Varuthini Ekadashi Vrat Katha : जाने वरुथिनी एकादशी की व्रत विधि, कथा , वरुथिनी ग्यारस का महत्त्व तथा इस व्रत को करने में क्या क्या सावधानियाँ रखना चाहिए। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर माह में 2 एकादशी होती है। एक शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष। एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के पूजन का बहुत महत्व होती है। एकादशी के व्रत (Ekadashi ka vrat) करना बहुत ही पुण्यकारी माना जाता है। लेकिन एकादशी करने के कुछ नियम होते है, इसलिए आज हम आपको एकादशी करने के नियम बताएँगे जिससे आपको सही तरह से एकादशी के पुण्य की प्राप्ति हो।
वरुथिनी एकादशी शुभ मुहूर्त (Varuthini Ekadashi Shubh Muhurat)
हिन्दू पंचांग के मुताबिक वरुथिनी एकादशी (Vaisak & Varuthini Ekadashi) वैशाख माह के कृष्ण पक्ष को पड़ती हैं। इस वर्ष वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashiin 2024) 3 मई रात 11 बजकर 24 मिनिट से शुरू होगी और समापन का समय 4 मई को रात 8 बजकर 38 मिनिट पर होगा।
वरुथिनी एकादशी व्रत की कथा (Varuthini Ekaadashi Vrat Katha)
वरुथिनी व्रत कथा कुछ इस तरह हैं की एक बार धर्मराज युधिष्ठिर कहते है की : हे प्रभु ! मैं आपको कोटि कोटि नमन करता हूँ। मुझ पर कृपा करके आप मुझे वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) के बारे में बताये और किसको करके कैसे व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
भगवान श्री कृष्ण ने कहा : हे धर्मराज ! वैशाख मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) कहा जाता है। यह एकादशी अत्यंत सौभाग्य देने के साथ साथ, सभी पापों को नष्ट कर अंत में मनुष्य को मुक्ति देती हैं। इस एकादशी का माहत्म्य आपसे कहता हूँ ध्यान से सुनकर इसका अनुसरण करे।
आज से कई वर्षो पहले प्राचीन काल में मोक्ष दायिनी सरिता नर्मदा के तट पर मान्धाता नामक प्रभावशाली राजा सुखी पूर्वक राज्य कर रहे थे। वे अत्यंत तपस्वी तथा दानदाता थे। एक दिन की बात है अपने राजसी कार्यो को पूर्ण कर वे राज्य से कुछ दुरी पर तपस्या कर रहे थे और उसी में लीन थे, तभी वहा कही से जंगली भालू आ गया और वह राजा के पैरो को चबाने लगा। कित्नु राजा तपस्या में लीन थे की उन्हें पता नहीं चला।
कुछ देर बाद पैर चबाते हुए वो राजा को अत्यंत जोर से घसीटते हुए, जंगल को ओर ले जाने लगा। लेकिन घबराये हुए राजा ने इस विकट परिस्थिति में भी धैर्य और संयम नहीं खोया और अपने तापस धर्म को निभाते हुए न क्रोध किया और नहीं किसी तरह की हिंसा का प्रयोग भालू पर किया।
इस विकट स्थिति में उसने हाथ जोड़ भगवान श्री हरि विष्णु से प्रार्थना की दया की पुकार से श्री हरि को पुकारा। इस करुणमयी पुकार से श्री हरि अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रकट हो गए और उस भालू को मार दिया।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चूका था। पीड़ित और दुखी राजा को देख कर श्री हरि समझ गए और उन्हें दुखी न होने की बात करके बोले की हे राजन! तुम अपने इस पैर के लिए दुखी ना हो। मेरा कहना मानो और मथुरा नगरी जाओ तथा वह पहुंच कर वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi Vrat Samapan) का विधि पूर्वक व्रत करके मेरे ही एक अवतार वाराह की मूर्ति का पूजन करो। उस व्रत के प्रभाव से और मेरी ही कृपा से तुम फिर से सुदृढ़ शरीर वाले बन जाओगे। भालू द्वारा तुम्हे काटना भी तुम्हारे पूर्व जन्म के पापों का दोष है।
श्री हरि विष्णु की के कथन अनुसार राजा ने मथुरा जाकर अपना व्रत और प्रभु दर्शन बड़े ही भाव और श्रद्धा से किया। हरि कथन अनुसार ही जल्दी ही इस व्रत के प्रभाव से राजा फिर से पुरे शरीर के साथ और भी सुन्दर हो गया और अंत में वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) के प्रभाव से स्वर्ग लोक पहुंचे।
