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Giriraj Chalisa in Hindi: गिरिराज चालीसा का पाठ करने से होंगे ये फायदे जाने महत्त्व !

Giriraj Chalisa in hindi : गिरिराज गोवर्धन को भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप माना जाता हैं। कलयुग में गिरीराज भगवान ही है जो भक्तों की मनोकामनाओं को पूरी करते हैं उनके जीवन में आये दुःख संकट दूर करते हैं।  इसीलिए लोग गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं और उत्तम पुण्य प्राप्त करते हैं। भगवान विष्णु के दशावतार में से आठवां अवतार श्री कृष्ण और सातवां अवतार श्री राम अवतार है। हाल ही में श्री राम का आयोध्या राम मंदिर का निर्माण हुआ हैं।

गिरिराज चालीसा (Giriraj Chalisa) या कहे गोवर्धन चालीसा का पाठ (Goverdhan Chalisa ka Path) करते हैं जिससे उनके जीवन में आई सभी मुसीबते दूर हो जाती हैं शांति का अनुभव करते हैं।  वैष्णव समाज के परिजन वहाँ जा कर मनोरथ करवाते हैं। ब्रह्म सम्बन्ध भी जतिपुरा में ही लिया जाता हैं।

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Benefits Of Shree Giriraj Chalisa : गिरिराज चालीसा का पाठ करने से होंगे ये फायदे

गिरिराजधारण ने ब्रज वासियो पर आये भारी वर्षो व तूफान से ऐसे ही गिरिराज चालीसा का पाठ (Giriraj Chalisa ka Path) करने से सुख-सौभाग्य, धन धान्य  में वृद्धि हो जाती है।

गिरिराज चालीसा का पाठन (Giriraj Chalisa ka Path) से सिद्धि-बुद्धि,धन-बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है।

गिरिराज चालीसा के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। वो हर तरह के सुख का भागीदार बनता है, उसे कष्ट नहीं होता। गिरिराज धरण की कृपा से ग्रहो की दशा भी सुधर जाती हैं। 

गिरिराजधरण  की कृपा मात्र से ही इंसान सारी तकलीफों से दूर हो जाता है और वो तेजस्वी बनता है।

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Giriraj Chalisa in hindi : गिरिराज चालीसा का पाठ

॥ दोहा ॥

बन्दहुँ वीणा वादिनी, धरि गणपति को ध्यान ।

महाशक्ति राधा सहित, कृष्ण करौ कल्याण ॥

सुमिरन करि सब देवगण, गुरु पितु बारम्बार ।

बरनौ श्रीगिरिराज यश, निज मति के अनुसार ॥

॥ चौपाई ॥

जय हो जय बंदित गिरिराजा । ब्रज मण्डल के श्री महाराजा ॥१॥

विष्णु रूप तुम हो अवतारी । सुन्दरता पै जग बलिहारी ॥२॥

स्वर्ण शिखर अति शोभा पामें । सुर मुनि गण दरशन कूं आमें ॥३॥

शांत कन्दरा स्वर्ग समाना । जहाँ तपस्वी धरते ध्याना ॥४॥

द्रोणगिरि के तुम युवराजा । भक्तन के साधौ हौ काजा ॥५॥

मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये । जोर विनय कर तुम कूँ लाये ॥६॥

मुनिवर संघ जब ब्रज में आये । लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये ॥७॥

विष्णु धाम गौलोक सुहावन । यमुना गोवर्धन वृन्दावन ॥८॥

देख देव मन में ललचाये । बास करन बहु रूप बनाये ॥९॥

कोउ बानर कोउ मृग के रूपा । कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा ॥१०॥

आनन्द लें गोलोक धाम के । परम उपासक रूप नाम के ॥११॥

द्वापर अंत भये अवतारी । कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी ॥१२॥

महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी । पूजा करिबे की मन ठानी ॥१३॥

ब्रजवासी सब के लिये बुलाई । गोवर्द्धन पूजा करवाई ॥१४॥

पूजन कूँ व्यञ्जन बनवाये । ब्रजवासी घर घर ते लाये ॥१५॥

ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी । सहस भुजा तुमने कर लीनी ॥१६॥

स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में । माँग माँग के भोजन पामें ॥१७॥

लखि नर नारि मन हरषामें । जै जै जै गिरिवर गुण गामें ॥१८॥

देवराज मन में रिसियाए । नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए ॥१९॥

छाँया कर ब्रज लियौ बचाई । एकउ बूँद न नीचे आई ॥२०॥

सात दिवस भई बरसा भारी । थके मेघ भारी जल धारी ॥२१॥

कृष्णचन्द्र ने नख पै धारे । नमो नमो ब्रज के रखवारे ॥२२॥

करि अभिमान थके सुरसाई । क्षमा माँग पुनि अस्तुति गाई ॥२३॥

त्राहि माम् मैं शरण तिहारी । क्षमा करो प्रभु चूक हमारी ॥२४॥

बार बार बिनती अति कीनी । सात कोस परिकम्मा दीनी ॥२५॥

संग सुरभि ऐरावत लाये । हाथ जोड़ कर भेंट गहाये ॥२६॥

अभय दान पा इन्द्र सिहाये । करि प्रणाम निज लोक सिधाये ॥२७॥

जो यह कथा सुनैं चित लावें । अन्त समय सुरपति पद पावें ॥२८॥

गोवर्द्धन है नाम तिहारौ । करते भक्तन कौ निस्तारौ ॥२९॥

जो नर तुम्हरे दर्शन पावें । तिनके दुःख दूर ह्वै जावें ॥३०॥

कुण्डन में जो करें आचमन । धन्य धन्य वह मानव जीवन ॥३१॥

मानसी गंगा में जो न्हावें । सीधे स्वर्ग लोक कूँ जावें ॥३२॥

दूध चढ़ा जो भोग लगावें । आधि व्याधि तेहि पास न आवें ॥३३॥

जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें । मन वांछित फल निश्चय पावें ॥३४॥

जो नर देत दूध की धारा । भरौ रहे ताकौ भण्डारा ॥३५॥

करें जागरण जो नर कोई । दुख दरिद्र भय ताहि न होई ॥३६॥

‘श्याम’ शिलामय निज जन त्राता । भक्ति मुक्ति सरबस के दाता ॥३७॥

पुत्र हीन जो तुम कूँ ध्यावें । ताकूँ पुत्र प्राप्ति ह्वै जावें ॥३८॥

दंडौती परिकम्मा करहीं । ते सहजहि भवसागर तरहीं ॥३९॥

कलि में तुम सम देव न दूजा । सुर नर मुनि सब करते पूजा ॥४०॥ 

॥ दोहा ॥

जो यह चालीसा पढ़ै, सुनै शुद्ध चित्त लाय ।

सत्य सत्य यह सत्य है, गिरिवर करै सहाय ॥

क्षमा करहुँ अपराध मम, त्राहि माम् गिरिराज ।

श्याम बिहारी शरण में, गोवर्द्धन महाराज ॥

॥ इति श्री गिरिराज चालीसा संपूर्णम् ॥

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