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा

यह Maa Baglamukhi का सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली मंत्र है, जिसे “स्तंभन मंत्र” कहा जाता है। इसमें निम्न अर्थ निहित है:

  • “ॐ ह्लीं” – यह बगलामुखी का बीज मंत्र है, जो उनकी स्तंभन शक्ति को जाग्रत करता है।
  • “सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय” – सभी शत्रुओं की वाणी, चेहरा, और क्रियाओं को स्थिर (रोक) कर दो।
  • “जिव्हां कीलय” – उनकी जीभ (वाणी) को कील (स्थिर/निष्क्रिय) कर दो।
  • “बुद्धिं विनाशय” – उनकी बुद्धि को नष्ट कर दो, जिससे वे किसी भी प्रकार की हानि न कर सकें।
  • “ॐ स्वाहा” – मंत्र का समापन, जिससे शक्ति का आह्वान पूर्ण होता है।

यह मंत्र विशेष रूप से तब उपयोगी होता है जब किसी को कानूनी विवाद, शत्रु बाधा, या मानसिक अस्थिरता से राहत चाहिए। नियमपूर्वक जाप से माँ बगलामुखी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

माँ बगलामुखी मंत्र जप की विधि और लाभ (Maa Baglamukhi Mantra Chanting Method and Benefits)

Maa Baglamukhi मंत्र का जाप करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है ताकि उसका पूर्ण लाभ मिल सके।

जप की विधि:

  1. सुबह स्नान करके पीले वस्त्र पहनें और माँ की पीले वस्त्रों में मूर्ति या चित्र के सामने आसन लें।
  2. पीले आसन (कुशासन या ऊन का आसन) का प्रयोग करें।
  3. सामने पीले फूल, हल्दी, और चने का प्रसाद अर्पित करें।
  4. कम से कम 108 बार रुद्राक्ष या हल्दी की माला से मंत्र का जाप करें।
  5. मन को एकाग्र करके श्रद्धा पूर्वक जाप करें।

लाभ:

  • शत्रु की शक्ति और वाणी निष्क्रिय होती है।
  • वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है।
  • आत्मबल, मानसिक शांति और साहस बढ़ता है।
  • नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
  • कोर्ट-कचहरी जैसे मामलों में सफलता के योग बनते हैं।

नियमपूर्वक और शुद्ध चित्त से किए गए मंत्र जाप से Maa Baglamukhi शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त की रक्षा करती हैं।

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माँ बगलामुखी मंत्र जाप में सावधानियाँ (Precautions While Chanting Maa Baglamukhi Mantras)

माँ बगलामुखी के मंत्र अत्यंत शक्तिशाली माने जाते हैं। इसलिए इनके जाप में विशेष सावधानियों का पालन आवश्यक होता है:

  1. गुरु दीक्षा: यदि आप तांत्रिक साधना या विस्तृत जाप करना चाहते हैं, तो पहले किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेना अनिवार्य है।
  2. मंत्र की शुद्धता: मंत्र का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट हो। कोई भी त्रुटि न करें।
  3. नियमबद्धता: जाप एक ही स्थान और समय पर करें। अनियमितता से परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।
  4. शुद्ध आहार और आचरण: साधना के दौरान सात्विक आहार, संयमित जीवन और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  5. नकारात्मक प्रयोग से बचें: इस मंत्र का प्रयोग कभी भी किसी को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से न करें। इससे उल्टा प्रभाव पड़ सकता है।
  6. मंत्र गोपनीय रखें: मंत्र जाप की संख्या, प्रक्रिया और उद्देश्य को सार्वजनिक न करें। गोपनीयता बनाए रखें।

इन सावधानियों का पालन करने से माँ बगलामुखी की कृपा जल्दी और स्थायी रूप से प्राप्त होती है। साथ ही साधक को आध्यात्मिक और लौकिक दोनों लाभ प्राप्त होते हैं।

