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Somnath Temple – हमारे सनातन धर्म के पौराणिक कथाओं के अनुसार के भारत के पर (Somnath Temple Gujrat) गुजरात राज्य के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र में वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन क्षेत्र में भगवान देवाधि देव महादेव अति प्राचीन सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में भक्तो को दर्शन देते है। सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से पहला ज्योतिर्लिंग है।
इतिहास में इस मंदिर को कई बार मुस्लिम लुटेरों और पुर्तगाली आक्रमणकारियों द्वारा लुटा और तोडा गया और कई बार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को खंडित किया गया मगर सोमनाथ की महिमा कम नहीं कर पाए, इसलिए मंदिर को ही तोड़ कर सोना और संपत्ति ले गए। मगर इतिहास इस बात का गवाह है की जितनी बार मंदिर (Somnath Temple) को तोडा गया उतनी ही बार यह और भी भव्य रूप में फिर बनाया गया।
सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये
ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्।
भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं
सोमनाथं शरणं प्रपद्ये॥
जय सोमनाथ, जय सोमनाथ॥
हिंदी भावार्थ : जो अपनी भक्ति प्रदान करने के लिये अत्यन्त रमणीय तथा निर्मल सौराष्ट्र प्रदेश (काठियावाड़) में दयापूर्वक अवतीर्ण हुए हैं, चन्द्रमा जिनके मस्तक का आभूषण है, उन ज्योतिर्लिंग स्वरूप भगवान श्री सोमनाथ की शरण में मैं जाता हूँ।
सोमनाथ मंदिर की कथा – Somnath Temple Story
वैसे तो भगवान सोमनाथ का मंदिर कब बनाया गया था इसकी काल गणना करना मुश्किल है। लेकिन हमारे पुराणों के अनुसार कथा कुछ इस तरह है की चंद्रदेव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों से हुआ था। लेकिन चंद्रदेव सिर्फ रोहिणी से ही प्रेम करते थे जिससे दक्ष की अन्य पुत्रिया प्रेम के अभाव दुःखी रहने लगी।
एक बार अन्य पुत्रियों की यह दशा देख दक्ष ने उनसे इसका कारण पूछा तो पुत्रियों ने सारा वृतांत बताया। प्रजापति दक्ष ने चंद्रदेव को समझाया और कहा की वह सभी पुत्रियों से निष्पक्ष रहे और सभी से प्रेम पूर्वक रहे। उस समय चंद्रदेव ने हामी भर बात मान ली। कित्नु वह अपने व्यवहार को नहीं बदल पाए।
यहां जब पुत्रियों ने फिर से अपने पिता दक्ष प्रजापति को बताया। और बार बार समझाने पर भी न समझने पर दक्ष ने चंद्रदेव को क्षय होने का श्राप दे दिया। जिससे चंद्रदेव की रोशनी फीकी पड़ने लगी और धीरे धीरे उनके शरीर को क्षय रोग होने लगा।
यहाँ संसार में चंद्रदेव न होने की वजह से हाहाकार हो गयी। चूँकि प्रजापति पद पर होने के कारण दक्ष ने संसार में चंद्र की आवश्यकता देखते है हुए नए चंद्र को अपने मंत्रो और तपोबल से बनान शुरू कर दिया।
अब चंद्रदेव के ना होने से सारे ऋषि मुनि और उनके माता – पिता अनसूया और ऋषि अत्रि सहित सभी लोग ब्रम्हदेव और श्री हरि के पास गए। यहाँ विष्णु हरि विष्णु ने इसका उपाय सिर्फ महादेव के पास होना बताया। इस तरीके से सभी महादेव कि आराधना करने लगे।
