84 Mahadev Stories : 84 महादेव : श्री अगस्त्येश्वर महादेव (1) और श्री गुहेश्वर महादेव(2)

By | July 22, 2023
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84 Mahadev Stories : दोस्तों जैसा की हमने आपको उज्जैन के 84 महादेव के नाम बताये थे उसी तरह अब हम आपको हर चौरासी महादेव की कथाये एक – एक करके आपको बताएँगे। इस बार इस आर्टिकल में हमने 2 महादेव की कथा बताई है।

श्री अगस्त्येश्वर महादेव (1)

महाकाल वने दिव्ये यक्ष गन्धर्व सेविते।
उत्तरे वट यक्षिण्या यत्तल्लिङ्गमनुत्तमम्।।

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Location of Shri Agasteshwar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर

उज्जैन नगर में हरसिद्धि मंदिर के पीछे स्थित संतोषी माता मंदिर परिसर में श्री अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर है। श्री अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर की स्थापना ऋषि अगस्त्य द्वारा उनके रोष और महाकाल वन में उनकी तपस्या से जुडी हुई है। 84 महादेव की यात्रा यही से प्रारंभ होती है , तथा अन्त मे फिर से श्री अगस्तेश्वर महादेव के दर्शन -पूजन के बाद ही पूरी होती है।

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Story of Shri Agasteshwar Mahadev / श्री अगस्त्येश्वर महादेव कथा 

सतयुग में जब दैत्यों का प्रभाव बढ़ने लगा और देवता भी उनके सामने टिक नहीं पा रहे थे तब निराश हो कर देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे।
भ्रमण करते होते एक दिन देवताओ को परम तेजस्वी महर्षि अगस्त्य के दर्शन हुए। उन्होंने देवताओ से इस तरह पृथ्वी पर विचरण का कारण पूछा। जिससे देवताओ ने उन्हें सारी बात बता दी और सहायता की प्रार्थना करने लगे जिससे ऋषि अगत्य को देवता पर दया और दैत्यों पर क्रोध आ गया।

ऋषि अगस्त्य के तपोबल से एक भीषण ज्वाला ने स्वर्ग में दैत्यों को जलाना शुरू कर दिया और जिससे सारे दैत्य जलकर पृथ्वी पर गिरने लगे। जिससे पृथ्वी पर होने यज्ञ आदि में गिरने लगे जिससे यज्ञ के फल नष्ट होने लगे यह देख कर ऋषि अगत्य दुखी हुए और अपनी व्यथा लेकर ब्रम्हा देव के पास पहुंचे।

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ब्रम्हदेव को अपनी व्यथा सुनाई की मेरे क्रोध और तपोबल से कई दैत्यों का संहार हो गया और वे यज्ञ आदि से में जा मिले जिससे कई यज्ञ अधूरे ही रह गये और कई ऋषि मुनि इस दर से पातल चले गए जिससे मुझे पाप का भागी बनना पड़ा। कृपया मुझे कोई ऐसा उपाय बताये जिससे मुझे इस पाप से मुक्ति मिले और मोक्ष का रास्ता खुले।

ब्रह्मा जी ने अगत्य ऋषि से कहा कि आप महाकाल वन के उत्तर में वट यक्षिणी के पास जाइये वह बहुत ही पवित्र शिवलिंग है, उस शिवलिंग की पूजा और अर्चना करने से आपको समस्त पापों और कष्टों से मुक्ति मिलेगी। अगस्त्य ऋषि ने वहां जाकर उस लिंग की पूजा की और उनकी तपस्या की, तपस्या से भगवान महाकाल प्रसन्न हुए।

भगवान देवाधि देव ने उन्हें वरदान दिया कि जिस का लिंग पूजन आपने किया है, वह शिवलिंग आपके ही नाम से तीनों लोकों में प्रसिद्ध होगा और इसीलिए इस शिवलिंग को अगस्त्येश्वर नाम से जाना जाने लगा।

