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Ujjain 84 Mahadev Karkotkeshvar Mahadev(10) : जानिये श्री कर्कोटकेश्वर महादेव की कथा

Ujjain 84 Mahadev Karkotkeshvar Mahadev : दोस्तों, आज हम आपको 84 महादेव सीरीज के दसवें महादेव श्री कर्कोटकेश्वर की कथा (Karkotkeshvar Mahadev Ki Katha) बताएँगे की कैसे भक्तो पर कृपा करने के की वजह से इस मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ी और किस कारण इस मंदिर का नाम श्री कर्कोटकेश्वर महादेव पड़ा।

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Ujjain 84 Mahadev : श्री कर्कोटकेश्वर महादेव

कर्कोटकेश्वर दशमं विद्धि पार्वति।
यस्य दर्शनपात्रेण विपैर्नेवामिभूयते।।

Ujjain 84 Mahadev : Location of Shri Karkotkeshvar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री कर्कोटकेश्वर महादेव मंदिर

कर्कोटकेश्वर महादेव का मंदिर( Karkotkeshvar Mahadev Mandir ) महाकालवन स्थित प्रसिद्ध श्री हरसिद्धि देवी के मंदिर प्रांगण में है। हरसिद्धि मंदिर में दर्शन करने वाले लगभग सभी श्रद्वालु श्री कर्कोटेश्वर महादेव की आराधना (Karkotkeshvar Mahadev Pujan Labh) कर दर्शन लाभ लेते हैं। 

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Story of Shri Karkotkeshvar Mahadev / श्री कर्कोटकेश्वर महादेव कथा 

Ujjain 84 Mahadev Karkotkeshvar Mahadev

धार्मिक और पौराणिक कथाओं के अनुसार आदिकाल में एक बार सर्पों की माता कद्रू ने अपने सभी पुत्र सर्पों के द्वारा अपना दिया गया वचन भंग करने के कारण श्राप दिया कि सारे मेरे सारे पुत्र और उनसे उत्पन्न सर्प पराक्रमी जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाए।

अपनी माता के द्वारा दिए गए श्राप से डर से कुछ सर्प हिमालय पर्वत कुछ पातल में तपस्या करने चले गए, कंबल नाम का सर्प ब्रह्माजी की शरण में चला गया और शंखचूड़ मणिपुर राज्य में छिप गया। कालिया नाम का एक महासर्प यमुना नदी में रहने चला गया, एक महासर्प धृतराष्ट्र प्रयागराज में संतों के पास, एक सर्प एलापत्रक जो ब्रह्मलोक में और बाकी के सर्प कुरुक्षेत्र नामक जगह पर जाकर तप करने लगे।

एलापत्रक ने ब्रह्माजी से प्रार्थना करके कहा कि ‘हे ब्रम्ह देव कृपया कोई उपाय बताएं जिससे हमें हमारी क्रोधित माता के श्राप से मुक्ति मिले और सर्प जाती का उद्धार हो। तब ब्रह्माजी ने कहा की आप सभी महाकाल वन में जाकर महामाया के पास समस्त लोको के स्वामी देवो के देव महादेव के दिव्य लिंग की आराधना और तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करो।

यह सब पता लगते ही कर्कोटक नामक एक महासर्प अपनी ही इच्छा से महामाया के समीप स्थित एक बहुत ही दिव्य शिवलिंग के सम्मुख बैठ देवो ले देव महादेव भगवान शिव की स्तुति करने लगा। उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर महादेव ने प्रसन्न होकर कहा कि में माता के श्राप को नहीं काट सकता क्यों की ये विधि के विधान के अनुरूप नहीं है कित्नु में एक मार्ग अवश्य बता सकता हूँ जिससे सभी का कल्याण होगा और भगवान शिव ने कहा की जो भी सर्प धर्म का उचित आचरण करेगा उनका विनाश मेरे आशीर्वाद से नहीं होगा। अन्य सर्पों और देवताओ ने इस लिंग को कर्कोटकेश्वर नाम से संज्ञा दी और फिर चलन के हिसाब से कर्कोटेश्वर के नाम से जाना जाता है।

Shri Karkotkeshvar Mahadev Puja Mahtva / श्री कर्कोटकेश्वर महादेव की पूजा का महत्व..

पुराणों के अनुसार इस दिव्य शिवलिंग के दर्शन और स्मरण मात्र से विष निष्प्रभावी तथा व्याधि नाश होता है। पंडितों के अनुसार जो इसकी दिव्य लिंग की आराधना करते हैं वे सर्प भय से मुक्त रहते है तथा उनकी सौ पीढ़ी का भी सर्प भय से दूर हो जाता है। इस शिवलिंग पर रुद्राभिषेक मुख्यतः रविवार, पंचमी या किसी भी चतुर्दशी को करते है, उस मनुष्य को सर्पजनित की पीड़ा नहीं होती।

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दोस्तों हम 84 महादेव की सीरीज में आपके लिए हम उज्जैन में स्थित 84 Mahadev के मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसमे मंदिर की कथा और उन शिवलिंग की पूजा महत्व शामिल हैं। कृपया आप ऐसे ही हमारे द्वारा दी गयी जानकारी को अपने दोस्तों और परिवार जानो पहुचाये। आपको कोई और जानकारी चाहिए तो आप हम कमेंट या contact पेज के जरिये संपर्क कर सकते है।

Disclaimer: हमारे द्वारा दिए गए 84 महादेव सीरीज के दसवें महादेव श्री कर्कोटकेश्वर की कथा (Karkotkeshvar Mahadev Ki Katha), पूजन का महत्त्व कई इंटरनेट सोर्सेज के माध्यम से लिए गए है। लेकिन इंटरनेट और अन्य कई ग्रंथो यह लिस्ट अलग भी हो सकती हैं। अगर इसमें आपको कोई गलती लगाती है तो कृपया आप हमें हमारे ऑफिसियल ईमेल पर जरूर बताये।

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