महादेव ने प्रसन्न होकर सभी को बताया की चंद्रदेव ने सभी से विवाह करने के बाद भी अन्य कन्याओं को उसका अधिकार नहीं दिया इसलिए चंद्रदेव को इसकी सजा भुगतनी तो होगी और दक्ष के प्रजापति पद पर होने के काऱण वे खुद भी दक्ष के श्राप को काट कर प्रजापति पद का अपमान नहीं कर सकते कित्नु वे श्राप के प्रभाव को कम जरूर कर सकते है।
जैसे की हम सभी जानते है महादेव काल और समय से परे है इसलिए उनको कभी कोई श्राप प्रभावित नहीं कर सकता जब वे स्वयं न चाहे। इसलिए महादेव ने सभी को बताया की वे चंद्र को अपने शीश पर धारण करेंगे जिससे दक्ष के श्राप का प्रभाव कम हो जायेगा। कित्नु चंद्रदेव के अपराध के कारण चंद्रदेव माह में 15 दिन बढ़ते रहेंगे और जब बढ़ते हुए वे अपने चरम पर पहुचंगे तो उस तिथि को पूर्णिमा और बढ़ने के बाद घटेंगे और जिस दिन चंद्रदेव क्षीण होंगे उस दिन को अमावस्या कहेंगे।
महादेव की कृपा से चंद्र देव ठीक होने लगे। और अपने अपराध की क्षमा मांग कर चंद्र देव ने महादेव से एक ज्योतिर्लिंग स्थापित कर वही दर्शन देने की विनती की जिसे भगवान मान गए और वही विराजमान हो गए और चंद्रदेव ने वहा भव्य मंदिर का निर्माण किया। चंद्रदेव का दूसरा नाम सोम भी है इसलिए ज्योतिर्लिंग का सोमनाथ (Somnath Temple) कहलाया।
History Of Somnath Temple : सोमनाथ मंदिर का इतिहास और लुटेरों के आक्रमण
सोमनाथ मंदिर इतना भव्य और संपन्न था की इतिहास में यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जिसे मुस्लिम लुटेरों द्वारा सबसे ज्यादा बार तोडा और लुटा गया लेकिन इसकी महिमा और मंदिर (Somnath Temple) का अस्तित्व नहीं मिटा सके। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार है की इसे 17 बार तोडा और लुटा गया और 7 बार पहले से ज्यादा भव्य बनाया गया।
प्राचीन लेखों के अनुसार सोमनाथ मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व ही हो गया था। कहा जाता है की लगभग 650 ईसवी के आसपास वल्लभी के मैत्री राजाओं ने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और एक दूसरा मंदिर भी बनवाया था.
जिसके बाद 725 ईसवी में सिंध के अरब शासक और भारत के लिए एक आक्रांता अल जुनैद द्वारा इस मंदिर पर सबसे पहली बार आक्रमण किया गया था।
अल जुनैद ने इस मंदिर को पूरी तरीके से लगभग नष्ट ही कर दिया था और यहां से सारी संपत्ति चुरा कर ले गया था हालांकि इस हमले का पुख्ता कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है। इस आक्रमण के बाद कहा जाता है कि, 815 ईस्वी में गुर्जर प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय हुए जो इस (Somnath Temple) मंदिर को फिर पुनःनिर्माण कर और भव्य बनाया।
इसके बाद एक अरब यात्री अलबरूनी ने अपने यात्रा के वृतांत में इसका बहुत ही गुणगान किया है। उस यात्री के वृतांत से प्रभावित होकर मुस्लिम लुटेरे महमूद गजनबी ने सन 1024 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया। उस समय के चालुक्य शासक भीमदेव प्रथम गजनबी से युद्ध हार कर वहा से भाग गए। ऐतिहासिक प्रमाण है की उसने यहाँ से उस समय 20 लाख दीनार की लूट की और सोमनाथ की आधी शिवलिंग को भी खंडित कर दिया था। यही नहीं उसने सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) में पूजा कर रहे लगभग 50,000 लोगो का क़त्ल भी करवा दिया था।
