
Dashavatar : आज हम आपको भगवान श्री हरि विष्णु के 10 अवतारों के बारे में बताएँगे जिन्हे दशावतार भी कहा जाता है। भगवान ने हर युग धरती की रक्षा के लिए अवतार लिए है। इसलिए भगवान श्री कृष्ण में गीता में कहा है –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
इस श्लोक का अर्थ : मैं अवतार लेता हूं. मैं प्रकट होता हूं. जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं। जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।
आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आपको भगवान विष्णु के 10 अवतार के कहानी बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं।
प्रथम अवतार: मत्स्य अवतार – First Avatar in the Dashavatar: Matsya Avatar
मत्स्य अवतार पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने इस सृष्टि को रुलाए से बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था। इसकी कहानी कुछ इस प्रकार है कि कृतयुग यानी कि सतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत 1 दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक प्यारी सी और छोटी मछली आ गई उन्होंने देखा कि क्यों ना मैं इसे सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने राजा से कहा कि आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा मुझे अन्य बड़ी मछलियां खा जाएगी। तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में डाल दिया मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे एक सरोवर में डाल दिया तब देखते ही देखते वह सरोवर से भी बड़ी हो गई!
राजा समझ गए यह कोई साधारण जो नहीं है और राजा ने मछली से प्रार्थना की कि वह अपने वास्तविक रूप में उन्हें दर्शन दे। राजा की प्रार्थना सुनकर साक्षात भगवान श्री हरि विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि यह मेरा मत्यावतार है।
भगवान ने सत्यव्रत से कहा कि हे राजन ! आज से 7 दिन बाद इस सृष्टि पर प्रलय होगा, तब मेरी ही प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम उस नाव में सप्तर्षियों औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना और जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी तो मैं इस मत के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा और उस समय तुम वासु की नाक के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, यह मैं तुम्हें वरदान देता हूं। जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्मा नाम से विख्यात होती है तुम्हारे में प्रकट हो जाएगी तब समय आने पर रूप धारी भगवान् श्री हरी विष्णु ने राजा सत्यव्रत को तत्व ज्ञान का उपदेश दिया और इसी उद्देश्य को पूरा नाम से प्रसिद्ध किया।
द्वितीय अवतार : कूर्म अवतार – Second Avatar in the Dashavatar: Kurma Avatar
हिंदी धर्मों के ग्रंथो के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने दशावतार में से दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए के रूप में लिया। कूर्म अवतार को ही कच्छप अवतार भी कहा जाता है। कूर्म अवतार की कथा इस तरह हैं की एक बार देवताओं के राजा इंद्र ने महर्षि दुर्वासा का अपमान कर दिया। जिससे क्रोधीत होकर ऋषि दुर्वासा ने श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण संसार भी श्रीहीन हो गया। तब इंद्रदेव भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और उन्होंने समुद्र मंथन के लिए कहा। इसके लिए असुरो की भी आवश्यकता थी, इसलिए राजा बलि इसके लिए तैयार हो गए और देवताओ के साथ मिलकर समुद्र मंथन बीड़ा उठा लिया।
सुमद्र मंथन शुरू हुआ इसमें मदरांचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। मंथन शुरू होते ही मदरांचल समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर सभी देवता ने विष्णुजी को फिर से समस्या हल करने की प्रार्थना की और भगवान विशाल कूर्म का रूप धारण कर समुद्र में मदरांचल के आधार बन गए। भगवान कच्छप की पीठ पर मंदरांचल अच्छे से घूमने लगा और उनके सहयोग से मंथन संपन्न हुआ।
तृतीया अवतार : वराह अवतार – Third Avatar in the Dashavatar: Varaha Avatar
दशावतार में तीसरा अवतार भगवान श्री विष्णुजी ने वराह अवतार लिया। वराह अवतार से जुडी कहानी कुछ इस तरह है की एक समय में हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया तब ब्रम्हा के नाक से भगवान विष्णु ने वराह रूप में अवतार लिया। उनका यह रूप देख कर सभी ऋषि मुनियों ने भगवान की स्तुति की। सबकी प्रार्थना से प्रसन्ना होकर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया। अपनी थूथनी का उपयोग कर उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों और थूथनी के बीच में रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।
