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Ujjain 84 Mahadev : दोस्तों, आज हम आपको 84 महादेव सीरीज के चौथे महादेव की कथा बताएँगे की कैसे इन भक्तो पर कृपा करने के की वजह से इन मंदिर को प्रसिद्धि बढ़ी और किस कारण इन मंदिरों के नाम श्री डमरूकेश्वर महादेव और श्री डमरुकेश्वर महादेव पड़े।
Ujjain 84 Mahadev : श्री डमरुकेश्वर महादेव
अश्वमेघसहस्त्रं तु वाजपेयशतं भवेत्।
सहस्त्रफलं चात्र द्रष्ट्वा प्राप्स्यन्ति मानवाः।।
Ujjain 84 Mahadev : Location of Shri Damarukeshwar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री डमरूकेश्वर महादेव मंदिर
पराणिक कथाओ के अनुसार चौरासी महादेव में से एक डमरुकेश्वर महादेव की पौराणिक गाथा एक महाअसुर वज्रासुर से स्वर्ग और भूमि की रक्षा से शुरू होती है। वज्रासुर बहुत ही शक्तिशाली और महापराक्रमी था। तपस्या से शक्तियां अर्जित करने वाला यह महाअसुर अत्यंत निर्दयी था जिसके दांत तीक्ष्ण थे और अपनी शक्ति और पराक्रम से इस असुर ने देवताओं को उनके कर्म और सभी अधिकार से विमुख करने के बाद वह स्वर्ग और स्वर्ग के सभी संसाधनों पर कब्जा कर लिया सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया।
असुरों के भय और देवताओं के कर्मो से विमुख होने के कारण इस पृथ्वी पर सभी लोगो और कुछ ऋषियों ने वेद – पठन, यज्ञ आधी धर्म के कार्य हो गए और जिससे पृथ्वी में पाप के कारण हाहाकार मच गया। अब सभी ऋषि मुनि और देवता एक जगह एकत्रित हुए और वज्रासुर के वध के बारे में सोचने लगे कित्नु सभी देवता इसमें असमर्थता जाहीर करने लगे। इसके बार भगवत स्मरण से सभी देवी देवताओं ने अपने तेज से मन्त्र साधना आरंभ करने लगे। उनके इस दिव्य तेज।
तब उनकी तपस्या से तेज प्रकाश के साथ एक सुन्दर लेकिन दिव्य ‘कन्या’ उत्पन्न हुई। वज्रासुर के नाश करने से पूर्व ही वह बहुत जोर जोर से अट्टठहास करने लगी जिसे बहुत साड़ी दिव्य कन्याएं उत्पन्न हुईं। सभी कन्याएं वज्रासुर के सैनिको और वज्रासुर से युद्ध करने लगी। कुछ समय में काल के गालो में अपने आपको समाते देख असुरी सेना भागने लगी। पानी सेना को भागते देख वज्रासुर ने एक महा भयंकर तामसी नाम की एक माया का इस्तेमाल किया। उस महा भयंकर माया से घबराकर वह सारी कन्या अन्य समस्त कन्याओं के साथ पुण्य वन महाकाल वन में आ गईं। उन कन्याओं का पीछा करते करते वज्रासुर भी अपनी सेना लेकर वहीं आ गया।
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जब स्थिति कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगी तब सभी ने महाकाल देवाधिदेव भगवान शंकर से प्रार्थना करने लगे की अब वही इस भयंकर परिस्तिथि को संभाले। सभी की प्रार्थना को स्वीकार सुन हमारे देवाधिदेव शिवजी ने उत्तम भैरव नामक भैरव का आव्हान किया। उस भैरव ने भी शिव से आज्ञा पाकर महाकाल वन आए। वहां पहले से खड़ी असुरों की सेना देखकर उन्होंने अपना डमरू बजा कर भयानक राग निकला। उस डमरू के शब्द से वहां एक
बहुत ही दिव्य उत्तम लिंग उत्पन्न हुआ। सिर्फ उस डमरू से निकली भयंकर आवाज़ से एक ज्वाला निकली जिसमे वज्रासुर भी भस्म हो गया। डमरू के नाद से उत्पन्न इस शिव लिंग को डमरूकेश्वर नाम से जाना गया।
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Ujjain 84 Mahadev Shri Dhundheshwar Mahadev Puja Mahtva / श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव की पूजा का महत्व
डमरूकेश्वर शिवलिंग की पूजा करने से मनुष्य को विजय श्री का आशीर्वाद मिलता है और मनुष्य कभी किसी भी जीवन में असफल नहीं होता।
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दोस्तों हम 84 महादेव की सीरीज में आपके लिए हर दूसरे दिन उज्जैन में स्थित 84 Mahadev के मंदिर के बारे बताएँगे और सारे मंदिर की कथा और उन शिवलिंग की पूजा महत्व बताएँगे। कृपया आप ऐसे ही हमारे द्वारा दी गयी जानकारी को अपने दोस्तों और परिवार जानो पहुचाये। https://dharmkahani.com/ से अगर आपको कोई और जानकारी चाहिए तो आप हम कमेंट या contact पेज के जरिये संपर्क कर सकते है।
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