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Teen Lok 14 Bhuvan : जानिये तीन लोक 14 भुवन का वर्णन।

Teen Lok : दोस्तों हमारे धर्म शास्त्रों और पुराणों में हमें तीन लोक और 14 भुवनों का उल्लेख मिलता हैं लेकिन क्या आप जानते है ये है क्या और कहा है? तो चलिए जानते है इनका सम्पूर्ण वर्णन।

भक्त श्री ध्रुवदासजी ने बहुत ही सुन्दर पंक्ति लिखी है –

तीन लोक चौदह भुवन, प्रेम कहूँ ध्रुव नाहिं।
जगमग रह्यो जराव सौ, श्री वृन्दावन माहिं।।

अर्थ : श्री ध्रुवदास कहते हैं कि तीन लोक और चौदह भुवनों में सहज प्रेम के दर्शन कहीं नही होते। यह तो एकमात्र श्री वृन्दावन में कंचन में जड़ी मणि की भाँति जगमगा रहा है।

हमारे धार्मिक ग्रन्थ श्री विष्णुपुराण में वर्णन हैं की भुवनों की संख्या कुल 14 है। इनमें से 7 को ऊर्ध्वलोक और बाकी 7 को अधोलोक कहते है। यहाँ 7 ऊर्ध्वलोकों का विवरण निम्न है।

ऊर्ध्वलोकों (Udharv Lok)

  1. भूलोक (Bhoo Lok) : इस लोक के बारे में हमें वर्णन मिलता है की जहाँ मनुष्य अपने पैरों से या नौका आदि वाहनों से जा सकता है। अर्थात हम यह कह सकते है की पूरी पृथ्वी भूलोक के अन्तर्गत है।
  2. भुवर्लोक (Bhuv Lok) : इस लोक के बारे में हमें वर्णन मिलता है की पृथ्वी से लेकर सूर्य तक जो क्षेत्र है उसी को भुवर्लोक कहते है और इस क्षेत्र में अन्तरिक्षवासी यानी देवता निवास करते हैं।
  3. स्वर्लोक (Swa Lok) : इस लोक के बारे में हमें वर्णन मिलता है इस क्षेत्र में इन्द्रादी देवता निवास करते हैं। इस क्षेत्र में सूर्य से लेकर ध्रुवमण्डल तक जो प्रदेश है उसे स्वर्लोक कहा गया है।

ऊपर बताये गए तीन लोकों का पुराणों अनुसार वर्णन है की इन्हे ही त्रिलोकी या त्रिभुवन कहा गया है, और ऐसा माना जाता है की इन्द्र आदि अन्य देवताओं का अधिकार क्षेत्र इन्ही तीन लोकों तक सीमित रहता है।

  1. महर्लोक (Mahr Lok) : पुराणों में महर्लोक: लोक का वर्णन है की इस लोक ध्रुव से दुरी लगभग एक करोड़ योजन ऊपर की ओर है। इस क्षेत्र में भृगु आदि सिद्धगण निवासित हैं।
  2. जनलोक (Jan Lok) : इस लोक के बारे में पुराणों में बताया गया है की इस लोक की स्थिति महर्लोक से दो करोड़ योजन ऊपर की ओर है तथा यहाँ पर सनकादिक आदि ऋषिगण निवासित क्षेत्र हैं।
  3. तपलोक (Tap Lok) : इस लोक के बारे में पुराणों में बताया गया है की इस लोक के निवासित देव वैराज नामक देव है इस लोक की स्तिथि यह लोक जनलोक सेलगभग आठ करोड़ योजन दूर हैं।
  4. सत्यलोक (Satya Lok) : इस लोक के बारे में पुराणों में बताया गया है की यह लोक तपलोक से भी लगभग बारह करोड़ योजन ऊपर की ओर स्थित है और इसी क्षेत्र में ब्रह्मा निवास करते हैं इसीलिए इस क्षेत्र को ही ब्रह्मलोक भी कहा जाता हैं और यही पर सर्वोच्च श्रेणी के महर्षि और ब्रम्हा ऋषि यहीं निवास करते हैं।

जैसा कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ विष्णु पुराण में कहा गया है नीचे के तीनों लोकों के स्वरूप के बारे में बताया गया है की ये चिरकालिक नहीं है जिस तरह से ऊपर के लोकों का है और निचे वर्णित किये गए तीन लोक समय के अंत में महा – प्रलयकाल में नष्ट हो जाते हैं जबकि ऊपर के तीनों लोक के बारे में पुराणों में वर्णित है की ये महा – प्रलयकाल में अप्रभावित रहते हैं।

भूलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक को ही अन्य तरह से ‘कृतक लोक’कहते है और और बाकी के तीन लोको के बारे में बताया गया है की ये तीन जनलोक, तपलोक और सत्यलोक को ‘अकृतक लोक’ तथा एक लोक महर्लोक महा – प्रलयकाल के दौरान नष्ट तो नहीं होता लेकिन बताया गया है की यह रहने के लायक नहीं होता है इसलिए वहाँ के रहने वाले निवासी वे सारे जनलोक की ओर चले जाते हैं। इसलिए इस लोक महर्लोक को ‘पुराणों आदि ग्रंथो में कृतकाकृतक’ कहा गया है।

हमने ऊपर जिस तरह से ऊर्ध्वलोक के बारे में बात की हैं। उसी तरह पुराणों में सात अधोलोक के बारे में भी बताया गया हैं जिन्हें ही पाताल कहा गया है। वर्णित किये गए सात पाताल लोकों के नाम इस तरह हैं।

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अधोलोक (Adho Lok)

  1. अतल(Atal Lok) : बताया जाता हैं की यह लोक हमारी पृथ्वी से लनमन्म गभगदस हजार योजन की गहराई पर स्थित है और इसकी भूमि के बारे में वर्णन है की यह शुक्ल यानी सफेद है।
  2. वितल (Vital Lok) : पुराणों में वर्णन है की यह लोक अतल से भी लगभग दस हजार योजन गहराई में स्थित है और वर्णिंत है की इस लोक की भूमि कृष्ण यानी काली है।
  3. नितल (Nital Lok) : पुराणों में वर्णन है की यह लोक वितल से भी लगभग दस हजार योजन की गहराई में स्थित है और इस लोक की भूमि अरुण रंग जो सूर्य उदय के रंग की है।
  4. गभस्तिमान (Gabhastiman Lok) : पुराणों में वर्णन है की यह लोक नितल लोक से भी लगभग दस हजार योजन की गहराई में स्थित है और इसकी भूमि का रंग पीत यानी पीली रंग की है।
  5. महातल (Mahatal Lok) : इस लोक के बारे में हमें वर्णन मिलता है की गभस्तिमान से भी लगभग यह दस हजार योजन की गहराई में स्थित है और इसकी भूमि कँकरीली है।
  6. सुतल (Sutal Lok) : कुछ पुराणों के अनुसार लोक गभस्तिमान से और गहराई लगभग दस हजार योजन पर स्थित है और इसकी लोक की भूमि का वर्णन पथरीला बताया गया है।
  7. पाताल (Patal Lok) : इस लोक के बारे में हमने सबसे ज्यादा सुना है यह लोक सुतल से भी गहरा है जो लगभग दस हजार योजन नीचे की ओर बसा है और इसकी भूमि स्वर्ण निर्मित बताई गयी है।

हमने अभी जिन सात अधोलोकों का वर्णन किया है इन लोको में ही पुराणों के अनुसार दैत्य, दानव और नाग निवास करते हैं।

जैसा की हम मानते है की अन्ततोगत्वा हर लोक भगवान के अधीन है और समस्त संसार का लालन – पालन ईश्वर के हाथ है। फिर भी अगर हम इन अलग अलग लोकों की स्थिति और प्रकृति का वर्णन देखें तो यह माननें पर हम भी बाध्य होगें कि जिस प्रकार हमारे पृथ्वी पर देश और कई राज्य है और उन सभी की शासनपद्धति अलग है उसी प्रकार यहां शासक भी भिन्न हो सकते हैं और हर लोक के अपने नियम और कानून हो सकते है।

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हमने अपनी बचपन और कहानियो तथा पुराणों में हमेशा एक वर्णन सूना है की पाताल लोक में दैत्यों, दानवों और नागों के स्थान है जहाँ इनके बहुत से नगर और राज्य बसे हैं और यहाँ के राजा दैत्य, नाग होंगे और यहां इसी तरह से स्वर्ग में भी इन्द्र, वरुण, चन्द्रमा आदि देवताओं के नगर और राज्य स्थित हैं। लेकिन ऊपर बताये लोक जैसे महर्लोक जनलोक, तपलोक और सत्यलोक के निवासी उतने पुण्यात्मा और ईश्वर प्रेमी होते है की उनकी नज़र में ईश्वर ही राजा है इसलिए वह किसी की सत्ता का वर्णन नहीं आता अपितु ईश्वर की ही सत्ता मानी जाती है।

दोस्तों हम इस आर्टिकल को और भी गहरायी से आपके सामने लाने की कोशिश करेंगे जिससे आपको लोको का वर्णन और आसान लगे। अगर इस आर्टिकल में दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगे तो आप इसे जरूर शेयर करे या इसमें कुछ त्रुटि लगटी है तो आप हमें जरूर बताये.

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