माँ बगलामुखी मंदिर और तीर्थस्थल (Maa Baglamukhi Temples and Pilgrimage Sites)

Maa Baglamukhi की उपासना भारत में कई पवित्र स्थलों पर की जाती है, जहां उनकी विशेष शक्ति का अनुभव साधक व भक्त करते हैं। ये तीर्थस्थल न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं, बल्कि तांत्रिक साधना के लिए भी अत्यंत उपयुक्त माने जाते हैं। इनमें से कुछ मंदिरों को शक्तिपीठ का दर्जा भी प्राप्त है। आइए जानते हैं Maa Baglamukhi के तीन प्रमुख मंदिरों और तीर्थस्थलों के बारे में।

नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) मंदिर (Nalkheda Maa Baglamukhi Mandir, Madhya Pradesh)

मध्यप्रदेश के आगर मालवा जिले के नलखेड़ा नगर में स्थित माँ बगलामुखी मंदिर लखुंदर नदी के तट पर पूर्व दिशा में स्थित है। यह मंदिर त्रिशक्ति स्वरूपा माँ बगलामुखी का प्रमुख सिद्धपीठ माना जाता है, जहाँ माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती भी साथ विराजमान हैं।

मान्यता है कि महाभारत काल में जब पांडव विपत्ति में थे, तब भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश पर उन्होंने माँ बगलामुखी की उपासना की थी। माँ ने प्रकट होकर उन्हें कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया था। इस उपासना के फलस्वरूप पांडवों ने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया। कहा जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने माँ के आशीर्वाद के बाद यहाँ मंदिर का निर्माण कराया।

मंदिर की स्थापत्य कला और इतिहास

प्राचीनता: मंदिर का वर्तमान स्वरूप के बारे में कहा जाता हैं की यह मंदिर लगभग 1500 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य के जीवन काल में निर्मित हुआ था।

दीपमाला: मंदिर के सामने परिसर क्षेत्र में 80 फीट ऊँची दीपमाला स्थित है, यह संध्या समय में दिव्य ज्योति से अलंकृत होती है।

सभा मंडप: मंदिर में 16 खंभों वाला सभा मंडप है, इस मंडप के बारे में जानकारी मिलती हैं की यह निर्माण संवत 1815 में कारीगर तुलाराम के द्वारा भक्ति भाव से कराया गया था।

तांत्रिक साधना और सिद्धपीठ का महत्व

इस मंदिर की मान्यता तांत्रिक साधकों के लिए विशेष महत्व रखती है। यहाँ देशभर ही नहीं दुनियाभर से सनातन और हिन्दू संस्कृति को मानने वाले शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तथा तांत्रिक अपनी सिद्धि और अनुष्ठान के लिए आते हैं।

पीताम्बर स्वरूप: यहाँ पर माँ बगलामुखी की प्रतिमा पीले रंग से सुशोभित हैं, इसलिए पूजा में साधक पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी और चने आदी वस्तुएं विशेष रूप से अर्पित करते है।

स्वयंभू मूर्ति: यहाँ माँ बगलामुखी के साथ ही माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी की प्रतिमाएं भी स्वयंभू मानी जाती है, जिसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन यह मान्यता है कि यह मूर्तियाँ शाश्वत काल से यहाँ विराजमान है।

पीतांबरा पीठ, दतिया: माँ बगलामुखी का सिद्ध शक्तिपीठ (Datia Maa Baglamukhi Shaktipeeth, Madhya Pradesh)

पीतांबरा पीठ (दतिया) की स्थापना 1920–1930 के दशक में स्वामीजी महाराज (जिनका वास्तविक नाम आज भी रहस्य है) द्वारा की गई थी। स्वामीजी एक महान तांत्रिक साधक थे, जिनके तप और साधना से यह स्थान एक सिद्धपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। मंदिर परिसर में माँ बगलामुखी के साथ-साथ दस महाविद्याओं में से एक माँ धूमावती का मंदिर भी स्थित है। इसके अतिरिक्त, परिसर में वनखंडेश्वर शिव मंदिर, हनुमान, काल भैरव, और परशुराम आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं।

