Omkareshwar Jyotirling : माँ नर्मदा के बीच स्थित मांधाता (शिवपुरी) द्वीप जो ॐ के आकार सा दिखाई देता है। उसी द्वीप पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरुप ओंकारेश्वर और ममलेश्वर (omkareshwar mamleshwar jyotirlinga) नामक दो शिवलिंग भक्तो को कष्टों से तारते हैं।
12 jyotirling में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं इसके दर्शन व पूजन का विशेष महत्त्व होता हैं।
यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में चौथे स्थान पर माना जाता है। ओंकारेश्वर शिवलिंग (Omkareshwar Jyotirling) का वर्णन हमें स्कंदपुराण, शिवपुराण और वायुपुराण में मिलता है। शिव के इस ज्योतिर्लिंग को शिव महापुराण में “परमेश्वर लिंग” नाम से पुकारा गया हैं।
आदि शंकराचार्य द्वारा एक श्लोक के माध्यम से हमें इसकी महिमा ज्ञात होती है।
कावेरिका नार्मद्यो: पवित्र समागमे सज्जन तारणाय |
सदैव मंधातत्रपुरे वसंतम ,ओमकारमीशम् शिवयेकमीडे ||
अर्थ : कावेरी एवं नर्मदा नदी के पवित्र संगम पर सज्जनों के तारण के लिए, सदा ही मान्धाता की नगरी में विराजमान श्री ओंकारेश्वर जो स्वयंभू हैं वही ज्योतिर्लिंग (Jyotirling) है।
ओंकारेश्वर की प्रचलित कथा : Popular stories of Omkareshwar
एक समय की बात है नारद ऋषि पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए विंध्याचल पर्वत पर पहुंचे। उनके वहां पग रखते ही विध्यांचल पर्वत बहुत ही प्रसन्न हुए और विध्यांचल ने ऋषि का बहुत ही अच्छे से स्वागत और सत्कार किया।
ऋषि ने भी विध्यांचल से कुशल शेम पूछी और आशीर्वाद दिया, कित्नु विध्यांचल ने ऋषि से कहा की मैं पूरी तरह से सर्वगुण संपन्न हूँ। मेरे यहाँ की भी वस्तु की कोई कमी नहीं है। अब नारद जी विध्यांचल की अहंकार के भाव को समझ गए कित्नु उन्होंने कुछ नहीं कहा और आगे सुनते रहे लेकिन विध्यांचल अपने अहंकार के भाव में आकर जिस ऋषि का सम्मान किया उन्ही के आगे खड़ा हो गया और अपनी सम्पन्नता की बातें करने लगा।
कुछ देर बार विध्यांचल ने नारदजी की ओर से कोई प्रति उत्तर न देख उनसे पूछा की – हे ऋषि, क्या मेरे कथन में कोई असत्य है? तब नारदजी ने कुछ लंबी श्वास के बाद कहा की आपकी बात में मुझे कोई असत्य नहीं जान पड़ता कित्नु क्या आपन मेरु पर्वत का नाम सुना हैं वह अपने शिखर को देव लोक तक पंहुचा चूका है लेकिन आप अपने शिखर को उतना नहीं बढ़ा सकते।
अपनी बात करके नारदजी ने वहां से प्रस्थान किया लेकिन विध्यांचल मन ही मन बहुत दुखी हुआ। अपने दु:खी मन से वह सोचने लगा की में देव लोक तक शिखर नहीं पहुंचा सकता। अपनी इच्छा शक्ति को एकत्रित कर विध्यांचल ने शिवलिंग बनाकर पूजा कर कठिन तपस्या आरम्भ कर दी। तपस्या के प्रभाव से उस क्षेत्र की गर्मी बढ़ गयी और प्राणियों के प्राणों के संकट को देखते हुए महादेव 6 माह की तपस्या में प्रसन्न हो गए और उसे आशीर्वाद के साथ वर मांगने को कहा तब विंध्याचल ने कहा की “प्रभु, मेरी तो आपसे एक ही इच्छा है की आप कृपया मुझे कार्य की सिद्धि करने वाली अभीष्ट बुद्धि प्रदान करें।”