इसीलिए हे धर्मराज ! अगर मनुष्य भय से पीड़ित हो और कुछ न समझ आये तो उस व्यक्ति को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekaadashi) का बहुत ही श्रद्धा से व्रत करते हुए श्री हरि या वराह अवतार की भक्ति भाव से पूजा करनी चाहिए।
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वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्त्व : Significance of Varuthini Ekadashi
मोक्षदायिनी : जिस तरह वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi importance) करने के बाद अंत में राजा मान्धाता को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसी तरह आप भी मोक्ष प्राप्त कर सकते है।
पाप नाश : जिस तरह वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi paapnashini) करने के राजा मान्धाता के पिछले जन्म के पापों को काट कर फिर से अंग की प्राप्ति हुयी, इसी तरह आपके भी कई जन्म के पापों को काट कर आपको पाप मुक्ति की ओर ले जायेगी।
मनोकामना पूर्ति : मनुष्य अपने समस्त जीवन में प्रभु दर्शन की इच्छा, सुंदर शरीर और मोक्ष की मनोकामना करता है। जिस तरह श्री हरी विष्णु ने राजा मान्धाता को दुखीः देख कर उसके शरीर को फिर से अंगो के साथ सुंदर बनाकर मनोकामना पूर्ण की। उसी तरह हरि आपकी भी मनोकामना पूर्ण करेंगे।
अकाल मृत्यु से बचाव : राजा मान्धाता को भालू द्वारा मिलने वाली अकाल मृत्यु से बचाया उसी तरह आपको भी कई अनहोनी से बचने की शक्ति मिलेगी।
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वरुथिनी एकादशी व्रत विधि : Varuthini Ekadashi Vrat Vidhi
- दशमी तिथि के दिन: सूर्यास्त से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एकादशी तिथि के दिन: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- व्रत का संकल्प लें: “हे वरदराज! मैं वैशाख कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) का व्रत पूरे विधि-विधान के साथ करने का संकल्प लेता/लेती हूँ।”
- दिन भर निर्जला व्रत रखें: इस दिन अन्न, जल, लवण आदि का सेवन न करें।
- भगवान विष्णु की पूजा करें: तुलसी दल, फल, फूल आदि अर्पित करें।
- “विष्णु सहस्त्रनाम” का पाठ करें।
- रात्रि में जागरण करें: भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन गाएं।
- द्वादशी तिथि के दिन: सूर्योदय से पहले स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
- ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
- दोपहर के बाद वरुथिनी व्रत (Varuthini Ekadashi) का पारण करें।
वरुथिनी एकादशी से पहले सावधानी और ध्यान देने वाली बातें : Precautions Before Varuthini Ekadashi
- यदि कोई भी अपने स्वास्थ्य सम्बंधित समस्या से पीड़ित है तो आपको व्रत (Varuthini Ekadashi Vrat Precautions) आदि करने की सलाह एक बार अपने डॉक्टर से जरूर लेनी चाहिए।
- यही कोई महिला गर्भवती हैं, माहवारी की समस्या के समय दर्द से ज्यादा पीड़ित है या बच्चे को स्तनपान करा रही हो तो आप व्रत ना करे इससे हो सकता आपके या बच्चे के स्वास्थ्य समस्या हो।
Dharmkahani : उम्मीद करते हैं आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा यदि आपको भी वरुथिनी एकादशी से जुड़ा कोई संकोच हैं। हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताये हम जल्द से जल्द उतर देने या नया पोस्ट लाने में कार्यरथ हैं।
Disclaimer: (Varuthini Ekadashi) वरुथिनी एकादशी जानकारी हमने कई इंटरनेट सोर्सेज और लोक कथाओ और कहानियों के माध्यम से ली है। धर्मकहानी का उद्देश्य धर्म की सटीक सूचना आप तक पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता सावधानी पूर्वक पढ़ और समझकर ही लें। अगर इसमें आपको कोई गलती लगती है तो कृपया आप हमें हमारे ऑफिशल ईमेल पर जरूर बताये।
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