हालांकि मंदिर के निर्माण और उसके भव्य रूप को आकार देने में दतिया रियासत के तत्कालीन महाराजा का आर्थिक और प्रशासनिक सहयोग अवश्य रहा। कई स्रोतों में महाराजा बदन सिंह जूदेव का नाम इस कार्य में सहायक के रूप में उल्लेखित है, लेकिन स्थापक (Founder) के रूप में नहीं।

मुख्य संस्थापक और साधक:
➤ स्वामीजी महाराज ही इस शक्तिपीठ के मूल तांत्रिक साधक और आध्यात्मिक संस्थापक माने जाते हैं।
➤ उनकी देखरेख और साधनाओं के परिणामस्वरूप इस स्थल को माँ बगलामुखी की सिद्धपीठ के रूप में पहचान मिली।

Read The Link : Maa Kamakhya Shaktipith

माँ बगलामुखी तांत्रिक साधना और विशेषता (antric Worship and Significance of Maa Baglamukhi)

माँ बगलामुखी को तंत्र साधना की प्रमुख देवी माना जाता है। यहाँ विशेष रूप से गुप्त नवरात्रि के दौरान साधक तांत्रिक अनुष्ठान करते हैं। माना जाता है कि माँ की कृपा से शत्रु नष्ट होते हैं, वाक्-सिद्धि प्राप्त होती है, और न्यायिक मामलों में सफलता मिलती है।

मंदिर की विशेषताएँ

  • दर्शन व्यवस्था: भक्तों को माँ के दर्शन एक छोटी सी खिड़की से होते हैं, क्योंकि प्रतिमा का स्पर्श वर्जित है।
  • संस्कृत पुस्तकालय: मंदिर परिसर में एक संस्कृत पुस्तकालय है, जहाँ तंत्र साधना से संबंधित ग्रंथ उपलब्ध हैं।
  • हरिद्रा सरोवर: मंदिर के सामने स्थित यह सरोवर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

कामाख्या में माँ बगलामुखी (Maa Baglamukhi Worship at Kamakhya, Assam)

कामाख्या शक्तिपीठ, असम के गुवाहाटी में स्थित है और यह तंत्र साधना का सर्वोच्च स्थान माना जाता है। यहीं पर Maa Baglamukhi की विशेष उपासना भी की जाती है।

हालाँकि कामाख्या देवी मुख्य रूप से माँ कामाख्या के रूप में जानी जाती हैं, लेकिन यहाँ के विभिन्न उपमंडपों में दस महाविद्याओं की उपासना होती है, जिनमें Maa Baglamukhi भी प्रमुख हैं।

यहाँ आने वाले तांत्रिक साधक Maa Baglamukhi की गुप्त साधना करते हैं। विशेष रूप से गुप्त नवरात्रि के समय यहाँ साधकों की संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है। माना जाता है कि यहाँ की साधना अत्यंत फलदायक होती है और माँ स्वयं साधकों की साधना को स्वीकार करती हैं।

कामाख्या मंदिर परिसर में Maa Baglamukhi का स्थान अत्यंत गुप्त और रहस्यमय माना जाता है। यहाँ साधक गुरु-मार्गदर्शन में ही साधना करते हैं और बहुत-से चमत्कारी अनुभव करते हैं।

दोस्तों, हमने माँ बंगलामुखी के अनसुलझे रहस्यों को विस्तार से बताया है। अगर आपको ऊपर बताई जानकारी अच्छी लगी तो निचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करे और आगे भी शेयर करे। कृपया ऐसी ही और रोचक जानकरी के लिए हमारे अन्य ब्लोग्स और आर्टिकल जरूर पढ़े। 

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