जब हिरण्याक्ष ने यह देखकर भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में बहुत भीषण युद्ध हुआ। अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष राक्षस का वध कर दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।
चौथा अवतार : भगवान नृसिंह – Fourth Avatar in the Dashavatar: Bhagavan Narsimha
दशावतार में चौथा अवतार भगवान श्री हरि विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया। समय में दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यपु का वध करने के लिए ये अवतार लिया था। इसकी कहानी कुछ इस तरह है की हिरण्यकश्यपु स्वयं को भगवान श्री हरि से भी ज्यादा बलवान मानता था। उसे भगवान ब्रम्हा ने वरदान दिया था की वह न मनुष्य, न देवता, न पक्षी, न पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरेगा। वह हर उस मनुष्य को दण्ड देता था जो भगवान विष्णु की पूजा करता था।
हिरण्यकश्यपु एक पुत्र का नाम था प्रह्लाद। भक्त प्रह्लाद बालपन से भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। इसीलिए वह प्रह्लाद को बहुत समझाने का प्रयास किया और जब वह नहीं माना तो वह बहुत क्रोधित हुआ, लेकिन फिर भी जब भक्त प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड की सजा दे दी।
हर बार भगवान विष्णु अपन भक्त को उसके दण्ड से वह बचा लेते। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान भगवान ब्रम्हा से प्राप्त था, बुआ होलिका प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। इस बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं ही भक्त प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान श्री हरि विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने ना दिन में न रात में न अस्त्र से न शस्त्र से और ने इंसान, न जानवर और न ही पक्षी बल्कि इंसान, जानवर और पक्षी तीनो का रूप लेकर अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
पाँचवा अवतार : वामन अवतार – Fifth Avatar in the Dashavatar: Vamana Avatar
सत्ययुग में भक्त प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर देवराज को स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय बाद भगवान श्री हरि विष्णु ने वामन अवतार लिया।
एक बार जब महाराज बलि महान यज्ञ कर रहे थे। तब भगवान वामन, राजा बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से भगवान वामन ने तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु या कहे दैत्यगुरु शुक्राचार्य भगवान विष्णु की लीला समझ गए और उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन राजा बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले ही लिया।
संकल्प लेते ही भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर लिया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब प्रभु को तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो राजा बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। राजा बलि के सिर पर पग रखते ही राजा बलि सुतललोक पहुंच गये। राजा बलि की दानवीरता और भक्ति देखकर भगवान ने प्रसन्न होकर उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया और देवताओ को स्वर्ग का राज्य वापस दे दिया।
छठवाँ अवतार : परशुराम अवतार – Sixth Avatar in the Dashavatar: Parashurama Avatar
दशावतार में छठा अवतार है। भगवान श्री परशुराम का भगवान परशुराम की जन्म के संबंध में दो कथाएं कथाएं प्रचलित है। लेकिन हम आपको हरिवंश पुराण के अनुसार ही उन्हीं में से एक कथा बताएंगे प्राचीन समय में महा महिष्मति नगर पर शक्तिशाली वंश का शासन था, वह बहुत ही शक्तिशाली एवं अभिमानी शासक था।
एक बार अग्निदेव ने सहस्त्रबाहु से भोजन कराने का आग्रह किया तब अहंकार में चूर होकर सहस्त्रबाहु ने अग्निदेव से कहा कि तुम्हें जहां से भोजन प्राप्त करना हो तुम कर लो क्योंकि सभी जगह मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने उनका भोजन प्राप्त करने के लिए वनों को जलाना प्रारंभ कर दिया। एक वन में ऋषि आपव जो बहुत ही प्रतापी ऋषि थे। वह तपस्या कर रहे थे उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे ऋषि आपव इतने क्रोधित हुए और उन्होंने अग्नि से इस कृत्य का कारण पूछा तो अग्नि ने सारी कथा निशा को बताई। ऋषि आपव ने श्राप दिया कि भगवान विष्णु एक ऋषि के रूप में अवतार लेंगे के रूप में अवतार लेंगे और सभी दुष्टों का सर्वनाश करेंगे ।
दोस्तों, कई जगह हम लोग पड़ते हैं, कि भगवान परशुराम ने 20 बार 21 बार को मारकर इस धरती से को क्षत्रिय विहीन कर दिया, लेकिन यह बात पूरी तरीके से गलत है क्योंकि क्योंकि भगवान परशुराम ने सिर्फ और सिर्फ अधर्मी और दुष्ट क्षत्रियों का ही सर्वनाश किया था। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्नि के पांचवे पुत्र के रूप में जन्म लेकर संसार को अधर्मी और दुष्ट राजाओ से मुक्ति दिलाई।