इसके बाद एक ऐतिहासिक प्रमाण है की कुमारपाल नाम के शासक ने 1169 में इस मंदिर को फिर से एक उत्कृष्ट पत्थर में भव्य बनवाया और इसे सोने के गहने के साथ सजा दिया था।
इसके बाद फिर से मुस्लिम लुटेरे अलाउद्दीन खिलजी की सेना उल्लाल खान के नेतृत्व में आयी और उसने ने वाघेला वंश के शासक करण देव द्वितीय को हराकर फिर से सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया। इसके बाद फिर से प्राण प्रतिष्ठित की गई सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को 1300 ईसवी में मुस्लिम लुटेरे आक्रांता अलाउद्दीन की सेना ने वापस फिर से खंडित किया। इसके बाद भी बार बार कई बार प्रभास क्षेत्र स्थित सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग को खंडित किया गया।
हसन निजाम के ताज उल नासिर के मुताबिक उस समय सुल्तान ने दावा किया था कि उनकी सेना ने तलवार के दम पर उस समय लगभग 50 हजार काफिरों को क़त्ल किया और 20 हज़ार से भी अधिक काफिरों को दास बनाया।
कान्देहव प्रबंध के अनुसार, कहा जाता है की जालौर के महान शूरवीर शासक राजा श्री कान्हा देव ने सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) को लूटने को जाती हुई खिलजी की सेना को रास्ता नहीं दिया था। और फिर खिलजी की वापस जाती हुई सेना पर कान्हा देव ने भयानक आक्रमण कर दिया था। जिससे खिलजी की सेना तित्तर बितर होकर निकल गयी लेकिन उनसे थोड़ा कुछ खजाना वापस ले लिया और सोमनाथ की शिवलिंग की मूर्ति को भी वापस ले लिया था। इसके बाद मंदिर का दर्ज ऐतिहासिक आधार है की मंदिर का पुनर्निर्माण सौराष्ट्र के चूड़ासामा शासक महिपाल प्रथम ने 1308 में करवाया था।
कई इतिहासकार बताते है की 1395 में सोमनाथ मंदिर को फिर से एक बार नष्ट कर दिया गया था। इसके बाद कहा जाता है की 1491 में गुजरात के मुस्लिम सुल्तान महमूद बेंदा इसे हिन्दू धर्म के लोगो की आस्था को चोट पहुंचने के लिए शिवलिंग का अपमान भी किया था। इसके बाद लिखित इतिहास है की 1546 ईसवी में पुर्तगाली ने सोमनाथ कस्बा पर हमला किया और कई मंदिरों को नष्ट कर दिया।
अब दौर आया मुग़ल लुटेरों का हमारे इस देश में 15 वी से 18 वी शताब्दी तक मुगलों का शासन था। उस दौरान भी इन मुस्लिम लुटेरों शासकों ने सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) पर कई हमले किये। मुगलों ने भगवान सोमनाथ के मंदिर को बहुत नुकसान पहुँचाया था। लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया सनकी और दुष्ट ओरंगजेब ने 1706 ईस्वी में सोमनाथ पर बहुत ही भयंकर आक्रमण किया था। इस आक्रमण में उसके सैनिकों ने लगभग पूरा ही मंदिर और आसपास के अन्य मंदिरों को तुडवा दिया था। और जैसी इनकी लुटेरों आदते थी इन्होने मंदिर का सारा सोना लूट लिया और आस पास के हिन्दू गाँवो को नष्ट कर बहजारों हिन्दुओ का कत्ले आम करवा कर मरवा दिया।
