Dev Uthani Ekadashi 2025 Date, Dev Uthani Ekadashi 2025 Muhurat and Dev Uthani Gyaras Katha देवउठनी एकादशी शनिवार 1 नवम्बर 2025 को हैं। मान्यता हैं की देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चतुर्थमास की योगनिद्रा के बाद उठते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने से विशेष फल मिलता हैं, मनोकामना की पूर्ति होती हैं।
Dev Uthani Ekadashi 2025 Date
हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठान एकादशी और देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) भी कहते हैं क्योंकि मान्यता है कि इस दिन चार्तुमास के बाद भगवान विष्णु (lord Vishnu) योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन के बाद से शादी ब्याह, गृह प्रवेश, मुंडन और अन्य मांगलिक कार्यक्रम फिर से शुरु हो जाते हैं। चलिए जानते हैं कि इस साल देवउठनी एकादशी किस दिन पड़ रही है।
देवउठनी एकादशी इस साल 1 नवम्बर 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 2 नवम्बर को सुबह 7 बजकर 41 मिनट बजे समाप्त हो रही हैं। चुकी सनातम धर्म में सूर्योदय वाले दिन यदि 2 नवम्बर 2025 को देव उतनी एकादशी का व्रत व पूजन किया जायगा।
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Dev Uthani Ekadashi 2025 Muhurat
देवउठनी एकादशी पर भगवन विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन व आराधना की जाती हैं। भगवान विष्णु के पूजन का मुहूर्त सुबह 6. 42 मिनट से आरंभ हो रहा है. इसके बाद 7.42 मिनट से सर्वार्थ सिद्धि योग भी लग रहा है जिसमें पूजा करना बहुत ज्यादा लाभकारी होगा।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम का तुलसी के साथ विवाह भी किया जाता हैं। भगवान शालिग्राम भी विष्णु का रूप मने जाते हैं। देवउठनी एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता हैं।
क्या है देवउठनी एकादशी का महत्व | Importance of Dev Uthani Ekadashi
देवउठनी एकादशी व्रत की महिमा ही अपरम्पार हैं। इस दिन चार माह से सोए भगवान विष्णु शीर सागर में नींद से उठ जाते हैं। इस दिन हिंदू समुदाय या कहे सनातन धर्म में सभी मांगलिक कार्यों जैसे शादी ब्याह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश आदि पर लगी रोक हट जाती है और मांगलिक कार्यक्रम आरंभ हो जाते हैं।
मान्यता तो यह भी हैं कि इस दिन यदि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का पूजन पूरी श्रद्धा और विश्वास से किया जाये को सांसारिक पापों से मुक्ति मिलती है और जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एकादशी के दिन व्रत करने वाले इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और सांसारिक पापों से मुक्ति की मनोकामना मांगते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की शालिग्राम भगवान के रूप में तथा तुलसी देवी की भी पूजा की जाती है।
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Dev Uthani Ekadashi Vrat : देवउठनी एकादशी व्रत विधि / नियम
Dev Uthani Ekadashi का व्रत सभी को करना चाहिए कहा जाता हैं की भगवान विष्णु जब निंद्रा से उठते हैं तब वे भक्तों की पूजन से प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। आज के दिन की पूजा से माता लक्ष्मी भी प्रसन होती हैं और घर में धनधान्य की कमी नहीं होने देती। परन्तु जब देवउठनी एकादशी व्रत विधि (Dev Uthani Ekadashi Vrat Vidhi) विधान से किया जाता हैं उसकी महिमा ही अलग होती हैं इसीलिए आज हम लेकर आये हैं देवउठनी एकादशी व्रत की विधि (Dev Uthani Ekadashi Vrat Niyam) या कहे नियम जो आपके व्रत को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। इनका पालन जरूर करने चाहिए।
- देवोत्थान एकादशी के दिन सुबह-सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए।
- स्नान के बाद गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक या कहे स्वस्तिक बनाएं।
- चौक के मध्य में भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रखें।
- इसके साथ ही चौक से भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं, जो ढककर रखने चाहिए।
- भगवान को गन्ना, सिंगाड़ा और पीले फल-मिठाई अर्पित करना चाहिए।
- इसके साथ ही भगवान को पीली मिठाई करें।
- इसके बाद घी का एक दीपक जलाएं और इसे रात भर जलने दें।
- यहीं पर बैठकर विष्णु पुराण और व्रत कथा सुनें भजन कीर्तन करना चाहिए।

Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha : देवउठनी एकादशी व्रत कथा
आइये आपको देव उठनी एकादशी व्रत की कथा बताते हैं। एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था। एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए। राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है. राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो।
सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा. राजा ने शर्त मान ली। अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया. मांसाहार बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी. राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में तो मैं सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं. रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई. बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई। राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए। सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए।
देवउठनी एकादशी पर बहुत से नियमों का पालन करना जरूरी होता है। इस दिन केवल निर्जल या जलीय पदार्थों पर ही उपवास रखना चाहिए. अगर व्रत रखने वाला रोगी, वृद्ध, बालक या व्यस्त व्यक्ति हैं तो वह केवल एक वेला का उपवास रख सकता है। इस दिन चावल और नमक से परहेज करना चाहिए. भगवान विष्णु की उपासना करना अच्छा रहता है. देवउठनी एकादशी के दिन तामसिक आहार (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा या बासी भोजन) का सेवन बिल्कुल न करें।
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वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा और महत्त्व
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