अष्ट चिरंजीवी में भगवान परशुराम का भी नाम आता है। भगवान श्री हरि विष्णु का एक मात्र अवतार है, जो अमर है। रामायण में कहे गए कथन के अनुसार हमें यह ज्ञात होता है की भगवान परशुराम महेन्द्रगिरि पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और अब वे कल्कि अवतार के समय ही फिर से दर्शन देंगे और भगवान कल्कि के साथ मिलकर इस संसार को दुष्टों और पापियों से बचाएंगे।
सातवां अवतार : श्रीराम अवतार – Seventh Avatar in the Dashavatar: Shri Rama Avatar
दशावतार में अवतार सातवां भगवान श्री हरि विष्णु ने प्रभु श्री राम के रूप में लिया। यह अवतार त्रेतायुग युग में लिया गया। त्रेता युग में राक्षस रावण का बहुत ही ज्यादा आतंक हो चुका था। देवता, यक्ष, गंधर्व आदि भी उससे डरते थे। उसी के वध के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने महाराज दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म दिया। इस अवतार में भगवान श्री हरि विष्णु ने अनेकों राक्षसों का वध कर दिया और मर्यादा का पालन करते हुए इस संसार को मर्यादा का पाठ पढ़ाया।
अपने पिता द्वारा दिए गए एकवचन को पूरा करने के लिए प्रभु श्री राम को वनवास चले गए। वनवास के समय रावण नाम का एक राक्षस उनकी भार्या देवी सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया। महावीर हनुमान द्वारा सीता जी को लंका में खोजने के बाद प्रभु श्री राम अपनी सेना सहित लंका पहुंचे। वहां रावण के साथ युद्ध किया जिसमें रावण मारा गया और इस प्रकार भगवान श्री हरि विष्णु राम अवतार लेकर देवताओं, मनुष्य, गंधर्व, किन्नर, यक्ष आदि को रावण के भय से मुक्त किया और इस संसार को मर्यादा का पाठ पढ़ाया।
आठवां अवतार : श्रीकृष्ण अवतार – Eighth Avatar in the Dashavatar: Shri Krishna Avatar
दशावतार में आठवां अवतार भगवान श्री हरि विष्णु भगवान ने श्री कृष्ण के रूप में लिया। यह अवतार द्वापर युग में भगवान ने लिया और कई अधर्मियों का नाश किया। भगवान श्री कृष्ण का जन्म अपने मामा श्री के यहां कारागार में हुआ। उनके पिता का नाम वसुदेव था और इनकी माता जी का नाम देवकी था। तथा इनका पालन-पोषण मैया यशोदा और नंद बाबा के यहां हुआ। भगवान श्री कृष्ण ने इस अवतार में कई अनेक चमत्कार किए और अधर्मियों का सर्वनाश किया।
भगवान श्री कृष्ण ने उनके मामा कंस का वध किया था। महाभारत में भगवान अर्जुन के सारथी बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर उन्होंने इस धरती पर धर्म की स्थापना की। भगवान श्री विष्णु का अवतार सभी अवतारों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है इसीलिए इन्हें योगेश्वर कृष्ण भी कहा जाता है।
नौवां अवतार : बुद्ध अवतार – Ninth Avatar in the Dashavatar: Buddha Avatar
धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार थे, लेकिन पुराणों में ऐसा बताया गया है कि बुद्धदेव का जन्म गया के समीप टिकट में हुआ है एवं उनके पिता का नाम अजय है। यह प्रसंग पुराण में कुछ इस तरह बताया गया है, एक समय दैत्यों की शक्ति बहुत ज्यादा ही बढ़ गई थी।
देवता भी उन से डरने लगे थे एवं अपना राज्य छोड़कर भाग चुके थे। राज्य के कामना से दैत्यों ने इंद्र से पूछा कि हमारा राज्य स्थिर रहे इसका क्या उपाय है तब इंद्र ने बताया कि सुशासन करने के लिए यज्ञ एवं वैद्युत आचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने में लग गए। उनकी शक्तियां बढ़ने लगी और अधिक बढ़ने लगी। तब सभी देवता भाग कर श्री हरि के पास पहुंचे। देवताओं के हित के लिए बुद्ध अवतार लिया। उनके हाथ में मार्जनी थी और वह मार्ग को बुहारते हुए चलते थे।
एक बार गौतम बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। जिससे जीव हिंसा होती है, यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध का उपदेश देते को सही लगा और भी प्रभावित हो गए उन्होंने यज्ञ और वैदिक करना छोड़ दिया जिसके कारण उनकी शक्तियां कम हो गई और देवताओं ने हमला कर अपना राज्य फिर से प्राप्त कर लिया।
दसवां अवतार : कल्कि अवतार – Tenth Avatar in the Dashavatar: Kalki Avatar
हमारे हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु कलयुग में कल्कि रूप में अवतार लेने वाले हैं। कल्कि अवतार कलयुग और सचिव के संधिकाल में होगा। यह अवतार सभी कलाओं में अर्थात 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विशेष नाम का एक महान तपस्वी ब्राह्मण होगा। जिसके घर भगवान कल्कि जन्म लेंगे पुराणों के अनुसार यह भी कहा गया है कि कल्कि की देवदत्त घोड़े पर सवार होकर आएंगे और इस संसार से पापियों का नाश करेंगे सभी धर्म के पुनः पूर्ण स्थापना होगी और सतयुग का फिर से प्रारंभ होगा।
दोस्तों, दशावतार (Dashavatar) की कहानी हमने बहुत ही संक्षिप्त में बतायी हैं। उम्मीद है आपको इस संक्षिप्त कहानियो से भी कुछ न कुछ तो जानकारी मिली ही होगी। इसी तरह हम आगे भी आपके लिए ज्ञान और धर्म से जुडी कहानिया लाते रहेंगे।
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