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Ujjain 84 Mahadev : दोस्तों, आज हम आपको 84 महादेव सीरीज के तीसरे महादेव की कथा बताएँगे की कैसे इन भक्तो पर कृपा करने के की वजह से इन मंदिर को प्रसिद्धि बढ़ी और किस कारण इन मंदिरों के नाम श्री ढुंढेश्वर महादेव और श्री डमरुकेश्वर महादेव पड़े।
Ujjain 84 Mahadev : श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव
तत्रास्ते सुमहापुण्यं लिंगं सर्वार्थ साधकम्।
पिशाचेश्वर सांनिध्ये तमाराधय सत्वरम्।।
Ujjain 84 Mahadev : Location of Shri Dundheshwar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव मंदिर
महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित 84 महादेव में से एक श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव का मंदिर क्षिप्रा किनारे स्थित रामघाट पर है। आप इस मंदिर पर जाने से लिए रामघाट पर आसानी से पहुंच सकते है।
Story of Shri Agasteshwar Mahadev / श्री अगस्त्येश्वर महादेव कथा
हमारे धर्म के पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के कैलाश पर्वत पर ढुंढ नाम का एक गणनायक था, जो कुछ कामी और थोड़ा दुराचारी भी था। एक बार किसी कार्यवश वो इंद्र के दरबार पहुंचा। उस समय इंद्र के दरबार में नृत्य कर रही अप्सरा रंभा को देख उस पर आसक्त हो गया। कामवश में आसक्त होकर उसने वहां उसने अप्सरा रंभा पर एक फूलों से बना गुच्छ फैंक दिया। यह देखकर अप्सरा दुखी हो गयी और उसे इस अवस्था में देख इंद्र अत्यंत क्रोधित हुए और इंद्र ने ढूंढ को शाप दिया, शाप के प्रभाव से ढूंढ बेहोश होकर नीचे मृत्युलोक में गिर गया।
जब मृत्युलोक में आकर ढूंढ होश आया तब उसे अपने कृत्य पर बहुत ग़ुस्सा आया क्षोभ हुआ। अपने पाप और शाप से मुक्ति पाने के लिए वह वन – वन और पर्वत – पर्वत भटकने लगा।
पहले उसने महेंद्र पर्वत पर तपस्या की लेकिन वह वहां कोई भी तरह की सिद्धि प्राप्त नहीं कर सका। इस तरह एक बार वो शाप से मुक्ति होने के लिए गंगा तट पर पहुंचा। गंगा स्नान और तट पर तपस्या के बाद भी उसे कोई सिद्धि प्राप्त नही हुई, अब थक हारकर वो धर्म – कर्म छोड़ने का निर्णय लेने लगा। तभी गण होने के कारण प्रभु उसे कैसे हारने देते इसलिए वहां एक भविष्यवाणी हुई कि ढूंढ तुम महाकाल वन जाओ और पवन पावनी शिप्रा तट पर पिशाच मुक्तेश्वर के पास स्थित एक दिव्य शिवलिंग की पूजा करो। इसी से तुम्हे शाप से मुक्ती मिलेगी और तुम्हे फिर से तुम्हारा गण पद प्राप्त होगा।
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Shri Dhundheshwar Mahadev Puja Mahtva / श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव की पूजा का महत्व
ढुंढ महाकाल वन में पहुंचा और वहाँ पहुंचकर पूरे समर्पण के साथ उस दिव्य शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने लगा। उसकी पूजा अर्चना और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उससे वरदान मांगने को कहा। ढुंढ ने कहा आशीर्वाद माँगा कि इस दिव्य लिंग के पूजन से सभी मनुष्यों के पाप दूर हों तथा अब से आपका यह लिंग मेरे नाम पर प्रसिद्ध हो। भगवान तथास्तु कह कर अंतर्ध्यान हो गए और तभी से इस शिवलिंग “ढुंढेश्वर महादेव” के नाम से ख्याति प्राप्त हुयी।
दोस्तों, आज हमने आपको श्री ढूँढ़ेश्वर की कथा सुनाई है। वैसे ही हम Ujjain 84 Mahadev 84 महादेव सीरीज में आपको उज्जैन के 84 महादेव मंदिरो की कथा बताएँगे। और उम्मीद करते है हमारे ब्लॉग द्वारा कथा अच्छी लग रही होंगी और इस सावन आप भी हमारी ही तरह 84 महादेव मंदिर जाकर बाबा भोले का आशीर्वाद लेंगे।
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