जब हम नष्ट करने वाले सभी लुटेरों का नाम इसमें लिख रहे है तो सोमनाथ के और देश के एक वीर बहादुर योद्धा हमीरजी की कहानी भी जानना बहुत जरुरी है इनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते है, इसलिए आपको इनके बलिदान और बहादुरी को जरूर जानना चाहिए। इसके लिए गुजरात में एक मूवी बनायीं गयी है “Veer Hamirji – Somnath ni Sakhate”. इससे आपको इस बहादुर योद्धा के जीवन की कुछ जानकारी मिल सकती है।
वीर बहादुर योद्धा हमीर जी जिन्होंने अंतिम साँस और बिना सर के शरीर से भी कई पलो तक युद्ध कर सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। एक साहसी योद्धा थे, इनकी नई नई शादी हुई थी। तभी उन्हें पता चला कि, भगवान सोमनाथ के मंदिर को लूटने के लिए कुछ दुश्मनों वहाँ पर ने घेरा डाल दिया है।
हमीर जी ने बिना समय गवाएं तुरंत अपने घोड़े पर बैठकर गए दुश्मनों से सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) की रक्षा के लिए निकल गए। और अपनी जीवन की अंतिम साँस तक लड़कर बलिदानी हो गए। ऐसा कहा जाता है कि, इस भयंकर लड़ाई में उनका सिर कट क्र निचे गिर गया था, लेकिन सोमनाथ मंदिर की रक्षा के लिए उनका दृढ़ संकल्प इतना पक्का था कि, उनका धड़ बिना सिर के भी कुछ पलों तक लड़ता रहा। हमीर जी के बलिदान को नमन और सम्मानित करने के लिए उनकी अश्व पर सवार हुई मूर्ति को सोमनाथ मंदिर से कुछ दूर पर स्थापित किया गया है।
भारत के लौह पुरुष और प्रथम उप प्रधान मंत्री सरदार श्री वल्लभभाई पटेल जी देश के सामने 13 नवंबर, 1947 को मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव रखा था। तब जवाहर नेहरु ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। आपको इस बात का जिक्र के. एम. मुंशी द्वारा लिखी गयी अपनी किताब “piligrimage to freedom” में मिल जायेगा है।
सन 1951 में हमारे देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. श्री राजेंद्र प्रसादजी ने इस ज्योतिर्लिंग (Somnath Temple) को शुद्ध करने का प्रस्ताव रखा, और उन्होंने कहा की “सोमनाथ का यह मंदिर विनाश पर निर्माण का विजय प्रतीक है” और सोमनाथ मंदिर के लिए ट्रस्ट का गठन किया गया और इसके पहले अध्यक्ष बने हमारे देश के लोह पुरुष श्री सरदार वल्लभ भाई पटेल।
वर्तमान मंदिर के सोमनाथ मंदिर का निर्माण हमारे देश के लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की मौजूदगी में करवाया गया। और जब 1 दिसंबर 1955 को सोमनाथ मंदिर पूरी तरह भव्य बनकर तैयार हुआ। इसके उद्घाटन का सौभाग्य तब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. श्री शंकर दयाल शर्माजी को मिला और उन्होंने इस मंदिर (Somnath Temple) को देश को समर्पित किया।
Some Interesting Facts of Somnath Temple – सोमनाथ मंदिर के कुछ रोचक तथ्य
हमने आपको सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) के ज्योतिर्लिंग की कथा और इतिहास में हुए आक्रमण की जानकारी बहुत ही अच्छे तरीके से दी है। लेकिन मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी जान लीजिये।
आप लोगो को यह जानकर हैरानी होगी जैसी की हमें हुयी थी, सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) में स्थित जो ज्योतिर्लिंग हैं उसमे रेडियोधर्मी गुण है, जो जमीन के ऊपर संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। कहा जाता है की वर्तमान मंदिर के निर्माण में पांच वर्ष लग गए थे।