महादेव ने अपने भक्ति की इच्छा का मान रखते हुए उसे वरदान दे दिया। यहाँ विध्यांचल पर तपस्या कर रहे संतो और ऋषियों को जब दैवीय शक्ति की अनुभूति हुई तो वे भी यहाँ आ गए और उन्होंने भगवान का पूजन कर उनसे प्रार्थना की “हे प्रभु , हम सभी की इच्छा हैं की आप यही हम सब के साथ विराजे” भगवान ने उनकी भी इच्छा मानते हुए अपने में से एक शिवलिंग लिंग प्रकट किया जिसका नाम ओंकारेश्वर (Omkareshwar Jyotirling रखा और विध्यांचल द्वारा निर्मित पार्थिव शिवलिंग को ममलेश्वर (अमलेश्वर) नाम दिया।
साथ ही उन्होंने दोनों शिवलिंगो की एक सी महिमा का आशीर्वाद दिया। इसलिए ओंकारेश्वर और ममलेश्वर दोनों के मंदिर, स्थान अलग होते हुए भी दोनों की सत्ता और स्वरुप को एक ही माना गया है।
ओंकारेश्वर मंदिर वास्तुकला : Omkareshwar Temple Architecture
ओंकारेश्वर मंदिर Omkareshwar Temple) ऊँचे शिखर से सुसज्जित है जो उत्तर भारतीय वास्तुकला से निर्मित है। तत्कालीन मंदिर जे निर्माण की तिथि का कोई समय इतिहास में दर्ज नहीं किया गया हैं इसका कारण है की इसे किसने बनाया और कब बनाया ये शोध का विषय है। ओंकारेश्वर मंदिर का गर्भगृह Omkareshwar Jyotirling Garbh Grah) पुराने तरह से एक छोटे से मंदिर के रूप में है। इसका शिखर पत्थर के परत से निर्मित किया हुआ जान पड़ता है।
गर्भगृह में स्थित छोटा मंदिर दक्षिण में स्थित नदी के गहरई से काफी करीब बना हुआ है तथा उत्तर की ओर नयी शैली में बना हुआ मंदिर काफी फैला हुआ है इसलिए प्रतीत होता है की मंदिर के मुख्य देव न तो मुख्य द्वार के बिलकुल सामने है और ना ही मुख्य शिखर के ठीक नीचे।
मंदिर में एक बहुत ही विशाल सभा मंडप है जो लगभग 60 खंबो पर टिका हुआ है। यह मंदिर 5 मंज़िला है जिसके हर पर एक मंदिर है जैसे सबसे नीचे श्री ओंकारेश्वर है यह शिवलिंग मानव निर्मित नहीं है इस शिवलिंग का मंदिर छोटा है जो एक गुफा की तरह प्रतीत होता है शिवलिंग के पास ही माँ पार्वती की मूर्ति है तथा शिवलिंग के आसपास जल भरा रहता है। प्रथम मंज़िल पर श्री महाकालेश्वर, द्वितीय पर श्री सिद्धनाथ, तृतीया पर गुप्तेश्वर और चौथी मंज़िल पर श्री राजराजेश्वर महादेव और ध्वजाधारी शिखर देवता हैं।
Omkareshwar ke ghat :ओंकारेश्वर के घाट
घाट पर सुरक्षा के लिहाज से नौकाओं का प्रबंध हैं। गहरे पानी से जाने से बचने के लिए लोहे की जालिया और पकड़ने वाली चेन लगी हुयी है।
कोटि तीर्थ घाट मंदिर के ठीक सामने है और इस घाट का सबसे अधिक महत्व है। इस घाट में स्नान करने से करोड़ों तीर्थ स्नान करने का फल प्राप्त होता है।
यहाँ कुछ अन्य छोटे बड़े घाट हैं जिनके नाम हमने निचे लिखे है।
- चकर तीर्थ घाट
- गौमुख घाट
- गौमुख घाट
- भैरों घाट
- केवलराम घाट
- नागर घाट
- ब्रम्हपूरी घाट
- संगम घाट
- अभय घाट
ओंकारेश्वर ज्योतिलिंग की महिमा और महत्व
कहा जाता है की ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग क्षेत्र में 64 तीर्थ और 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते है और यहाँ के पंडितो और भाकरतो का कहना है की यहाँ का एक महत्व यह है की कोई कितने भी तीर्थ कर ले यदि उन्होंने यहाँ अपने किये हुए सारे तीर्थो के जल से भगवान कोई अर्पित नहीं किया तो उसके तीर्थो का फल अधूरा माना जाएगा।
पवित्र माँ नर्मदा का भी बहुत महत्व है पुराणों के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन के स्नान का पुण्य, गंगाजी में 7 दिन के स्नान का पुण्य के बराबर सिर्फ माँ नर्मदा के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है।