Shri Agasteshwar Mahadev Puja Mahtva / श्री अगस्त्येश्वर महादेव की पूजा का महत्व 

यूँ तो भगवान की पूजा अर्चना कभी भी की जा सकती है, लेकिन शिव प्रिय श्रावण मास में इसका अधिक महत्व होता है। ऐसी मान्यता सुनने में आती है कि अष्टमी और चतुर्दशी को जो इस लिंग का पूजन बहुत ही फलदायी मना जाता है और भक्तों सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

श्री गुहेश्वर महादेव(2)

तत्रास्ते सर्वदा पुण्या सप्तकालपोद्भवा गुहा।
पिशाचेश्वरदेवस्य उत्तरेण व्यवस्थिता ।।

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Location of Shri Guheshwar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री गुहेश्वर महादेव मंदिर

उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव (84 Mahadev) में से एक गुहेश्वर महादेव मंदिर का स्थान श्री रामघाट पर पिशाच मुक्तेश्वर के पास स्थित सुरंग के भीतर है । श्री गुहेश्वर महादेव की कथा का पौराणिक आधार ऋषि मंकणक के अभिमान और फिर उनकी तपस्या से जुड़ा हुआ है।

Story of Shri Guheshwar Mahadev / श्री गुहेश्वर महादेव की कथा

पौराणिक काल में एक महायोगी थे जिनका नाम था मंकणक। वे बहुत ही वेद पाठी और वेद – वेदांग के पारंगत ज्ञाता थे। सिद्धि की कामना के काऱण वे हमेशा तपस्या में लीन रहते थे। एक बार की बात है की देवदारु वन में तपस्या करने के दौरान में कुश का कांटा उनकी उंगली में लग गया किन्तु रक्त के स्थान पर शाक रस (औषधि के सामान) बहने लगा।

इस घटना को देख कर वे यह देख कर अत्यंत प्रसन्न हुए और और अभिमान पूर्वक नृत्य करने लगे की उनकी सिद्धि से फल से ही यहाँ हुआ है। चुकी वो सिद्धि पा चुके थे इसलिए की तप के बल से सारे जगत में हाहाकार मच गया उसके इस तप से नदियां उल्टी बहने लगी तथा ग्रहों की गति उलट गई। इस गंभीर स्तिथि यह देख सभी देवी – देवता भगवान देवाधिदेव महादेव के पास पहुंचे और उनसे आग्रह किया की वे ऋषि को रोके।

देवताओं की विनती सुनकर शिवजी ऋषि के पास पहुंचे और उन्हें नृत्य करने से रोकने लगे। लेकिन ऋषि को सिद्धि के अभिमान में ध्यान नहीं रहा और वह शिवजी को भी सिद्धि का अभिमान बताने लगा। ऋषि को अभिमान से मुक्त करने के लिए इस पर शिवजी ने अपनी अंगुली के अग्र भाग से भस्म निकाली और ऋषि से कहा कि देखो मुझे इस सिद्धि पर अभिमान नहीं है और मैं नटराज होकर भी नाच भी नहीं रहा हूं।

शिवजी की बात सुनकर ऋषि काफी लज्जित हुए और उन्होंने क्षमा मांगी, और साथ ही प्रार्थना की की उनकी तप में वृद्धि करने का उपाय सुझाये। तब शिवजी ने कहा कि महाकाल वन में सप्तकुल में उत्पन्न लिंग हैं, उसके दर्शन करो, उस लिंग की पूजा अर्चना और देवाधि देव महादेव के कहने पर ऋषि ने ऐसा ही किया जिससे ऋषि को सूर्य के सामान तेज प्राप्त हुआ और उन्होंने सिद्धि का उपयोग जन कल्याण में करने लगे। चूँकि छोटी सी गुफामयी स्थान पर होने के कारण लिंग गुहेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

Shri Guheshwar Mahadev Puja Mahtva / श्री गुहेश्वर महादेव की पूजा का महत्व

ऐसा माना जाता है कि श्री गुहेश्वर महादेव दर्शन एवं अर्चन से अहंकार नष्ट होता है एवं महायोगी मंकणक की तरह सिद्धियों का सदुपयोग करने की समर्थता आती है। ऐसा माना जाता है की श्रावण मास ही नहीं अपितु अष्टमी और चौदस के दिन दर्शन का विशेष महत्व माना गया है।

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