Ujjain 84 Mahadev Swarnajwaleshwar Mahadev (6/84): दोस्तों, आज हम आपको 84 महादेव सीरीज के छठवें महादेव श्री स्वर्णज्वालेश्वर की कथा (Swarnajwaleshwar Mahadev Ki Katha) बताएँगे की कैसे इन भक्तो पर कृपा करने के की वजह से इस मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ी और किस कारण इस मंदिर का नाम श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव पड़ा।
84 Mahadev Ujjain : उज्जैन के 84 महादेव, जिनके दर्शन से होंगे पाप होंगे नष्ट
Ujjain 84 Mahadev : श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव
स्वर्ण ज्वालेश्वरं षष्ठं विद्धि चात्र यशस्विनी।
यस्य दर्शन मात्रेण धवानिह जायते।।
Ujjain 84 Mahadev : Kaha hain Swarna-jwaleshwar Mahadev Temple / कहाँ है 84 महादेव का श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव मंदिर
महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित 84 महादेव (84 Mahadev Ujjain ) में से एक श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव का मंदिर क्षिप्रा किनारे स्थित राम सीढ़ी पर श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव के ऊपर है। आप इस मंदिर पर जाने से लिए रामघाट पर आसानी से पहुंच सकते है।
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Shri Swarna-jwaleshwar Mahadev Katha / श्री स्वर्णज्वालेश्वर महादेव कथा
पौराणिक समय की बात कि भगवान शिव और माता पार्वती को सांसारिक धर्म में रहते हुए कई सौ वर्ष हो गए लेकिन तारकासुर नाम के असुर के वध करने के लिए उन्हें कोई पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। तब देवताओं के राजा इंद्रा ने अग्नि देव को भगवान देवाधिदेव महादेव के पास भेजा। तब महादेव ने तीनो लोको के हित के लिए अपना एक अंश अग्नि देव के मुख में स्थान्तरित कर दिया। लेकिंन महादेव के उस अंश का ताप स्वयं अग्नि देव भी सहन नहीं कर पाए।
अग्निदेव ने उस अंश का कुछ भाग परम पावनि माँ गंगा में डाल दिया। फिर भी उस शेष अंश के ताप से अग्नि देव जलने लगे। और फिर अग्नि देव को उस अंश शेष से एक बहुत दिव्य पुत्र उत्पन्न हुआ। ऐसे दिव्य और ओजस्वी पुत्र को पाने के लिए सभी असुर, सुर, गन्धर्व, यक्ष आपस में लड़ने लगे। इस परिणाम स्वरुप देवताओं और दैत्यों में भयानक युद्ध छिड़ गया इससे संसार में कोहराम मच गया।
Ujjain 84 Mahadev : श्री डमरूकेश्वर महादेव कथा।
तब वहा उपस्थित बालखिल्य ऋषि सभी देवताओं के साथ इंद्रदेव और देवगुरु बृहस्पति को लेकर कर भगवान ब्रह्मा के पास गए और सभी ने उन्हें सारा का सारा वृत्तांत उन्हें सुनाया। तब भगवान ब्रह्मा सभी ऋषियों और देवताओं को लेकर भगवान देवाधिदेव महादेव शिव के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने अपने योग बल से ज्ञात कर लिया कि इन सब का मुख्य कारण अग्नि पुत्र सुवर्ण है। तब भगवान देवाधिदेव महादेव ने उस सुवर्ण को बुलाया और इस युद्ध में मारे गए ऋषियों और ब्राह्मणों हत्या का दोषी बताते हुए उसे छेदन, दहन और घर्षण की बहूत भयानक पीड़ा भुगतने की बात कही।
महादेव की बात सुनकर सुवर्ण के पिता अग्नि देव भयभीत हुए। उन्होंने से महादेव से दया की प्रार्थना और अपने पुत्र के साथ शिवजी की स्तुति करना शुरू कर दी और महादेव से अग्निदेव ने आग्रह किया कि आप पुत्र स्वर्ण को अपने पास अपने भंडार में ही रख ले, क्यों की आप आपके प्रसन्न होने से ही मुझे यह दिव्य पुत्र की प्राप्ति हुयी है। तब शिवजी प्रसन्ना होकर अग्निपुत्र को गोद में बैठा कर दुलार करने लगे और फिर उसके साथ ही महाकाल वन दिव्य लिंग के साथ उसे भी स्थान दिया। वह दिव्य लिंग ज्वाला के समान होने से स्वर्ण ज्वालेश्वर महादेव कहलाया। इस महादेव को प्रचलन में स्वर्णजालेश्वर नाम भी है।
Ujjain 84 Mahadev : जानिये श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव की कथा
Shri Swarna-jwaleshwar Mahadev Puja Mahtva / श्री स्वर्णजालेश्वर महादेव की पूजा का महत्व
कहा जाता है कि महादेव के दर्शन के साथ साथ सुवर्ण दान करने से मनुष्य के सभी कार्य पूरी तरीके से पूर्ण होते है। अगर मनुष्य श्रावण मास और हर चतुर्थी को यहां पूजा करने आता है तो उसे जीवन में विशेष फल प्राप्त होता है।
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