ओंकारेश्वर तीर्थ (Omkareshwar Tirth) में ॐ आकर के पर्वत परिक्रमा का भी बहुत महत्व है। जब कोई भक्त यह परिक्रमा करता है तो उसे परिक्रमा के साथ साथ अन्य देवी देवताओ के दर्शन का भी लाभ मिलता है क्यों की परिक्रमा मार्ग में सीता वाटिका, माता घाट, धावड़ी कुण्ड, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, मार्कण्डेय शिला, बड़े हनुमान, विज्ञान शाला, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणमुक्तेश्वर महादेव, सिध्दनाथ गौरी सोमनाथ, गायत्री माता मंदिर, चाँद – सूरज द्वार, वैष्णोंदेवी मंदिर, आड़े हनुमानजी, वीरखला, ब्रम्हेश्वर मंदिर, श्री हरि विष्णु मंदिर, गजानन महाराज (सेगॉंव) मंदिर, कुबरेश्वर महादेव, नरसिंह टेकरी, काशी विश्वनाथ, चन्द्रमोलेश्वर महादेव आदि मंदिर स्थित है।
माँ नर्मदा की सायंकालीन आरती
चौसर खेलने आते हैं महादेव और माँ पार्वती
कहा जाता है की देवाधि देव महादेव अपनी पत्नी माँ पार्वती के साथ यहाँ शयन करने आते है। और यहाँ रात्रि में शयन से पहले चौसर खेलते है। शयन आरती के बाद यहाँ के पट बंद कर दिए जाते है और पट बंद करने के पहले यहाँ चौसर का खेल जमा दिया जाता है। लेकिन जब सुबह पट खुलते है की चौसर के पासे उलटे मिलते जैसे कोई यहाँ चौसर खेला हो। अब तक इस रहस्य का पता नहीं कोई लगा पाया की चौसर खेला किसके द्वारा खेला गया है।
पूजन एवं पालकी
भगवान ओंकारेश्वर (Omkareshwar) की दिन में 3 बार पूजा होती हैं। सुबह की आरती ओंकारेश्वर मंदिर ट्रस्ट (omkareshwar Mandir Trust) के पुजारी के द्वारा होती है, दोपहर की पूका सिंधिया राजघराने के पुजारी द्वारा तथा शाम की पूजा होल्कर स्टेट के पुजारी के द्वारा की जाती है। मंदिर में अक्सर भक्तो की भीड़ लगी रहती है मगर यह भी सावन के महीने और हर शनिवार तथा रविवार को बढ़ जाती है।
भक्त नर्मदा जी में स्नान करके नर्मदा जल पात्र में भरकर लाते है साथ ही मंदिर के रास्ते में आने वाली दुकानो से फूल, श्रीफल आदि लेकर आते है और भगवन का पूजन करते है।
हर सोमवार को भगवान ओंकारेश्वर की तीन श्री मुख वाली स्वर्णखचित एक सुन्दर मूर्ति पालकी में विराजित करके ढोल और नगाडे बजाते हुए पुजारी और भक्त भगवन का जुलुस निकलते हैं। पालकी को सबसे पहले नर्मदाजी के तट पर ले जाकर पूजन करते है। उसके बाद नगर के गलियों में पालकी का भ्रमण होता हैं, इस जुलुस को सोमवार सवारी नाम कहा जाता है। सावन माह में इस सवारी में और भी अधिक भक्त शामिल होते है और ‘बोल बम’ तथा ‘ॐ शंभु भोले नाथ’ उद्घोष से नगर पवित्र हो जाता है।
Official Website of Omkareshwar Jyotirling
How to Reach Omkareshwar ? :कैसे पहुंचे ओंकारेश्वर तीर्थ
ओंकारेश्वर (Omkareshwar) से सबसे नजदीक इंदौर तथा खंडवा हैं। ओंकारेश्वर आने के लिए इंदौर और खंडवा से कई साधन उपलब्ध हैं या आप प्राइवेट गाड़ियों से ओंकारेश्वर पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग : खंडवा रेल जंक्शन देश में कही में जाने के लिए सुपरफास्ट ट्रेन आपको मिल जायेगी। जो ओंकारेश्वर से लगभग 72 किमी दूर हैं।
हवाई अड्डा : यह हवाई अड्ड़ा ओम्कारेश्वर से लगभग 77 किमी दूर हैं।
मोरटक्का : ओम्कारेश्वर से लगभग 12 किमी दुरी पर स्थित नगर इंदौर और खंडवा आदि आस पास के क्षेत्रो से अच्छी तरह से कनेक्टेड हैं।