सोमनाथ मंदिर के शिखर की ऊंचाई लगभग 150 फिट है। और (Somnath Temple) मंदिर के अंदर आपको में नृत्य मंडपम, सभामंडपम और गर्भगृह है।
(Somnath Temple) सोमनाथ मंदिर के दक्षिण भाग में समुद्र के किनारे एक प्राचीन स्तंभ है। पौराणिक काल से उस स्तंभ को बाणस्तंभ के नाम से जाना जाता है। उस स्तंभ के ऊपर तीर रखा गया है जो इस बात को दर्शाता है कि दक्षिण ध्रुव और सोमनाथ मंदिर के बीच पृथ्वी का कोई भाग नहीं है।
इस प्रभास क्षेत्र में ही भगवान श्री कृष्ण ने अपनी लीला समाप्त की और फिर से अपने धाम पधारे।
इस प्रभास क्षेत्र में ही तीन नदियों का संगम है। ये तीन नदिया है हिरण, कपिला और सरस्वती। इस त्रिवेणी में लोग स्नान करने आते हैं।
कई इतिहासकार और लोग यह भी मानते है की आगरा में रखे गए देवद्वार सोमनाथ मंदिर (Somnath Temple) के ही है। जिन्हें मुस्लिम लुटेरा महमूद गजनवी अपने साथ लूट कर ले गया था। सोमनाथ मंदिर के शिखर पर स्थित कलश का वजन लगभग 10 टन है और इसकी ध्वज पताका 27 फीट ऊँची है।
Other Temples Near Somnath Temple : अन्य तीर्थ स्थान और मन्दिर
Somnath Temple सोमनाथ मन्दिर क्रमांक १ के प्रांगण में नवदुर्गा खोडीयार, पर्दी विनायक, महावीर हनुमानजी का मंदिर, इंदौर की शिव भक्त महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा स्थापित काशी विश्वनाथ, सोमनाथ मंदिर, अहिल्येश्वर, अन्नपूर्णा, गणपति के मंदिर हैं।
अघोरेश्वर मंदिर नं. ६ के समीप दुखहरण जी की जल समाधि, महाकाली मंदिर, भैरवेश्वर मंदिर स्थित है। मंदिर नं. १५ के समीप राममंदिर, विलेश्वर मंदिर नं. १२ के नजदीक और पंचमुखी महादेव मंदिर कुमार वाडा में स्थित है।
हाटकेश्वर मंदिर जो नागरों के इष्टदेव है, कालिका मंदिर, बालाजी मंदिर, देवी हिंगलाज का मंदिर, नागनाथ मंदिर, नरसिंह मंदिर समेत कुल लगभग 42 मंदिर नगर के लगभग दस किलो मीटर क्षेत्र में स्थापित हैं।
वेरावल प्रभास क्षेत्र के मध्य में समुद्र के किनारे मंदिर बने हुए हैं, चंद्रेश्वर-रत्नेश्वर, भालुका तीर्थ, शशिभूषण मंदिर, रोटलेश्वर, भीड़भंजन गणपति, बाणेश्वर, कपिलेश्वर है।
लक्ष्मीनारायण मंदिर, रूदे्रश्वर मंदिर, सूर्य मंदिर, हिंगलाज गुफा, भालकेश्वर, प्रागटेश्वर, पद्म कुंड, पांडव कूप, द्वारिकानाथ मंदिर, बल्लभाचार्य महाप्रभु की 45वीं बैठक, बालाजी मंदिर, गीता मंदिर के अलावा कई अन्य प्रमुख मंदिर है।
स्कन्द पुराण के एक खंड प्रभास खंड में ऐसा विवरण किया गया है की इस मंदिर के समयकाल में ही यहाँ अन्य देव मंदिर भी थे।
इनमें अनेक देवीयों के 25 , भगवान सूर्य नारायण के 16 , भगवन गणेशजी के 5 , देवाधिदेव महादेव के135 , श्री हरिविष्णु के 5, नागदेव मंदिर 1 , क्षेत्रपाल महाराज मंदिर 1 , कुंड 19 और नदियां 9 का होना बताया गया हैं।
एक शिलालेख के विवरण में और कई इतिहासकारों के द्वारा ऐसा अनुमान लगाया गया है की लुटेरे महमूद के हमले के बाद यहाँ लगभग 21 मंदिरों का निर्माण किया गया था। इसलिए ये बात भी संभव है की इसके पश्चात भी अनेक मंदिर बने होंगे।
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